उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019: एक प्रभावशाली कानूनी ढांचा और उपभोक्ता अधिकारों की सुरक्षा की दिशा में नया युग

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019: एक प्रभावशाली कानूनी ढांचा और उपभोक्ता अधिकारों की सुरक्षा की दिशा में नया युग

प्रस्तावना:

भारत में उपभोक्ताओं की सुरक्षा हेतु बनाए गए कानूनों में सबसे महत्वपूर्ण कानून है – उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019। यह अधिनियम पुराने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की जगह लेकर आया और बदलते डिजिटल युग की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए नया कानूनी ढांचा प्रस्तुत करता है। यह अधिनियम उपभोक्ताओं को केवल न्याय दिलाने तक सीमित नहीं है, बल्कि उन्हें सशक्त बनाने, जानकारी प्रदान करने और धोखाधड़ी से सुरक्षित रखने की दृष्टि से एक ठोस कदम है।


अधिनियम का उद्देश्य और परिभाषाएँ:

इस अधिनियम का प्रमुख उद्देश्य उपभोक्ताओं के अधिकारों की सुरक्षा करना, अनुचित व्यापार व्यवहारों को रोकना, और विवाद समाधान के सरल एवं सुलभ माध्यम प्रदान करना है। अधिनियम में “उपभोक्ता”, “सेवा”, “उत्पाद”, “अनुचित व्यापार व्यवहार”, और “दोषयुक्त वस्तु” जैसी परिभाषाएं स्पष्ट की गई हैं।


उपभोक्ता अधिकार:

अधिनियम में उपभोक्ताओं को निम्नलिखित अधिकार दिए गए हैं:

  1. सुरक्षा का अधिकार
  2. जानकारी प्राप्त करने का अधिकार
  3. विकल्प चुनने का अधिकार
  4. सुने जाने का अधिकार
  5. मुआवज़ा पाने का अधिकार
  6. उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार

नया कानूनी ढांचा और संस्थान:

  1. उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग – तीन स्तरों पर:
    • जिला आयोग
    • राज्य आयोग
    • राष्ट्रीय आयोग
  2. केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA):
    यह एक नई संस्था है जो भ्रामक विज्ञापनों, अनुचित व्यापार व्यवहारों और अधिकारों के उल्लंघन की निगरानी करती है।
  3. मध्यस्थता (Mediation) का प्रावधान:
    अधिनियम में विवादों के शीघ्र समाधान हेतु मध्यस्थता केंद्रों की स्थापना का प्रावधान है।

ई-कॉमर्स और डिजिटल लेन-देन:

नया अधिनियम ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स और ऑनलाइन लेन-देन को भी कवर करता है। उपभोक्ता अब ऑनलाइन खरीदारी में उत्पन्न विवादों को लेकर भी शिकायत कर सकते हैं। सभी ऑनलाइन विक्रेताओं को स्पष्ट रिटर्न, रिफंड और शिकायत निवारण की नीतियां अपनानी होंगी।


भ्रामक विज्ञापनों पर कार्रवाई:

यदि कोई कंपनी या व्यक्ति उपभोक्ताओं को गुमराह करने वाला विज्ञापन प्रकाशित करता है, तो CCPA को उसे दंडित करने, विज्ञापन पर रोक लगाने और मुआवज़ा दिलवाने का अधिकार है। सेलिब्रिटीज और विज्ञापनदाताओं की भी ज़िम्मेदारी तय की गई है।


दंडात्मक प्रावधान:

अधिनियम में ₹10 लाख तक का जुर्माना और 2 साल तक की सजा तक का प्रावधान है, जो उपभोक्ता को हानि पहुँचाने वाले विक्रेताओं या सेवा प्रदाताओं पर लगाया जा सकता है।


निष्कर्ष:

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 भारतीय उपभोक्ताओं को एक सशक्त और पारदर्शी संरचना प्रदान करता है, जिसमें वे अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होकर कानूनी उपायों का प्रयोग कर सकते हैं। यह अधिनियम डिजिटल युग की चुनौतियों का समाधान प्रदान करता है और उपभोक्ता सशक्तिकरण की दिशा में एक ठोस पहल है।