“एक ही तथ्य पर दूसरी शिकायत केवल अपवाद स्वरूप ही स्वीकार्य: सुप्रीम कोर्ट का निर्णायक फैसला — Poonam Chand Jain बनाम फज़रू (2010)“
विस्तृत विश्लेषणात्मक लेख:
सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया ने अपने ऐतिहासिक निर्णय Poonam Chand Jain v. Fazru, रिपोर्टेड इन 2010 (2) SCC 631 : AIR 2010 SC 659 : 2010 CriLJ 1423 में, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धाराओं 190, 202 से 204 के तहत दर्ज दूसरी आपराधिक शिकायत (Second Criminal Complaint) की स्वीकार्यता (Maintainability) पर स्पष्ट एवं मार्गदर्शक दिशा-निर्देश प्रदान किए हैं।
यह फैसला उन मामलों के लिए मार्गदर्शन करता है जहां पहली आपराधिक शिकायत (Complaint) न्यायालय द्वारा गंभीर परीक्षण के बाद निष्कर्ष सहित खारिज की गई हो, और बाद में उन्हीं तथ्यों के आधार पर एक नई/दूसरी शिकायत फिर से दाखिल की जाती है।
मामले की पृष्ठभूमि:
इस मामले में अपीलकर्ता Poonam Chand Jain ने अभियुक्त Fazru के विरुद्ध एक आपराधिक शिकायत दर्ज कराई थी, जो न्यायालय द्वारा तथ्यों की विवेचना के बाद विवेकाधिकार (on merits) से खारिज कर दी गई थी।
बाद में, उन्हीं या लगभग समान तथ्यों के आधार पर दूसरी शिकायत दायर की गई, जिसे मजिस्ट्रेट ने विचारणीय मान लिया। इसका विरोध करते हुए अभियुक्त ने इसे दूसरी बार मुकदमा चलाने (Double Jeopardy) और न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग के रूप में प्रस्तुत किया।
प्रमुख कानूनी प्रश्न:
- क्या पहली शिकायत के खारिज हो जाने के बाद, उसी विषयवस्तु और तथ्यों पर दूसरी आपराधिक शिकायत दायर की जा सकती है?
- क्या CrPC के तहत ऐसी कोई वैधानिक रोक (Statutory Bar) है जो दूसरी शिकायत को प्रतिबंधित करती हो?
- किन परिस्थितियों में ऐसी दूसरी शिकायत को स्वीकार्य (Maintainable) माना जा सकता है?
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:
न्यायालय ने Pramatha Nath Talukdar v. Saroj Ranjan Sarkar (AIR 1962 SC 876) के निर्णय को उद्धृत करते हुए निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिंदुओं को स्पष्ट किया:
🔹 1. दूसरी शिकायत पर विधिक स्थिति (Second Complaint – Legal Position):
- दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) में ऐसी कोई स्पष्ट रोक नहीं है, जो दूसरी शिकायत दर्ज करने से रोके।
- लेकिन, यदि पहली शिकायत तथ्यों की पूर्ण जांच के बाद, कारणों सहित खारिज की गई हो, और वह अंतिम रूप से समाप्त हो चुकी हो (Finality), तो उसी तथ्यों पर दूसरी शिकायत तभी स्वीकार की जा सकती है जब कोई “विशेष या असाधारण परिस्थिति (Exceptional Circumstances)” हो।
🔹 2. “असाधारण परिस्थितियाँ” क्या हो सकती हैं?
- जब प्रथम शिकायत में आवश्यक साक्ष्य/गवाह उपस्थित नहीं थे पर अब उपलब्ध हैं।
- नई सामग्री/तथ्य सामने आए हों जो पहले उपलब्ध नहीं थे।
- यदि प्रथम निर्णय स्पष्ट रूप से कानून की भूल या अन्यायपूर्ण हो।
🔹 3. Poonam Chand Jain के मामले में न्यायालय का विश्लेषण:
- दूसरी शिकायत पहली शिकायत से लगभग समान तथ्यों पर आधारित थी।
- कोई नया साक्ष्य या असाधारण परिस्थिति प्रस्तुत नहीं की गई थी।
- इसलिए दूसरी शिकायत कानून की दृष्टि में अस्वीकार्य (Not Maintainable) घोषित की गई।
न्यायिक चेतावनी:
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि:
“प्रत्येक असफल शिकायत के बाद एक नई शिकायत दर्ज करने की अनुमति देना न्यायालयीय प्रणाली का दुरुपयोग होगा और अभियुक्त को अनावश्यक उत्पीड़न का सामना करना पड़ेगा।”
निर्णय का महत्व:
- यह निर्णय दंड प्रक्रिया संहिता की धाराओं 190 से 204 के अंतर्गत शिकायतों की प्रक्रिया को न्यायिक संतुलन प्रदान करता है।
- यह सुनिश्चित करता है कि शिकायतकर्ता को यदि वास्तविक न्याय नहीं मिला हो, तो उसे सीमित परिस्थितियों में पुनः मौका मिले, लेकिन साथ ही आरोपी के अधिकारों की रक्षा भी हो।
- यह निर्णय “विचारणीयता बनाम उत्पीड़न” के बीच संतुलन स्थापित करता है।
निष्कर्ष:
Poonam Chand Jain बनाम Fazru मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि:
“एक ही तथ्य पर आधारित दूसरी शिकायत, जिसकी पहली शिकायत विवेकाधिकार के आधार पर खारिज हो चुकी हो, तब तक स्वीकार नहीं की जा सकती जब तक कि उसमें कोई नई या असाधारण परिस्थिति न हो।”
यह निर्णय न्यायिक विवेक और विधिक प्रक्रिया के अनुशासन को सुनिश्चित करने की दिशा में एक मील का पत्थर है।