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उन्नाव कोर्ट परिसर में बवाल: वकील बनाम पुलिस—कौन सही, कौन गलत? न्यायिक व्यवस्था पर उठा बड़ा सवाल

उन्नाव कोर्ट परिसर में बवाल: वकील बनाम पुलिस—कौन सही, कौन गलत? न्यायिक व्यवस्था पर उठा बड़ा सवाल

       उन्नाव जिला एक बार फिर सुर्खियों में है, लेकिन इस बार किसी सामान्य घटना के कारण नहीं। जिस स्थान को न्याय का मंदिर कहा जाता है, वही कोर्ट परिसर सोमवार को रणभूमि में बदल गया। पुलिस और वकीलों के बीच ऐसा तनाव फैला कि पूरा माहौल गरमा गया। आरोप-प्रत्यारोप, मारपीट, धक्का-मुक्की और फिर कई लोग घायल—यह सब देखकर जनता के मन में एक ही प्रश्न उठ रहा है:
जब कानून के रक्षक ही टकराने लगें, तो कानून की रक्षा कौन करेगा?

       इस घटना ने न सिर्फ उन्नाव के प्रशासन को हिला दिया बल्कि पूरे प्रदेश में बहस छेड़ दी है कि हमारी न्यायिक प्रणाली की गरिमा को आखिर कौन बचाएगा।


 घटना की पृष्ठभूमि: दही थाना क्षेत्र से शुरू हुआ विवाद

        पूरा मामला उन्नाव के दही थाना क्षेत्र में शुरू हुआ, जहाँ पुलिस ने एक मामले में कुछ अधिवक्ताओं को गिरफ्तार किया। पुलिस इन्हें रिमांड पर लेने के लिए कोर्ट में पेश करने पहुँची।
उधर स्थानीय वकीलगण पहले ही गिरफ्तारी के विरोध में अदालत में मौजूद थे। वे आरोप लगा रहे थे कि—

  • पुलिस ने घर में घुसकर अवैध तरीके से पिटाई की,
  • गिरफ्तारी कानूनन प्रक्रियाओं का पालन किए बिना की गई,
  • पुलिस लगातार अधिवक्ताओं को निशाना बना रही है।

       यही तनाव कोर्ट में दोनों पक्षों के आमने-सामने आते ही भड़क उठा और देखते ही देखते कोर्ट परिसर अखाड़े में बदल गया


 कोर्ट परिसर की स्थिति: आरोप, चीख-पुकार और अफरा-तफरी

आंखों देखा हाल बताने वालों के अनुसार—

  • वकीलों की भीड़ अचानक सक्रिय हुई,
  • पुलिसकर्मियों और अधिवक्ताओं के बीच तेज बहस और नोकझोंक शुरू हो गई,
  • बहस इतनी गरमाई कि दोनों ओर से धक्का-मुक्की शुरू हो गई,
  • फिर कुछ ही मिनटों में लाठी-डंडे, घूंसे और थप्पड़ चलने लगे,
  • कई पुलिसकर्मी और कुछ अधिवक्ता घायल स्थिति में जमीन पर गिर पड़े

ऐसी तस्वीरें जो किसी राजनीतिक रैली में भी कम देखने को मिलती हैं, न्यायालय परिसर के अंदर देख जनता हतप्रभ रह गई।


 जिला जज की निर्णायक कार्रवाई

घटना की भीषणता और बढ़ते तनाव को देखते हुए जिला जज ने तुरंत हस्तक्षेप किया
उन्होंने दो अहम आदेश दिए:

1. दोषी पुलिसकर्मियों और थाना प्रभारी के निलंबन का निर्देश

     जिला जज ने स्पष्ट कहा कि कोर्ट परिसर में तैनात पुलिसकर्मियों का व्यवहार अस्वीकार्य था। प्राथमिक जांच में जिन पुलिसकर्मियों की लापरवाही और अनुचित व्यवहार सामने आए, उनकी तुरंत निलंबन की संस्तुति की गई

2. पुलिस की रिमांड अर्ज़ी रद्द

       पुलिस द्वारा आरोपित वकीलों को रिमांड पर लेने की मांग की गई थी, लेकिन हिंसक घटनाओं और गिरफ्तारी की प्रक्रियाओं पर उठे सवालों को देखते हुए कोर्ट ने रिमांड अर्जी खारिज कर दी

       जिला जज की इस कार्रवाई को वकीलों ने सराहा, जबकि पुलिस विभाग में इससे हड़कंप मच गया।


वकीलों का पक्ष: “घर में घुसकर पिटाई… पुलिस बेलगाम हो चुकी है”

अधिवक्ताओं ने गंभीर आरोप लगाए:

  • पुलिस ने बगैर नोटिस दिए वकीलों के घर में जबरन प्रवेश किया,
  • परिवारजनों से बदसलूकी की गई,
  • वकीलों के साथ मारपीट एवं अपमानजनक व्यवहार किया गया,
  • न्याय पाने के लिए कोर्ट में आए, लेकिन पुलिस ने उन्हें डराने-धमकाने की कोशिश की

उनका स्पष्ट कहना है—
“जब हम ही सुरक्षित नहीं, तो आम जनता कैसे सुरक्षित होगी?”

वकील संगठन अब इस मामले में सख्त departmental probe और पुलिस अधिकारियों पर FIR की मांग कर रहे हैं।


 पुलिस का पक्ष: “हम पर पहले हमला हुआ”

      पुलिस अधिकारियों ने घटनाओं का अपना संस्करण पेश किया:

  • पुलिस का कहना है कि वकीलों की भीड़ ने रिमांड पर पेश होने आए पुलिसकर्मियों पर पहले हमला किया,
  • कोर्ट परिसर में घेरकर मारपीट की गई,
  • पुलिस केवल अपना कानूनी कर्तव्य निभाने आई थी,
  • कई पुलिसकर्मी गंभीर रूप से घायल हुए हैं।

पुलिस ने यह भी दावा किया कि वीडियो फुटेज में सब स्पष्ट दिखाई देगा।


 लेकिन बड़ा सवाल वही—कौन सही और कौन गलत?

      दोनों पक्ष अपनी-अपनी दलील दे रहे हैं। पर असली समस्या यह नहीं कि किसने धक्का पहले दिया।
असली मुद्दा यह है कि न्यायालय परिसर हिंसा का मैदान कैसे बन गया?

कुछ बड़ी चिंताएँ सामने आती हैं—

  1. कानून के रक्षक आपस में टकराएँ, तो कानून का सम्मान कौन करेगा?
  2. कोर्ट परिसर में सुरक्षा व्यवस्था इतनी कमजोर क्यों?
  3. क्या पुलिस-वकील संबंधों में तनाव बढ़ता जा रहा है?
  4. आम जनता इस माहौल में न्याय के लिए कैसे भरोसा करे?
  5. क्या पुलिस की गिरफ्तारी प्रक्रिया वाकई मनमानी थी?
  6. क्या वकीलों का विरोध हिंसा की ओर नहीं मुड़ा?

इन सभी सवालों के जवाब सिर्फ एक निष्पक्ष, हाई-लेवल जांच ही दे सकती है।


 न्यायिक व्यवस्था की गरिमा पर खतरा

कोर्ट परिसर का अर्थ होता है—मर्यादा, अनुशासन और कानून की सर्वोच्चता।
जब उसी स्थान पर:

  • लाठियाँ चलें,
  • चीखें गूंजें,
  • पुलिस और वकील आपस में भिड़ें,

तो प्रणाली की नींव हिलना स्वाभाविक है।

यदि यह प्रवृत्ति बढ़ती है, तो न्यायिक प्रक्रिया पर जनता का विश्वास कम हो सकता है, और यह लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए बेहद खतरनाक संकेत है।


 क्या इस मामले की हाई-लेवल जांच जरूरी है? बिल्कुल!

इस घटना की गंभीरता देखकर यह स्पष्ट है कि—

✔ सिर्फ विभागीय जांच से सच्चाई बाहर नहीं आएगी
✔ दोनों पक्षों के प्रभाव में तथ्य दब सकते हैं
✔ न्यायालय की गरिमा को बहाल करने के लिए स्वतंत्र एवं निष्पक्ष जांच अत्यावश्यक है

इसलिए कई नागरिक, अधिवक्ता संघ और सामाजिक संगठन CB-CID या न्यायिक जांच की मांग कर रहे हैं।

यदि दोषी पुलिसकर्मी हैं—तो उन्हें कड़ी कार्रवाई मिलनी चाहिए।
यदि हिंसा वकीलों द्वारा भड़काई गई—तो उनके खिलाफ भी सख्त दंड होना चाहिए।
कानून सबके लिए बराबर है।


 जनता की राय—गुस्सा फूट पड़ा सोशल मीडिया पर

      घटना के बाद सोशल मीडिया पर जनता में भारी रोष दिखाई दे रहा है।
लोग सवाल पूछ रहे हैं—

  • “कोर्ट में सुरक्षा कहाँ थी?”
  • “क्या वकील और पुलिस अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर रहे हैं?”
  • “क्या आम आदमी कभी न्याय पा सकेगा?”
  • “क्या कानून व्यवस्था पूरी तरह ढह गई है?”

उन्नाव ही नहीं, पूरे उत्तर प्रदेश में यह वाद-विवाद चर्चा का विषय बन गया है।


 आगे का रास्ता: सुधार की आवश्यकता

ऐसी घटनाएँ एक चेतावनी हैं कि—

1. पुलिस और अधिवक्ताओं के बीच समन्वय बढ़ाने की आवश्यकता है

सामाजिक शांति और न्यायिक सुधार के लिए दोनों को सहयोग करना होगा।

2. कोर्ट परिसर की सुरक्षा मजबूत करनी होगी

CCTV, सुरक्षाकर्मी, प्रवेश नियंत्रण आदि का पालन अनिवार्य होना चाहिए।

3. गिरफ्तारी और रिमांड प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़नी चाहिए

ताकि किसी पक्ष को मनमानी का अवसर न मिले।

4. विवादों का समाधान ‘संवाद’ से होना चाहिए, ‘हिंसा’ से नहीं

क्योंकि दोनों ही पक्ष जनता की सेवा के लिए मौजूद हैं।


 निष्कर्ष: न्याय की राह पर सवाल, जवाब इंतजार में

       उन्नाव कोर्ट परिसर में हुआ बवाल केवल एक घटना नहीं, बल्कि हमारी न्यायिक और प्रशासनिक प्रणाली की वर्तमान चुनौतियों का प्रतीक है।
जब पुलिस और वकील जैसे दो महत्वपूर्ण स्तंभ आपस में भिड़ जाएँ, तो यह अत्यावश्यक है कि:

  • सच्चाई सामने आए
  • दोषियों पर कार्रवाई हो
  • और न्यायालय की गरिमा बहाल की जाए

अब गेंद प्रशासन और सरकार के पाले में है।
जनता, अधिवक्ता और पुलिस—तीनों ही जवाब का इंतजार कर रहे हैं।