“उत्तराधिकार प्रमाणपत्र (Succession Certificate): प्रक्रिया, महत्व और उपयोग – एक कानूनी मार्गदर्शिका”
परिचय
किसी व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात उसकी संपत्ति, बैंक बैलेंस, PPF, म्यूचुअल फंड, शेयर या अन्य निवेश उसके उत्तराधिकारियों को हस्तांतरित करने के लिए एक विधिक दस्तावेज की आवश्यकता होती है। यह दस्तावेज़ “उत्तराधिकार प्रमाणपत्र” (Succession Certificate) कहलाता है।
उत्तराधिकार प्रमाणपत्र अदालत द्वारा जारी किया गया एक अधिकृत दस्तावेज़ होता है, जो यह प्रमाणित करता है कि आवेदनकर्ता मृत व्यक्ति का वैध उत्तराधिकारी है और उसे मृतक की संपत्ति या राशि प्राप्त करने का अधिकार है।
उत्तराधिकार प्रमाणपत्र क्या है?
उत्तराधिकार प्रमाणपत्र एक ऐसा दस्तावेज होता है जिसे जिला सिविल न्यायालय या उच्च न्यायालय द्वारा जारी किया जाता है, ताकि कोई व्यक्ति मृतक की चल संपत्ति (बैंक बैलेंस, निवेश आदि) प्राप्त कर सके।
यह प्रमाणपत्र Indian Succession Act, 1925 की धारा 372 के अंतर्गत जारी किया जाता है।
उत्तराधिकार प्रमाणपत्र की आवश्यकता कब होती है?
जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है और:
- उसने कोई वसीयत नहीं बनाई (intestate death),
- संपत्ति बैंक, PPF, पोस्ट ऑफिस, LIC, म्यूचुअल फंड आदि में जमा है,
- कोई नामांकित व्यक्ति नहीं है, या
- नामांकन विवादित या अनुपलब्ध है,
तब उत्तराधिकारी को संपत्ति प्राप्त करने के लिए Succession Certificate की आवश्यकता होती है।
किस संपत्ति पर लागू होता है?
उत्तराधिकार प्रमाणपत्र चल संपत्ति (Movable Property) पर लागू होता है, जैसे:
- बैंक खाते और फिक्स्ड डिपॉजिट
- पब्लिक प्रॉविडेंट फंड (PPF)
- म्यूचुअल फंड
- शेयर और डिबेंचर
- इंश्योरेंस राशि
- सैलरी/पेंशन बकाया
- कोई और भुगतान जो मृतक के नाम पर लंबित हो
Note: अचल संपत्ति (जैसे जमीन-जायदाद) के लिए सामान्यतः Legal Heir Certificate या Court Declaration की जरूरत होती है।
उत्तराधिकार प्रमाणपत्र प्राप्त करने की प्रक्रिया
1. आवेदन दाखिल करना
आवेदनकर्ता को जिला न्यायालय या सिविल जज (सीनियर डिविजन) के समक्ष निम्न विवरण के साथ आवेदन करना होता है:
- मृतक का नाम और पता
- मृत्यु की तिथि और स्थान
- मृत्यु प्रमाण पत्र की प्रति
- संपत्ति / राशि का विवरण
- उत्तराधिकारियों की सूची
- आवेदनकर्ता का उत्तराधिकारी होने का दावा
- कोर्ट फीस (अलग-अलग राज्यों में अलग)
2. कोर्ट की सुनवाई
- कोर्ट सभी दस्तावेजों की जांच करता है
- सार्वजनिक सूचना प्रकाशित होती है (अखबार में), जिसमें कोई आपत्ति दर्ज करने का समय (30 दिन) दिया जाता है
- अगर कोई आपत्ति नहीं आती, तो न्यायालय प्रमाणपत्र जारी करता है
3. प्रमाणपत्र जारी होना
- कोर्ट जांच के बाद उत्तराधिकार प्रमाणपत्र जारी करता है
- प्रमाणपत्र में संपत्ति का विवरण और प्रमाणित उत्तराधिकारी का नाम दर्ज होता है
जरूरी दस्तावेज
- मृतक का मृत्यु प्रमाण पत्र
- पहचान पत्र और निवास प्रमाण (आवेदनकर्ता का)
- मृतक से संबंध का प्रमाण (जैसे जन्म प्रमाण पत्र, विवाह प्रमाण पत्र)
- बैंक खाता/निवेश/संपत्ति का विवरण
- कोर्ट फीस/स्टांप शुल्क
- शपथ पत्र (Affidavit)
कोर्ट फीस और समय सीमा
- फीस: यह राज्य सरकार द्वारा निर्धारित होती है, कई राज्यों में यह संपत्ति के मूल्य का 2-3% तक हो सकती है।
- समय: औसतन 2 से 6 महीने लगते हैं, लेकिन विवाद की स्थिति में यह और लंबा हो सकता है।
कौन आवेदन कर सकता है?
- पति या पत्नी (widow/widower)
- पुत्र/पुत्री
- माता-पिता
- अन्य वैध उत्तराधिकारी (Legal Heir)
यदि एक से अधिक उत्तराधिकारी हों, तो सभी को संयुक्त रूप से आवेदन करना चाहिए या किसी एक को Power of Attorney दी जा सकती है।
वसीयत और उत्तराधिकार प्रमाणपत्र में अंतर
आधार | वसीयत (Will) | उत्तराधिकार प्रमाणपत्र |
---|---|---|
अस्तित्व | मृतक द्वारा जीवित रहते हुए तैयार की जाती है | मृत्यु के बाद उत्तराधिकारी द्वारा प्राप्त किया जाता है |
उद्देश्य | संपत्ति के वितरण का निर्देश | संपत्ति / राशि प्राप्त करने का अधिकार देना |
कानूनी प्रक्रिया | Probate द्वारा वैधता | District Court द्वारा आवेदन |
लागू | चल व अचल संपत्ति दोनों | केवल चल संपत्ति पर लागू |
महत्वपूर्ण कानूनी धाराएं
- Indian Succession Act, 1925 – धारा 370 से 390
- Indian Evidence Act, 1872 – दस्तावेज़ी प्रमाणों के लिए
- Civil Procedure Code, 1908 – आवेदन प्रक्रिया
उत्तराधिकार प्रमाणपत्र का महत्व
- बैंक, पोस्ट ऑफिस, इंश्योरेंस कंपनी जैसे संस्थान केवल उत्तराधिकार प्रमाणपत्र के आधार पर ही भुगतान करते हैं यदि नामांकन नहीं है।
- यह प्रमाणपत्र कानूनी रूप से मृतक की संपत्ति को सुरक्षित रूप से स्थानांतरित करने की प्रक्रिया को वैध बनाता है।
- कई बार यह संपत्ति विवादों को सुलझाने में सहायक होता है।
कुछ महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय
- Rameshwari Devi v. Union of India (1995) – सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उत्तराधिकार प्रमाणपत्र के बिना बैंक राशि स्थानांतरित नहीं की जा सकती।
- Shyam Lal v. State Bank of India (2006) – केवल नामांकन से पूर्ण स्वामित्व नहीं आता; उत्तराधिकारी को कानून के अनुसार संपत्ति प्राप्त करनी होती है।
निष्कर्ष
उत्तराधिकार प्रमाणपत्र किसी मृत व्यक्ति की चल संपत्ति के उत्तराधिकारियों को उनका वैध अधिकार दिलाने का कानूनी साधन है। यदि कोई व्यक्ति अपने जीवनकाल में वसीयत नहीं बनाता या नामांकन नहीं करता, तो उसके उत्तराधिकारी को यह प्रमाणपत्र लेना अनिवार्य हो जाता है।
यह प्रमाणपत्र न्यायालय द्वारा जांच के बाद जारी किया जाता है ताकि किसी भी धोखाधड़ी या विवाद से बचा जा सके और सही व्यक्ति को संपत्ति का स्वामित्व मिल सके।