ईडी को बंद परिसरों को सील करने का अधिकार नहीं: केंद्र सरकार ने मद्रास हाईकोर्ट में दिया बड़ा बयान

ईडी को बंद परिसरों को सील करने का अधिकार नहीं: केंद्र सरकार ने मद्रास हाईकोर्ट में दिया बड़ा बयान


🔷 भूमिका:

प्रवर्तन निदेशालय (ED) भारत सरकार की एक प्रमुख जांच एजेंसी है, जिसे मनी लॉन्ड्रिंग (धन शोधन) से संबंधित मामलों की जांच के लिए प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट, 2002 (PMLA) के तहत अधिकार प्राप्त हैं। पिछले कुछ वर्षों में ED की कार्यशैली को लेकर कई बार सवाल उठे हैं, खासकर छापेमारी (search) और संपत्तियों को सील करने को लेकर।

हाल ही में मद्रास हाईकोर्ट में चल रही एक सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया कि ED को PMLA के तहत तलाशी के समय “बंद परिसरों (sealed premises)” को सील करने का कानूनी अधिकार नहीं है। यह बयान PMLA की व्याख्या के संदर्भ में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है।


🔷 मामले की पृष्ठभूमि:

  • प्रवर्तन निदेशालय ने चेन्नई स्थित एक व्यवसायी के परिसरों पर PMLA के तहत छापा मारा था।
  • छापे के दौरान कुछ ऐसे परिसर भी सील कर दिए गए थे जो उस समय बंद थे और तलाशी नहीं ली जा सकी थी।
  • इस कार्रवाई को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता ने मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दायर की।
  • याचिकाकर्ता का तर्क था कि PMLA में बंद परिसरों को सील करने की कोई विशेष धारा या प्रावधान नहीं है, इसलिए यह कार्यवाही अधिकारों से बाहर और मनमानी है।

🔷 केंद्र सरकार का पक्ष:

केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASG) ने न्यायालय को सूचित किया कि:

  1. PMLA की कोई भी धारा ED को बंद परिसरों को सील करने का स्पष्ट अधिकार नहीं देती।
  2. धारा 17 (1) के तहत एजेंसी को केवल “तलाशी लेने” और “संपत्तियों को जब्त करने” का अधिकार है।
  3. यदि कोई परिसर बंद है और उसमें तलाशी नहीं ली जा सकती, तो ED को चाहिए कि वह न्यायालय से अनुमति प्राप्त करे, न कि मनमानी सीलिंग करे।
  4. ऐसा करना न्यायिक प्रक्रिया का उल्लंघन और मौलिक अधिकारों का हनन हो सकता है।

👉 यह पहली बार है जब केंद्र सरकार ने खुले तौर पर ED की कार्रवाई की सीमाओं को अदालत में रेखांकित किया है।


🔷 PMLA का कानूनी विश्लेषण:

धारा 17 – तलाशी और जब्ती (Search and Seizure):

  • यह धारा ED को यह अधिकार देती है कि वह “विश्वास की पुष्टि होने पर” किसी भी स्थान की तलाशी ले सकता है।
  • लेकिन किसी बंद परिसर को बिना तलाशी के सील कर देना इस धारा की व्याख्या के बाहर माना गया है।

धारा 8 – संपत्ति की कुर्की:

  • यह धारा कुर्की की प्रक्रिया को बताती है, लेकिन वह केवल तब लागू होती है जब अदालत संपत्ति को अपराध से जुड़ा मान ले

👉 अतः बंद परिसर को “तलाशी के नाम पर” सील कर देना कानून का विस्तारवादी और मनमाना प्रयोग होगा।


🔷 न्यायालय की प्रतिक्रिया:

मद्रास हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार की इस स्थिति को गंभीरता से लिया और टिप्पणी की कि:

  • यदि ED को ऐसा कोई स्पष्ट अधिकार नहीं है, तो ऐसी कार्रवाई संवैधानिक अधिकारों का हनन हो सकती है।
  • अदालत ने यह भी संकेत दिया कि ऐसे मामलों में स्वामियों की संपत्ति पर अनुचित प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता।

🔷 इस फैसले का व्यापक प्रभाव:

  1. 🔸 ED की शक्ति की सीमा स्पष्ट हुई:
    यह बयान भविष्य में ED के कार्यक्षेत्र को लेकर स्पष्ट मार्गदर्शक सिद्धांत तय करेगा।
  2. 🔸 संविधान के अनुच्छेद 300A की रक्षा:
    “किसी भी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से कानून द्वारा वंचित नहीं किया जा सकता” – इस मौलिक सिद्धांत की पुनः पुष्टि हुई।
  3. 🔸 लोकतांत्रिक संतुलन की आवश्यकता:
    शक्तिशाली जांच एजेंसियों को भी न्यायिक प्रक्रिया और नागरिक अधिकारों का सम्मान करना होगा

🔷 निष्कर्ष:

मद्रास हाईकोर्ट में केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तुत यह बयान न्यायिक व्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण दिशा-निर्देशक साबित होगा। इससे यह स्पष्ट हो गया है कि ED जैसी जांच एजेंसियाँ भी कानून के दायरे में बंधी हैं, और उनकी कार्रवाई मनमानी नहीं हो सकती।

यह फैसला न केवल ED के अधिकारों की सीमाओं को स्पष्ट करता है, बल्कि व्यक्तिगत संपत्ति और नागरिक अधिकारों की रक्षा के प्रति न्यायालयों की प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है।