शीर्षक: उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश को पूर्व में निर्णय किए गए अवमानना मामले की पुनः सुनवाई का अधिकार नहीं – एक महत्वपूर्ण निर्णय
परिचय:
भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा LAWS(SC)-2025-4-116 में पारित एक हालिया निर्णय ने न्यायिक अनुशासन, क्षेत्राधिकार की सीमा और समन्वय पीठों (Coordinate Benches) की भूमिका पर महत्वपूर्ण स्पष्टता प्रदान की है। इस निर्णय में कहा गया कि उच्च न्यायालय का एकल न्यायाधीश उस अवमानना (Contempt) के मामले की पुनः सुनवाई या पुनर्निर्णय नहीं कर सकता, जिसे पहले उसी न्यायालय के किसी अन्य एकल न्यायाधीश द्वारा निपटाया जा चुका हो। यह निर्णय न केवल न्यायिक अनुशासन की पुष्टि करता है, बल्कि कानून की प्रक्रिया में व्यवस्था और अनुक्रम बनाए रखने की आवश्यकता को भी रेखांकित करता है।
विवरण:
इस मामले की पृष्ठभूमि में RBT Private Ltd. से जुड़ा एक व्यापारिक विवाद था, जिसमें दिल्ली उच्च न्यायालय के एक एकल न्यायाधीश ने प्रतिवादी को अवमानना का दोषी पाया और अवमानना शमन (purging of contempt) के लिए समय प्रदान किया। इस बीच, न्यायालय के रोस्टर में परिवर्तन होने पर मामला एक अन्य एकल न्यायाधीश के समक्ष आया, जिन्होंने पूर्व में पारित आदेश के विपरीत यह निर्णय दे दिया कि कोई अवमानना हुई ही नहीं और शो कॉज़ नोटिस (Show Cause Notice) को रद्द कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ:
सुप्रीम कोर्ट ने इस स्थिति पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि ऐसा करना न्यायिक अनुशासन का घोर उल्लंघन है। एक पीठ (Bench) का दूसरी समन्वय पीठ के आदेश की पुनः समीक्षा करना न्यायिक शिष्टाचार के विरुद्ध है और इसे क्षेत्राधिकार का अतिक्रमण माना जाएगा। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि जब एक न्यायाधीश ने अवमानना सिद्ध कर दी है, तो केवल दो प्रश्न शेष रह जाते हैं – अवमानना को शुद्ध करने की प्रक्रिया और दंड का निर्धारण।
कानूनी प्रावधानों का संदर्भ:
इस मामले में जिन कानूनी धाराओं का उल्लेख किया गया, वे निम्नलिखित हैं:
- Arbitration and Conciliation Act, 1996 की धारा 11 और 9
- Insolvency and Bankruptcy Code, 2016 की धारा 9 और 14
- Contempt of Courts Act, 1971 की धारा 12, 13 और 19
विशेष रूप से धारा 19, जो अपील के अधिकार को निर्दिष्ट करती है, के अंतर्गत प्रतिवादी को यह अधिकार था कि वह उच्च न्यायालय की डिवीजन बेंच में अपील करे, न कि एक अन्य एकल न्यायाधीश के समक्ष पुनः सुनवाई की मांग करे।
सुप्रीम कोर्ट का अंतिम निर्णय:
सर्वोच्च न्यायालय ने दूसरे एकल न्यायाधीश के आदेश को रद्द करते हुए स्पष्ट किया कि यह आदेश असंगत और क्षेत्राधिकार से बाहर था। न्यायालय ने मामले को पुनः उसी अवस्था में उच्च न्यायालय को भेजा, जहाँ पहली बार अवमानना सिद्ध की गई थी, ताकि आगे की कार्यवाही उस निर्णय के अनुरूप की जा सके।
निष्कर्ष:
यह निर्णय न्यायिक प्रक्रिया की मर्यादा और अनुशासन की रक्षा में एक मील का पत्थर है। इससे स्पष्ट होता है कि समान स्तर की न्यायिक पीठों को एक-दूसरे के निर्णयों का सम्मान करना चाहिए और यदि असहमति हो तो उचित अपीली प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए। यह निर्णय भारतीय न्यायिक व्यवस्था की निष्पक्षता, स्थिरता और अनुशासन को सुदृढ़ करता है।