उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम – विस्तृत लेख
भूमिका
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (Consumer Protection Act) भारत में उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए बनाया गया एक महत्वपूर्ण कानून है। इसका उद्देश्य उपभोक्ताओं को बाजार में उपलब्ध वस्तुओं और सेवाओं से संबंधित धोखाधड़ी, अनुचित व्यापार व्यवहार और शोषण से बचाना है।
सबसे पहले उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 लागू हुआ, लेकिन बदलते व्यापारिक परिदृश्य, ई-कॉमर्स, डिजिटल लेन-देन और नई उपभोक्ता चुनौतियों को देखते हुए इसे उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 से प्रतिस्थापित कर दिया गया, जो 20 जुलाई 2020 से लागू हुआ।
मुख्य उद्देश्य
- उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा करना।
- अनुचित व्यापार प्रथाओं और धोखाधड़ी को रोकना।
- उपभोक्ता विवादों का त्वरित और सरल निपटारा।
- उपभोक्ताओं को सशक्त बनाना ताकि वे अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हों।
- ई-कॉमर्स और ऑनलाइन लेन-देन में उपभोक्ता हितों की सुरक्षा।
उपभोक्ता की परिभाषा (Section 2(7))
उपभोक्ता वह व्यक्ति है जो –
- किसी वस्तु को मूल्य चुकाकर खरीदता है (पूरी या आंशिक राशि में)।
- किसी सेवा को मूल्य देकर प्राप्त करता है।
- इसमें वे व्यक्ति भी शामिल हैं जो उस वस्तु या सेवा का उपयोग खरीदार की अनुमति से करते हैं।
नोट – व्यावसायिक उद्देश्य से खरीदी गई वस्तु या सेवा के मामले में यह परिभाषा लागू नहीं होती, सिवाय आजीविका कमाने के लिए खरीदी गई वस्तु/सेवा के।
उपभोक्ता के अधिकार (Section 2(9))
- सुरक्षा का अधिकार – जीवन और संपत्ति के लिए सुरक्षित वस्तु और सेवाएं प्राप्त करने का अधिकार।
- जानकारी का अधिकार – वस्तु और सेवा की गुणवत्ता, मात्रा, कीमत, निर्माण, और जोखिमों की जानकारी।
- पसंद करने का अधिकार – विभिन्न विकल्पों में से चुनने की स्वतंत्रता।
- सुने जाने का अधिकार – शिकायत दर्ज करने और निपटारे का अधिकार।
- निवारण का अधिकार – क्षतिपूर्ति या सुधार पाने का अधिकार।
- उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार – अपने अधिकारों और दायित्वों के बारे में जागरूकता।
अधिनियम के तहत संरचना (Consumer Disputes Redressal Commission)
अधिनियम के तहत तीन स्तरीय उपभोक्ता विवाद निवारण तंत्र बनाया गया है –
- जिला आयोग (District Commission) –
- दावा मूल्य: ₹50 लाख तक।
- अध्यक्ष: जिला न्यायाधीश स्तर के अधिकारी।
- राज्य आयोग (State Commission) –
- दावा मूल्य: ₹50 लाख से ₹2 करोड़ तक।
- अध्यक्ष: उच्च न्यायालय के वर्तमान या सेवानिवृत्त न्यायाधीश।
- राष्ट्रीय आयोग (National Commission) –
- दावा मूल्य: ₹2 करोड़ से अधिक।
- अध्यक्ष: सर्वोच्च न्यायालय के वर्तमान या सेवानिवृत्त न्यायाधीश।
शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया
- शिकायतकर्ता – उपभोक्ता, पंजीकृत उपभोक्ता संघ, केंद्र/राज्य सरकार, या अनेक उपभोक्ता।
- आधार –
- दोषपूर्ण वस्तु (Defective Goods)
- कमी वाली सेवा (Deficiency in Service)
- अनुचित व्यापार प्रथा (Unfair Trade Practice)
- ई-कॉमर्स में धोखाधड़ी
- फीस – दावा राशि के अनुसार।
- समय सीमा – घटना की तिथि से 2 वर्ष के भीतर।
ई-कॉमर्स और डिजिटल प्रावधान (Consumer Protection Act, 2019)
- ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर जिम्मेदारी –
- वस्तु/सेवा की पूरी जानकारी देना।
- रिफंड/रिटर्न नीति स्पष्ट करना।
- नकली समीक्षा (Fake Reviews) रोकना।
- उत्पाद दायित्व (Product Liability) – निर्माता, सेवा प्रदाता और विक्रेता दोषपूर्ण वस्तु/सेवा के लिए जिम्मेदार होंगे।
- सेंट्रल कंज्यूमर प्रोटेक्शन अथॉरिटी (CCPA) –
- उपभोक्ता अधिकारों का संरक्षण।
- भ्रामक विज्ञापन रोकना।
- दोषपूर्ण उत्पादों की रिकॉल (Recall)।
दंड प्रावधान
- भ्रामक विज्ञापन – ₹10 लाख तक का जुर्माना और 2 साल तक की कैद (पहली बार); ₹50 लाख तक का जुर्माना और 5 साल तक की कैद (पुनरावृत्ति)।
- उत्पाद दायित्व उल्लंघन – क्षतिपूर्ति और हर्जाना।
- आदेश की अवहेलना – कैद और जुर्माना दोनों।
महत्वपूर्ण विशेषताएं
- सरल प्रक्रिया – बिना वकील के भी शिकायत दर्ज की जा सकती है।
- ऑनलाइन शिकायत – ई-दाख़िल पोर्टल से।
- मध्यस्थता (Mediation) – विवाद का तेज समाधान।
- समूह शिकायत – अनेक उपभोक्ताओं के लिए सामूहिक याचिका।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 और 2019 में अंतर
पहलू | 1986 का अधिनियम | 2019 का अधिनियम |
---|---|---|
कानून लागू होने की तिथि | 24 दिसंबर 1986 | 20 जुलाई 2020 |
दावा मूल्य सीमा | ₹20 लाख / ₹1 करोड़ / ₹1 करोड़ से अधिक | ₹50 लाख / ₹2 करोड़ / ₹2 करोड़ से अधिक |
ई-कॉमर्स प्रावधान | नहीं | हाँ |
उत्पाद दायित्व | नहीं | हाँ |
CCPA | नहीं | हाँ |
मध्यस्थता | नहीं | हाँ |
महत्व
- उपभोक्ता सशक्तिकरण – कानूनी अधिकारों की जागरूकता।
- बाजार में पारदर्शिता – वस्तु और सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार।
- तेज न्याय – उपभोक्ता विवादों का त्वरित निपटारा।
- डिजिटल सुरक्षा – ऑनलाइन लेन-देन में सुरक्षा।
निष्कर्ष
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 उपभोक्ताओं के लिए एक मजबूत ढाल की तरह है। यह न केवल पारंपरिक बाजार में बल्कि ऑनलाइन और डिजिटल व्यापार में भी उनके हितों की रक्षा करता है। तीन स्तरीय निवारण तंत्र, ई-कॉमर्स विनियमन, उत्पाद दायित्व और CCPA जैसी व्यवस्थाएं इसे और अधिक प्रभावी बनाती हैं। यह अधिनियम उपभोक्ताओं और व्यवसायियों दोनों के लिए जिम्मेदारी और पारदर्शिता का संदेश देता है।