शीर्षक: एकपक्षीय तलाक डिक्री को रद्द करने से इनकार: पत्नी की लापरवाही बनी बाधा – उड़ीसा उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण निर्णय
लेख:
हाल ही में उड़ीसा उच्च न्यायालय ने Hindu Marriage Act की धारा 13 और सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के आदेश 9 नियम 13 (Order 9 Rule 13) के तहत एक महत्त्वपूर्ण निर्णय दिया है, जिसमें न्यायालय ने एक एकपक्षीय (ex parte) तलाक डिक्री को रद्द करने की याचिका को खारिज करना उचित ठहराया। यह फैसला यह स्पष्ट करता है कि यदि पक्षकार न्यायालय की कार्यवाही में भाग लेने में विफल रहता है, और उसकी अनुपस्थिति के लिए कोई पर्याप्त कारण (sufficient cause) नहीं दर्शाता, तो उसके विरुद्ध पारित एकपक्षीय आदेश को केवल सहानुभूति या देरी के आधार पर नहीं हटाया जा सकता।
मामले की पृष्ठभूमि:
इस मामले में पति द्वारा तलाक की याचिका पारिवारिक न्यायालय में दाखिल की गई थी। पत्नी ने शुरू में यद्यपि अपने लिए एक अधिवक्ता नियुक्त किया, लेकिन उसने न तो समय पर लिखित उत्तर (Written Statement) दायर किया और न ही कार्यवाही में कोई भागीदारी दिखाई। न तो उसने देरी के लिए कोई औचित्य प्रस्तुत किया और न ही कार्यवाही में नियमित उपस्थिति दिखाई। इसके परिणामस्वरूप पारिवारिक न्यायालय ने मामले को एकपक्षीय रूप से सुनकर तलाक की डिक्री पारित कर दी।
बाद में पत्नी ने CPC की Order 9 Rule 13 के अंतर्गत इस डिक्री को रद्द करने (set aside) हेतु आवेदन किया, जिसे पारिवारिक न्यायालय ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उसने कोई पर्याप्त कारण नहीं बताया कि वह न्यायालय की कार्यवाही में क्यों अनुपस्थित रही।
उड़ीसा उच्च न्यायालय की टिप्पणी और निर्णय:
उच्च न्यायालय ने पारिवारिक न्यायालय के आदेश को बरकरार रखते हुए निम्नलिखित टिप्पणियाँ कीं:
- “पर्याप्त कारण” का अभाव: पत्नी यह दिखाने में असफल रही कि ऐसा कोई अपरिहार्य या वैध कारण था, जिससे वह न्यायालय में उपस्थित नहीं हो सकी।
- कानूनी प्रतिनिधित्व के बावजूद निष्क्रियता: यद्यपि उसने एक अधिवक्ता नियुक्त किया था और उसका अधिवक्ता न्यायालय में उपस्थित भी हुआ था, फिर भी लिखित उत्तर दाखिल करने में देरी या असफलता का कोई संतोषजनक कारण नहीं दिया गया।
- लापरवाही और टालमटोल का रवैया: पत्नी द्वारा किया गया आवेदन केवल कार्यवाही को लंबित करने और डिक्री की अंतिमता को टालने का प्रयास प्रतीत हुआ, न कि वास्तविक न्याय की मांग।
- प्रक्रियागत नियमों का पालन हुआ: पारिवारिक न्यायालय ने विधि द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का पूर्णतः पालन किया था और कोई प्रक्रियागत त्रुटि (procedural irregularity) नहीं पाई गई।
कानूनी महत्व और प्रभाव:
- न्यायिक प्रक्रियाओं का सम्मान: यह निर्णय यह दर्शाता है कि न्यायालयों की कार्यवाही में भागीदारी प्रत्येक पक्षकार का दायित्व है, और उसकी अनदेखी गंभीर परिणाम ला सकती है।
- Order 9 Rule 13 की सीमाएं स्पष्ट: इस प्रावधान के अंतर्गत केवल तभी राहत मिल सकती है जब यह साबित हो कि पक्षकार को न्यायालय में उपस्थित होने से किसी वास्तविक कठिनाई या असाधारण परिस्थिति ने रोका।
- कानूनी प्रतिनिधित्व का प्रभाव: यदि किसी पक्षकार के पास अधिवक्ता है, तो उसके लिए कार्यवाही में अनुपस्थिति को उचित ठहराना और भी कठिन हो जाता है।
- तलाक के मामलों में समय की संवेदनशीलता: अदालतें यह अपेक्षा करती हैं कि वैवाहिक विवादों का त्वरित और निर्णायक निपटारा हो; बार-बार देरी न्याय के उद्देश्य को कमजोर करती है।
निष्कर्ष:
उड़ीसा उच्च न्यायालय का यह निर्णय न्यायिक कार्यवाही में पक्षकारों की जिम्मेदारी, प्रक्रियात्मक शुद्धता और विलंब की प्रवृत्ति पर रोक लगाने की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह स्पष्ट संदेश देता है कि केवल उपस्थिति दर्ज न करना या डिक्री के विरुद्ध देर से आवेदन कर देना पर्याप्त नहीं, बल्कि उसे मजबूत, सत्यापनीय और उचित कारणों से समर्थित होना चाहिए।
इस निर्णय से स्पष्ट होता है कि एकपक्षीय डिक्री को रद्द करने की राहत एक असाधारण उपाय है, और इसे केवल तब ही लागू किया जाएगा जब न्याय की वास्तविक आवश्यकता और ईमानदार प्रयास अदालत के सामने स्पष्ट रूप से प्रदर्शित हों।