“उबर, ज़ोमैटो, स्विगी जैसी कंपनियों में श्रमिक अधिकार: प्लेटफ़ॉर्म आधारित गिग वर्कर्स की असुरक्षा और कानूनी संरक्षण की ज़रूरत”

लेख शीर्षक:
“उबर, ज़ोमैटो, स्विगी जैसी कंपनियों में श्रमिक अधिकार: प्लेटफ़ॉर्म आधारित गिग वर्कर्स की असुरक्षा और कानूनी संरक्षण की ज़रूरत”


भूमिका:
डिजिटल युग में गिग इकॉनॉमी ने रोज़गार के स्वरूप को बदल दिया है। अब काम केवल दफ़्तर तक सीमित नहीं रहा, बल्कि मोबाइल ऐप के ज़रिए लाखों युवा उबर (Uber), ज़ोमैटो (Zomato), स्विगी (Swiggy), ओला (Ola) जैसे प्लेटफ़ॉर्म से जुड़कर आजीविका चला रहे हैं। ये लोग जिन्हें “गिग वर्कर” या “प्लेटफ़ॉर्म श्रमिक” कहा जाता है, तकनीक आधारित नए श्रमिक वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं।
लेकिन सवाल यह है कि क्या इन श्रमिकों को श्रमिकों वाले अधिकार मिलते हैं? क्या वे भी श्रम कानूनों के अंतर्गत आते हैं?


🔹 गिग वर्कर्स कौन हैं?

गिग वर्कर्स वे होते हैं जो किसी फर्म के स्थायी कर्मचारी नहीं होते, बल्कि स्वतंत्र अनुबंध के आधार पर अस्थायी काम करते हैं
उदाहरण:

  • उबर/ओला के ड्राइवर
  • ज़ोमैटो/स्विगी के डिलीवरी पार्टनर
  • अर्बन कंपनी के सर्विस प्रोवाइडर
  • अमेज़न/फ्लिपकार्ट के लॉजिस्टिक पार्टनर

🔹 गिग वर्कर्स की स्थिति: कर्मचारी या ठेकेदार?

इन प्लेटफ़ॉर्म कंपनियों का दावा होता है कि ये श्रमिक स्वतंत्र ठेकेदार (Independent Contractor) हैं, न कि “Employee”।
इस कारण से:

  • उन्हें ESI, PF, बोनस, पेंशन, मातृत्व लाभ जैसे पारंपरिक श्रमिक अधिकार नहीं मिलते।
  • काम के घंटे, वेतन, बीमा, छुट्टी, कार्यस्थल सुरक्षा आदि कोई स्पष्ट कानूनी गारंटी नहीं होती।
  • कोई यूनियन या सामूहिक मोलभाव का अधिकार नहीं।

लेकिन व्यवहार में ये लोग कंपनियों की शर्तों पर काम करते हैं – जैसे ड्रेस कोड, रेटिंग सिस्टम, पनिशमेंट, इंसेंटिव – जो उन्हें ‘डिजिटल मालिक’ के अधीन बना देता है।


🔹 गिग वर्कर्स के प्रमुख मुद्दे

मुद्दा विवरण
❌ सामाजिक सुरक्षा का अभाव कोई पीएफ, बीमा या पेंशन नहीं
⚖️ कोई कानूनी संरक्षण नहीं श्रम कानून इन पर स्पष्ट रूप से लागू नहीं
💸 न्यूनतम आय की गारंटी नहीं ऑर्डर न मिलने पर शून्य कमाई
⏰ लंबे काम के घंटे अक्सर 10-12 घंटे बिना किसी निर्धारित ब्रेक के
📉 रेटिंग आधारित दंड ग्राहक या सिस्टम की रेटिंग से नौकरी खत्म हो सकती है

🔹 भारत में कानून का वर्तमान ढांचा

1. कोई विशेष केंद्रीय कानून नहीं था

अब तक गिग वर्कर्स को पारंपरिक श्रमिक कानूनों में शामिल नहीं किया गया था।

2. सोशल सिक्योरिटी कोड, 2020 (Code on Social Security)

  • पहली बार गिग और प्लेटफ़ॉर्म वर्कर्स को परिभाषित किया गया
  • सरकार को सोशल सिक्योरिटी स्कीम लागू करने की शक्ति दी गई
  • लेकिन ये नियमित वेतनभोगियों के बराबर अधिकार नहीं देता।

3. राजस्थान गिग वर्कर्स वेलफेयर एक्ट, 2023

  • पहला राज्य जिसने गिग वर्कर्स के लिए अलग कानून बनाया
  • एक वेलफेयर फंड स्थापित किया जाएगा जिसमें कंपनियाँ योगदान देंगी
  • स्वास्थ्य बीमा, दुर्घटना लाभ, पेंशन जैसी सुविधाएँ प्रस्तावित हैं

🔹 अन्य देशों की स्थिति (तुलना)

देश स्थिति
🇬🇧 UK उबर ड्राइवरों को वर्कर का दर्जा – न्यूनतम वेतन और छुट्टी का अधिकार मिला
🇺🇸 USA कैलिफोर्निया में “Gig Worker Protection Law” बना लेकिन बाद में रद्द
🇫🇷 फ्रांस गिग वर्कर्स को न्यूनतम सुरक्षा, बीमा और अनुबंध की गारंटी दी गई है

🔹 गिग वर्कर्स की आवाज और आंदोलन

  • 2021–2024 के बीच उबर, स्विगी, ज़ोमैटो डिलीवरी पार्टनर्स ने हड़तालें और विरोध प्रदर्शन किए
  • उनकी माँगें थीं:
    • न्यूनतम गारंटीड भुगतान
    • बीमा
    • अनुचित सस्पेंशन पर रोक
    • प्लेटफॉर्म पर पारदर्शिता

🔹 समाधान और सुझाव

  1. प्लेटफ़ॉर्म कंपनियों की श्रमिक जिम्मेदारी तय हो
    • उन्हें अपने डिलीवरी पार्टनर्स के लिए बीमा, गारंटीड भत्ता और न्यूनतम वेतन देना चाहिए।
  2. गिग वर्कर्स का राष्ट्रीय पंजीकरण और यूनियन मान्यता
    • उन्हें सामूहिक मोलभाव का अधिकार मिले।
  3. श्रम कानूनों में संशोधन कर गिग श्रमिकों को समावेशित किया जाए
  4. कस्टमर रेटिंग प्रणाली की समीक्षा
    • जिससे दुरुपयोग रोका जा सके।

🔹 निष्कर्ष:

गिग वर्कर्स आधुनिक भारत की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा और मेहनतकश हिस्सा हैं। उबर, ज़ोमैटो, स्विगी जैसी कंपनियाँ डिजिटल टेक्नोलॉजी के ज़रिए सेवा प्रदान कर रही हैं, लेकिन इसके पीछे जो श्रमिक खड़े हैं, उनकी हालत अभी भी अनिश्चित और असुरक्षित है।

समान अधिकार, सामाजिक सुरक्षा और न्यायपूर्ण श्रम शर्तें इन श्रमिकों का संवैधानिक हक हैं। अब समय आ गया है कि सरकार, न्यायपालिका और प्लेटफ़ॉर्म कंपनियाँ मिलकर गिग इकोनॉमी को सिर्फ लाभ का माध्यम नहीं, बल्कि न्यायपूर्ण रोज़गार का मॉडल बनाएं।