शीर्षक: उपभोक्ता मंचों में नियुक्तियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट की ऐतिहासिक टिप्पणी – केंद्र सरकार को पांच वर्षीय कार्यकाल सहित नए नियम बनाने का निर्देश
भूमिका:
भारत के उपभोक्ता संरक्षण तंत्र में सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में Ganeshkumar Rajeshwarrao Selukar & Others बनाम Mahendra Bhaskar Limaye & Others वाद में ऐतिहासिक निर्णय दिया है। इस निर्णय में न्यायालय ने केंद्र सरकार को उपभोक्ता विवाद निवारण मंचों (Consumer Forums) में न्यायिक एवं गैर-न्यायिक सदस्यों की नियुक्ति हेतु नए नियम अधिसूचित करने का निर्देश दिया है। साथ ही, इन नियमों में पांच वर्ष की निश्चित अवधि (Tenure) शामिल करने पर विशेष जोर दिया गया है।
मामले की पृष्ठभूमि:
इस मामले में याचिकाकर्ताओं ने उपभोक्ता मंचों में न्यायिक और गैर-न्यायिक सदस्यों की चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता और स्थायित्व की कमी की ओर सुप्रीम कोर्ट का ध्यान आकर्षित किया। वर्तमान नियमों के तहत नियुक्ति प्रक्रिया में अनिश्चितता और मनमानी का खतरा उत्पन्न हो रहा था, जिससे उपभोक्ता मंचों की कार्यक्षमता और निष्पक्षता प्रभावित हो रही थी।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने निम्नलिखित प्रमुख निर्देश दिए:
- नए नियमों की अधिसूचना:
केंद्र सरकार को निर्देशित किया गया है कि वह उपभोक्ता मंचों में नियुक्तियों को लेकर नए और विस्तृत नियम शीघ्र अधिसूचित करे। - निश्चित कार्यकाल की अनिवार्यता:
नियमों में यह प्रावधान अनिवार्य रूप से शामिल हो कि सभी न्यायिक एवं गैर-न्यायिक सदस्यों का कार्यकाल पांच वर्ष का होगा। इससे कार्यकाल की स्पष्टता बनेगी और मंचों में स्थायित्व आएगा। - न्युक्तियों में पारदर्शिता:
चयन प्रक्रिया को स्वतंत्र, निष्पक्ष और मेरिट आधारित बनाने हेतु नियमों में स्पष्ट दिशा-निर्देश सम्मिलित किए जाएं। - कार्यप्रणाली की समीक्षा:
उपभोक्ता मंचों की कार्यशैली, मामलों के निपटारे की गति और गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए आवश्यक प्रशासनिक एवं संरचनात्मक सुधार लागू किए जाएं।
निर्णय का महत्व:
- यह निर्णय उपभोक्ता मंचों की स्वतंत्रता और विश्वसनीयता बनाए रखने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।
- पांच वर्षीय कार्यकाल से सदस्यों को निरंतरता और स्थायित्व मिलेगा, जिससे मामलों के निपटारे में गति और गुणवत्ता सुनिश्चित हो सकेगी।
- चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता उपभोक्ताओं के न्याय में विश्वास को बढ़ाएगी।
निष्कर्ष:
Ganeshkumar Rajeshwarrao Selukar बनाम Mahendra Bhaskar Limaye मामले में दिया गया सुप्रीम कोर्ट का निर्णय उपभोक्ता कानून व्यवस्था में आवश्यक और सकारात्मक बदलाव की नींव रखता है। यह न केवल उपभोक्ता मंचों की कार्यप्रणाली को सुदृढ़ बनाएगा, बल्कि आम नागरिकों के अधिकारों की रक्षा की दिशा में एक सशक्त कदम भी है। अब यह केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है कि वह सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन कर जल्द से जल्द ठोस और प्रभावशाली नियमों को अधिसूचित करे।