IndianLawNotes.com

एजेंट को दी गई पॉवर ऑफ़ एटॉर्नी का रेवोकेशन और एजेंट के अन्य अधिकार – भारतीय संविदा अधिनियम (The Indian Contract Act) के तहत

एजेंट को दी गई पॉवर ऑफ़ एटॉर्नी का रेवोकेशन और एजेंट के अन्य अधिकार – भारतीय संविदा अधिनियम (The Indian Contract Act) के तहत

परिचय

भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 (Indian Contract Act, 1872) एजेंसी (Agency) संबंधी प्रावधानों के लिए व्यापक कानूनी ढांचा प्रदान करता है। एजेंसी एक ऐसा संविदा है जिसमें एक व्यक्ति (Principal) किसी अन्य व्यक्ति (Agent) को अपने लिए किसी कार्य को निष्पादित करने के लिए नियुक्त करता है। एजेंट प्रिंसिपल की ओर से कार्य करता है और प्रिंसिपल के निर्देशों के तहत कानूनी और व्यवसायिक निर्णय लेता है।

एजेंसी के संबंध में पॉवर ऑफ़ एटॉर्नी (Power of Attorney) का महत्व अत्यधिक है। पॉवर ऑफ़ एटॉर्नी वह अधिकार है जो प्रिंसिपल किसी एजेंट को अपने नाम पर कार्य करने के लिए देता है। लेकिन एजेंसी संबंध अनंतकालीन नहीं होता; इसे रद्द (Revocation) किया जा सकता है। इसके अलावा, एजेंट के अन्य कानूनी अधिकार भी संविदा अधिनियम द्वारा संरक्षित हैं।


पॉवर ऑफ़ एटॉर्नी (Power of Attorney) का अर्थ

पॉवर ऑफ़ एटॉर्नी (POA) एक लिखित या मौखिक अधिकार होता है, जिसके तहत प्रिंसिपल एजेंट को अपनी ओर से किसी कार्य को संपन्न करने की कानूनी क्षमता देता है। भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 182–238 के तहत एजेंसी और पॉवर ऑफ़ एटॉर्नी से जुड़े अधिकार और दायित्व स्पष्ट किए गए हैं।

पॉवर ऑफ़ एटॉर्नी के प्रकार

  1. विशेष पॉवर ऑफ़ एटॉर्नी (Special Power of Attorney):
    • यह किसी विशेष कार्य के लिए दिया जाता है, जैसे संपत्ति की बिक्री, बैंक लेनदेन, या कानूनी दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर।
    • कार्य पूरा होने पर यह स्वतः समाप्त हो जाता है।
  2. सामान्य पॉवर ऑफ़ एटॉर्नी (General Power of Attorney):
    • यह व्यापक अधिकार देता है, जिससे एजेंट प्रिंसिपल की ओर से नियमित और सामान्य कार्य कर सकता है।
    • यह तब तक प्रभावी रहता है जब तक इसे रद्द नहीं किया जाता।

पॉवर ऑफ़ एटॉर्नी का रद्द (Revocation of Power of Attorney)

पॉवर ऑफ़ एटॉर्नी का रद्द करना वह प्रक्रिया है जिसके तहत प्रिंसिपल एजेंट को दिए गए अधिकार को समाप्त करता है। यह रद्द होना वैध और कानूनी रूप से मान्य होना चाहिए।

रद्द करने के प्रमुख कारण

  1. प्रिंसिपल की इच्छा (Revocation by Principal):
    • प्रिंसिपल किसी भी समय अपनी इच्छा से एजेंट को दी गई पॉवर ऑफ़ एटॉर्नी रद्द कर सकता है।
    • इसे लिखित रूप में या सामान्य प्रथा के अनुसार सूचित करना आवश्यक होता है।
  2. एजेंट की मृत्यु या अक्षमता (Death or Insolvency of Agent):
    • एजेंट के निधन या दिवालियापन के साथ पॉवर ऑफ़ एटॉर्नी स्वतः समाप्त हो जाती है।
  3. प्रिंसिपल की मृत्यु (Death of Principal):
    • सामान्यतः प्रिंसिपल की मृत्यु से पॉवर ऑफ़ एटॉर्नी समाप्त हो जाती है, सिवाय उन मामलों के जहां संविदा में विशेष प्रावधान हों।
  4. निर्धारित अवधि समाप्ति (Expiry of Term):
    • यदि पॉवर ऑफ़ एटॉर्नी किसी निश्चित अवधि के लिए दिया गया हो, तो अवधि समाप्त होने पर यह स्वतः समाप्त हो जाता है।
  5. अनुबंध का उल्लंघन (Breach of Duty by Agent):
    • यदि एजेंट प्रिंसिपल के निर्देशों का उल्लंघन करता है या ईमानदारी के साथ कार्य नहीं करता, तो प्रिंसिपल उसे रद्द कर सकता है।

रद्द करने की प्रक्रिया

  1. लिखित नोटिस:
    • प्रिंसिपल को एजेंट को लिखित रूप में नोटिस देना चाहिए।
    • यह नोटिस अदालत या सार्वजनिक पंजीकरण के माध्यम से भी किया जा सकता है।
  2. सार्वजनिक सूचना (Public Notice):
    • विशेषकर संपत्ति या व्यापार से संबंधित एजेंसी में, सार्वजनिक सूचना जारी करना आवश्यक होता है ताकि तीसरे पक्ष अवगत हों।
  3. तुरंत प्रभाव (Immediate Effect):
    • रद्द करने की सूचना देने के बाद एजेंट को तुरंत और स्पष्ट रूप से अधिकार समाप्त होना चाहिए।

एजेंट के अन्य अधिकार (Other Rights of Agent)

एजेंट का अधिकार केवल पॉवर ऑफ़ एटॉर्नी तक सीमित नहीं है। भारतीय संविदा अधिनियम और न्यायालयीन निर्णयों के अनुसार, एजेंट को कई अधिकार प्राप्त हैं:

1. परिश्रमिक का अधिकार (Right to Remuneration)

  • एजेंट को अपने कार्य के लिए पूर्व-निर्धारित या सामान्य व्यवसायिक प्रथा के अनुसार उचित परिश्रमिक मिलता है।
  • न्यायालय ने Union of India v. Kamalapati Tripathi में यह स्पष्ट किया कि एजेंट का परिश्रमिक प्रिंसिपल का कानूनी दायित्व है।

2. व्यय की भरपाई (Right to Reimbursement)

  • एजेंट को प्रिंसिपल के आदेशानुसार किए गए व्यय की भरपाई का अधिकार है।
  • इसमें यात्रा खर्च, दस्तावेज़ शुल्क, कानूनी शुल्क आदि शामिल हैं।

3. हानि की सुरक्षा (Right to Indemnity)

  • एजेंट को प्रिंसिपल द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करने पर हुए नुकसान से सुरक्षा का अधिकार है।
  • उदाहरण के लिए, यदि एजेंट ने प्रिंसिपल के हित में कोई कानूनी विवाद सुलझाया और नुकसान हुआ, तो उसे प्रिंसिपल द्वारा मुआवजा दिया जाएगा।

4. संविदा उल्लंघन पर दावा (Right to Claim in Case of Breach)

  • यदि प्रिंसिपल एजेंट का परिश्रमिक नहीं देता या पॉवर ऑफ़ एटॉर्नी का अनुचित उपयोग करता है, तो एजेंट न्यायालय में दावा कर सकता है।

5. तीसरे पक्ष के विरुद्ध दावे (Right Against Third Parties)

  • एजेंट प्रिंसिपल के लिए किए गए कार्य में तीसरे पक्ष के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर सकता है, यदि ऐसा संविदा में निर्दिष्ट है।
  • उदाहरण: एजेंट किसी संपत्ति की बिक्री के लिए तीसरे पक्ष से भुगतान वसूल सकता है।

6. सब-एजेंट नियुक्त करने का अधिकार (Right to Appoint Sub-Agent)

  • यदि प्रिंसिपल की अनुमति है, तो एजेंट अपने अधिकारों और जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए उप-एजेंट (Sub-Agent) नियुक्त कर सकता है।
  • इसके लिए प्रिंसिपल की स्वीकृति अनिवार्य है।

न्यायालयीन दृष्टिकोण (Judicial Pronouncements)

भारतीय न्यायालयों ने पॉवर ऑफ़ एटॉर्नी और एजेंट के अधिकारों पर कई महत्वपूर्ण निर्णय दिए हैं:

  1. Ram Narain Agarwal v. State of Bihar – एजेंट को प्रिंसिपल द्वारा किए गए व्यय और हानि की भरपाई का अधिकार माना गया।
  2. Union of India v. Kamalapati Tripathi – एजेंट का परिश्रमिक और न्यायिक संरक्षण सुनिश्चित किया गया।
  3. State Bank of India v. R. M. Varghese – एजेंट को अतिरिक्त सेवाओं और जोखिम के लिए अतिरिक्त परिश्रमिक प्रदान किया गया।

व्यावहारिक दृष्टिकोण (Practical Implications)

  • व्यापारिक लेनदेन: एजेंट बैंकिंग, संपत्ति या कॉर्पोरेट मामलों में प्रिंसिपल का प्रतिनिधित्व करता है।
  • संपत्ति प्रबंधन: पॉवर ऑफ़ एटॉर्नी संपत्ति के लिए कानूनी अधिकार देता है, लेकिन रद्द करने की प्रक्रिया आवश्यक है।
  • व्यापारिक सुरक्षा: एजेंट को परिश्रमिक, व्यय भरपाई और हानि सुरक्षा सुनिश्चित होती है, जिससे व्यवसायिक विश्वास बनता है।

निष्कर्ष

भारतीय संविदा अधिनियम में एजेंसी, पॉवर ऑफ़ एटॉर्नी और एजेंट के अधिकारों का प्रावधान स्पष्ट और न्यायसंगत है।

  • पॉवर ऑफ़ एटॉर्नी प्रिंसिपल को एजेंट को प्रतिनिधित्व देने का कानूनी साधन प्रदान करता है।
  • इसे प्रिंसिपल द्वारा किसी भी समय, उचित प्रक्रिया से रद्द किया जा सकता है।
  • एजेंट के अन्य अधिकारों में परिश्रमिक, व्यय की भरपाई, हानि सुरक्षा और संविदा उल्लंघन पर दावा शामिल हैं।
  • न्यायालयीन दृष्टिकोण और व्यवसायिक प्रथा एजेंट के अधिकारों को मजबूत और स्पष्ट बनाते हैं।

अतः पॉवर ऑफ़ एटॉर्नी का रद्द और एजेंट के अधिकार दोनों ही एजेंसी संबंधों में पारदर्शिता, न्याय और संतुलन सुनिश्चित करते हैं।


सारांश बिंदु

  • पॉवर ऑफ़ एटॉर्नी एजेंसी का कानूनी आधार है।
  • इसे प्रिंसिपल द्वारा इच्छानुसार रद्द किया जा सकता है।
  • एजेंट को परिश्रमिक, व्यय भरपाई, हानि सुरक्षा और कानूनी संरक्षण का अधिकार है।
  • न्यायालय ने इन अधिकारों की पुष्टि की है।
  • एजेंसी संबंधों में अधिकार और कर्तव्य का संतुलन आवश्यक है।