उत्तर प्रदेश शहरी भवन (किराया नियंत्रण एवं उन्मूलन) अधिनियम, 1972
(Uttar Pradesh Urban Buildings (Regulation of Letting, Rent and Eviction) Act, 1972)
📘 परिचय
उत्तर प्रदेश शहरी भवन किराया नियंत्रण अधिनियम, 1972 (जिसे संक्षेप में U.P. Rent Control Act, 1972 भी कहा जाता है) राज्य सरकार द्वारा लागू किया गया एक महत्त्वपूर्ण विधिक दस्तावेज है, जिसका उद्देश्य है:
- किरायेदारों को अनुचित बेदखली से सुरक्षा प्रदान करना,
- किराए की दर को नियमित करना,
- और मकान मालिकों के वैध अधिकारों को सुनिश्चित करना।
यह अधिनियम मुख्यतः शहरी क्षेत्रों में लागू होता है और यह “शहरी भवनों के किराया, कब्जा और बेदखली को नियंत्रित करने हेतु” बनाया गया है।
🏛️ अधिनियम की प्रमुख विशेषताएं
✅ 1. अधिनियम का क्षेत्रीय और विषयगत विस्तार (Section 1, 2)
- अधिनियम केवल शहरी क्षेत्रों में स्थित भवनों पर लागू होता है।
- यह निजी मकानों, दुकानों, और व्यावसायिक भवनों पर लागू होता है।
- सरकारी भवन, धार्मिक स्थल, और कुछ विशेष भवन इस अधिनियम के दायरे से बाहर हैं।
✅ 2. परिभाषाएं (Section 3)
- “भवन” का अर्थ ऐसा कोई भी भवन या उसका भाग जिसमें निवास, व्यापार या कार्यालय का उपयोग हो रहा हो।
- “किरायेदार” ऐसा व्यक्ति जो भवन में वैध रूप से निवास करता है, भले ही उसका पट्टा समाप्त हो चुका हो।
✅ 3. मानक किराया और वसूली (Standard Rent) (Section 4–10)
- मकान मालिक स्वेच्छा से किराया नहीं बढ़ा सकता।
- किरायेदार Rent Control Authority से मानक किराया निर्धारित करवाने की मांग कर सकता है।
- मानक किराया निर्धारित करने के लिए भवन का निर्माण वर्ष, क्षेत्रफल, मरम्मत की स्थिति आदि देखी जाती है।
✅ 4. किरायेदार की बेदखली पर नियंत्रण (Section 20)
किरायेदार को बिना वैध कारण के मकान से नहीं निकाला जा सकता। निम्न परिस्थितियों में ही बेदखली संभव है:
- किराया लगातार 4 माह तक न देना,
- भवन को जानबूझकर नुकसान पहुंचाना,
- भवन को बिना अनुमति उप-किराए पर देना,
- मकान मालिक की खुद की आवासीय आवश्यकता होना,
- भवन की मरम्मत या पुनर्निर्माण हेतु खाली कराना आवश्यक होना।
✅ 5. मकान मालिक की जरूरत पर रिक्ति (Section 21)
- यदि मकान मालिक भवन का स्वयं उपयोग करना चाहता है (स्वंय निवास या अपने परिवार हेतु), तो वह किरायेदार से रिक्ति की मांग कर सकता है।
- इसके लिए प्राधिकृत अधिकारी (Prescribed Authority) से पूर्व अनुमति लेना आवश्यक होता है।
✅ 6. विवाद समाधान प्रक्रिया
- अधिनियम के अंतर्गत विवादों को हल करने के लिए Prescribed Authority नियुक्त की जाती है, जो सामान्यतः अपर जिला मजिस्ट्रेट (ADM) होते हैं।
- निर्णय के विरुद्ध Revision Petition उच्च न्यायालय या जिला न्यायालय में दायर की जा सकती है।
⚖️ महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय
- Om Prakash Gupta v. Digvijendrapal Gupta (AIR 1982 SC 1230)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मकान मालिक की “सत्य आवश्यकताओं” को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, बशर्ते उसका उद्देश्य मकान को पुनः किराए पर देना न हो। - Smt. Kailashi Devi v. Additional District Judge, Kanpur
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि बेदखली की कार्यवाही केवल अधिनियम में वर्णित शर्तों के अंतर्गत ही वैध मानी जाएगी।
📌 अधिनियम की सीमाएं और आलोचना
- दुरुपयोग की संभावना: कई बार किरायेदार अधिनियम की सुरक्षा का दुरुपयोग करते हैं और वर्षों तक भवन खाली नहीं करते।
- पुराना किराया: अधिनियम के तहत कई किरायेदार आज भी 1970–80 के किराए पर रह रहे हैं जिससे मकान मालिक को आर्थिक नुकसान होता है।
- मरम्मत में रुचि की कमी: किराया सीमित होने के कारण मकान मालिक भवन के रखरखाव में रुचि नहीं लेते।
🔄 मॉडल टेनेंसी एक्ट, 2021 का संभावित प्रभाव
यदि उत्तर प्रदेश मॉडल टेनेंसी एक्ट, 2021 को अपनाता है, तो निम्नलिखित परिवर्तन संभावित हैं:
- सभी किराया अनुबंध लिखित और पंजीकृत होंगे।
- किराया विवादों का निपटान Rent Tribunal द्वारा समयबद्ध तरीके से किया जाएगा।
- किरायेदार और मकान मालिक दोनों को संतुलित अधिकार और दायित्व मिलेंगे।
✅ निष्कर्ष
उत्तर प्रदेश किराया नियंत्रण अधिनियम, 1972 का मूल उद्देश्य किरायेदारों को सुरक्षा देना था, जो उस समय की सामाजिक-आर्थिक स्थिति के अनुरूप उपयुक्त था। परंतु आज के समय में, बढ़ते शहरीकरण और मकानों की मांग को देखते हुए इस अधिनियम में कई संशोधन और सुधार की आवश्यकता है। यदि राज्य सरकार मॉडल टेनेंसी एक्ट को लागू करती है, तो इससे न केवल मकानों की उपलब्धता बढ़ेगी, बल्कि किरायेदारी संबंधों में पारदर्शिता और न्याय भी सुनिश्चित होगा।