“ईएमआई न देने पर गाड़ी जब्त करना अवैध: पटना हाई कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला”
भूमिका:
पटना उच्च न्यायालय ने एक अत्यंत महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया है कि लोन की ईएमआई नहीं चुका पाने की स्थिति में रिकवरी एजेंट द्वारा जबरन वाहन की जब्ती न केवल गैरकानूनी है, बल्कि यह व्यक्ति के जीवन के मौलिक अधिकार (Right to Life under Article 21) का भी उल्लंघन है। यह फैसला उन हज़ारों लोगों के लिए राहत की खबर है, जो किसी आर्थिक तंगी के चलते समय पर ईएमआई नहीं चुका पाते।
प्रसंग:
यह फैसला न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद की एकल पीठ ने 19 मई 2023 को सुनाया, जिसमें उन्होंने पाँच रिट याचिकाओं पर विचार किया। याचिकाएं उन ग्राहकों द्वारा दायर की गई थीं जिनकी गाड़ियाँ बैंकों या वित्तीय कंपनियों द्वारा उनके एजेंटों के माध्यम से जबरन उठा ली गई थीं, जबकि वे लोन चुका रहे थे या थोड़ा विलंब हुआ था।
कोर्ट की प्रमुख टिप्पणियाँ:
- रिकवरी एजेंटों द्वारा जबरन गाड़ी उठाना गैरकानूनी है।
- यह व्यक्ति की गरिमा और जीवन जीने के अधिकार (Right to Dignity & Life) का उल्लंघन है।
- बैंक और फाइनेंस कंपनियों को सिविल उपाय (civil remedies) अपनाने चाहिए, न कि जबरन वसूली।
- ऐसे कृत्यों पर एजेंटों के खिलाफ FIR दर्ज करने और वित्तीय संस्थानों पर जुर्माना लगाने का आदेश भी दिया गया।
महत्वपूर्ण निर्देश:
- रिकवरी एजेंटों पर FIR दर्ज हो सकती है यदि वे जबरदस्ती वाहन जब्त करते हैं।
- बैंकों और फाइनेंस कंपनियों को जुर्माना भुगतना पड़ेगा यदि वे कानून का उल्लंघन करती हैं।
- पुलिस को निर्देश दिया गया कि इस तरह की शिकायतों को गंभीरता से लें और तुरंत कार्रवाई करें।
- वित्तीय संस्थान यदि पुनः ऐसा करते हैं, तो सिविल दायित्व के साथ-साथ आपराधिक दायित्व भी बन सकता है।
कानूनी पृष्ठभूमि:
- सुप्रीम कोर्ट पहले ही कई फैसलों में स्पष्ट कर चुका है कि लोन वसूली के लिए गुंडागर्दी या धमकी देना कानूनन अपराध है।
- Reserve Bank of India (RBI) भी अपने निर्देशों में कह चुका है कि बैंकों को सम्मानजनक और कानूनी तरीकों से वसूली करनी चाहिए।
- Securitisation and Reconstruction of Financial Assets and Enforcement of Security Interest (SARFAESI) Act, 2002 के तहत भी प्रक्रिया निर्धारित है, लेकिन उसमें भी जबरन कब्जा नहीं किया जा सकता जब तक उचित नोटिस और अवसर न दिया जाए।
निष्कर्ष:
पटना हाई कोर्ट का यह फैसला भारत में फाइनेंस कंपनियों और बैंकों की मनमानी पर एक बड़ी चोट है। यह न केवल ऋण धारकों के अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि देश में कानूनी प्रक्रिया और नागरिक सम्मान की रक्षा की दिशा में एक बड़ा कदम है। अब यदि कोई व्यक्ति अपनी ईएमआई समय पर नहीं चुका पाता, तो उसके साथ जबरदस्ती और अपमानजनक व्यवहार नहीं किया जा सकता।