एकपक्षीय तलाक डिक्री को निरस्त करने हेतु आवेदन अस्वीकार करना न्यायोचित – उड़ीसा उच्च न्यायालय का निर्णय

शीर्षक: एकपक्षीय तलाक डिक्री को निरस्त करने हेतु आवेदन अस्वीकार करना न्यायोचित – उड़ीसा उच्च न्यायालय का निर्णय

परिचय:

एकपक्षीय (Ex Parte) डिक्री को लेकर न्यायालयों में अकसर विवाद उत्पन्न होते हैं, विशेष रूप से जब पक्षकार यह दावा करता है कि वह न्यायालय में उपस्थिति दर्ज नहीं कर सका “पर्याप्त कारण” (Sufficient Cause) के चलते। ऐसे ही एक महत्वपूर्ण निर्णय में उड़ीसा उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि यदि किसी पक्षकार को सुनवाई का उचित अवसर मिला हो और फिर भी वह न्यायिक प्रक्रिया में भाग लेने में विफल रहा हो, तो उसे एकपक्षीय डिक्री को निरस्त करने का लाभ नहीं दिया जा सकता।

विवरण:

इस प्रकरण में, पारिवारिक न्यायालय ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 के अंतर्गत तलाक की एकपक्षीय डिक्री (Ex Parte Decree of Divorce) पारित की थी। पत्नी द्वारा दी गई धारा 13 के अंतर्गत डिक्री को आदेश 9 नियम 13 (Order 9 Rule 13, CPC) के तहत निरस्त करने के लिए दायर आवेदन को पारिवारिक न्यायालय ने अस्वीकार कर दिया, और उच्च न्यायालय ने उस अस्वीकृति को उचित ठहराया।

मुख्य निष्कर्ष:

  1. पर्याप्त कारण का अभाव:
    न्यायालय ने पाया कि पत्नी यह स्पष्ट रूप से नहीं बता सकी कि उसे सुनवाई में भाग लेने से किस ‘पर्याप्त कारण’ ने रोका। उसने इस बात की कोई ठोस व्याख्या नहीं दी कि वह न्यायालय की प्रक्रिया में भाग क्यों नहीं ले सकी।
  2. विधिक प्रतिनिधित्व के बावजूद निष्क्रियता:
    यद्यपि पत्नी ने प्रारंभ में पारिवारिक न्यायालय से अधिवक्ता नियुक्त करने की अनुमति नहीं मांगी थी, परंतु बाद में उसने एक वकील नियुक्त किया था, जिसने न्यायालय में उपस्थिति भी दर्ज की थी। इसके बावजूद, समयसीमा के भीतर कोई लिखित उत्तर (Written Statement) दाखिल नहीं किया गया।
  3. उचित कार्यवाही का पालन:
    पारिवारिक न्यायालय ने सभी विधिक औपचारिकताओं का पालन करते हुए एकपक्षीय डिक्री पारित की। उच्च न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि न्यायिक प्रक्रिया में कोई त्रुटि या प्रक्रिया संबंधी अनियमितता नहीं पाई गई।
  4. देरी का औचित्य सिद्ध नहीं किया गया:
    याचिकाकर्ता ने न तो देरी के लिए क्षमा याचना की, न ही समय विस्तार हेतु आवेदन किया, जिससे उसकी निष्क्रियता स्पष्ट हुई। यह लापरवाही किसी अपरिहार्य कारण से उत्पन्न नहीं हुई थी।
  5. विलंब हेतु दुर्भावनापूर्ण प्रयास:
    न्यायालय ने यह भी कहा कि पत्नी द्वारा डिक्री को निरस्त करने हेतु किया गया प्रयास सिर्फ न्यायिक प्रक्रिया की अंतिमता को विलंबित करने के उद्देश्य से किया गया प्रतीत होता है।

निष्कर्ष:

उड़ीसा उच्च न्यायालय का यह निर्णय इस बात को दृढ़ता से स्थापित करता है कि एकपक्षीय डिक्री को निरस्त करने के लिए “पर्याप्त कारण” का स्पष्ट और संतोषजनक होना अत्यंत आवश्यक है। यदि पक्षकार को अवसर दिया गया हो और उसने विधिक सहायता के बावजूद प्रक्रिया में भाग नहीं लिया हो, तो उसकी निष्क्रियता को क्षम्य नहीं माना जा सकता। यह निर्णय उन सभी मामलों के लिए मार्गदर्शक है जहां एकपक्षीय निर्णयों को चुनौती दी जाती है।

प्रासंगिक कानूनी प्रावधान:

  • हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13
  • दीवानी प्रक्रिया संहिता (CPC) की आदेश 9, नियम 13

यह निर्णय एक न्यायिक सिद्धांत को सुदृढ़ करता है कि न्यायिक प्रक्रिया में सक्रिय भागीदारी प्रत्येक पक्ष की जिम्मेदारी है, और न्यायालय केवल उन्हें राहत प्रदान करेगा जो ईमानदारी से अपने अधिकारों की रक्षा हेतु प्रयासरत रहें।