इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबित मामलों का संकट: जमानत अर्जियों का निस्तारण भगवान भरोसे
प्रयागराज। भारत के सबसे बड़े उच्च न्यायालयों में से एक, इलाहाबाद हाईकोर्ट, वर्तमान समय में गंभीर दबाव और लंबित मामलों के बोझ तले दबा हुआ है। प्रधान पीठ और लखनऊ खंडपीठ में कुल 11 लाख से अधिक मामले लंबित हैं। इनमें जमानत और अग्रिम जमानत की अर्जियां भी शामिल हैं, जिनका निस्तारण कई बार “भगवान भरोसे” माना जा रहा है। स्थिति इतनी गंभीर है कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इस हाईकोर्ट पर फ्रेश जमानत और लंबित अर्जियों के निस्तारण में देरी पर नाराजगी जताई है।
लंबित मामलों का आंकड़ा
एक अगस्त 2025 तक हाईकोर्ट में लंबित मामलों का आंकड़ा इस प्रकार है:
- प्रधान पीठ: 9,29,607 मामले
- लखनऊ खंडपीठ: 2,12,080 मामले
- कुल लंबित मामले: 11,41,687
इस भारी संख्या के कारण, जमानत और अग्रिम जमानत अर्जियों का निस्तारण काफी जटिल और समय-सापेक्ष बन गया है।
जमानत अर्जियों की सुनवाई की प्रक्रिया
प्रधान पीठ में वर्तमान समय में कुल सात पीठें जमानत और अग्रिम जमानत अर्जियों की सुनवाई के लिए गठित की गई हैं। सुनवाई इस प्रकार होती है:
- फ्रेश अर्जियों की सुनवाई: सबसे पहले नई दाखिल जमानत और अग्रिम जमानत अर्जियों की सुनवाई होती है।
- काज लिस्ट में गई अर्जियां: जिन अर्जियों का नंबर नहीं आया या जिनमें प्रतिशपथ पत्र, जवाब या शिकायतकर्ता की आपत्ति का इंतजार होता है, उन्हें काज लिस्ट में डाल दिया जाता है।
- दिनभर की सुनवाई: दिनभर में सुनवाई में कई अर्जियों का निस्तारण प्रकरण के तथ्यों पर निर्भर करता है। कुछ अर्जियां फ्रेश के तौर पर ही निपट जाती हैं, जबकि कुछ काज लिस्ट में लटक जाती हैं।
सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी
22 मई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने एक गंभीर मामला उठाया। चार साल से जेल में निरुद्ध धोखाधड़ी और जालसाजी के आरोपी लक्ष्य तंवर की जमानत अर्जी इलाहाबाद हाईकोर्ट में 27 बार टली थी। इस पर सुनवाई करते हुए तत्कालीन चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह ने कहा कि जब किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता का सवाल हो और वह चार साल से जेल में बंद हो, तो कोर्ट को याचिका लटकाने का अधिकार नहीं होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट को ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही जल्द पूरा करने और फिर जमानत सुनवाई करने का निर्देश दिया। यह घटना जमानत अर्जियों के लंबित होने के मुख्य कारणों में से एक है।
जजों की कमी और उच्च न्यायालय की कार्यक्षमता
इलाहाबाद हाईकोर्ट में जमानत अर्जियों की सुनवाई में देरी के मुख्य कारणों में जजों की कमी शामिल है। हाल ही में आठ न्यायाधीशों की नियुक्ति हुई, जिससे रिक्त पदों की संख्या आधे से कम हो गई। लेकिन अभी भी हाईकोर्ट में कुल जजों की संख्या 86 है, जबकि पूरी क्षमता 160 जजों की है।
- इनमें से तीन जज स्थानांतरण के अधीन हैं।
- एक जज को न्यायिक कार्य से अलग रखा गया है।
बड़ा प्रदेश होने के कारण, अपराधिक मामलों की संख्या अधिक है और इसी वजह से जमानत व अग्रिम जमानत अर्जियों की संख्या भी अधिक है।
जमानत अर्जियों का लंबित होना
जमानत और अग्रिम जमानत अर्जियों का लंबित रहना कई कारणों से होता है:
- फ्रेश आवेदन की संख्या ज्यादा होना: यदि किसी पीठ में नए आवेदन अधिक होते हैं, तो काज लिस्ट में नंबर आने में लंबा समय लग सकता है।
- प्रतिशपथ पत्र और जवाब की आवश्यकता: कई मामलों में अभियोजन पक्ष का जवाब या शिकायतकर्ता का विरोध होना आवश्यक होता है।
- भारी प्रकरण संख्या: दिनभर में सुनवाई में कई अर्जियों का निस्तारण प्रकरण के तथ्यों पर निर्भर करता है।
- जजों की कमी: कम जजों के कारण सुनवाई की गति धीमी होती है।
ऐसा होने पर, जमानत अर्जियों का निस्तारण भगवान भरोसे माना जाने लगा है।
प्रधान पीठ और लखनऊ खंडपीठ की सुनवाई की स्थिति
- प्रधान पीठ: सात पीठें जमानत सुनवाई के लिए काम कर रही हैं।
- लखनऊ खंडपीठ: यहाँ दो लाख से अधिक मामले लंबित हैं।
सुनवाई प्रक्रिया में यह देखा गया कि काज लिस्ट में जाने वाली अर्जियों का नंबर कब आएगा, यह निश्चित नहीं है। ऐसे मामलों में दिनभर में निस्तारण संभव नहीं हो पाता, और अर्जियों का इंतजार कई माह तक हो सकता है।
हाईकोर्ट प्रशासन द्वारा किए गए प्रयास
हालांकि जजों की कमी और भारी मामले के बोझ के कारण सुनवाई प्रभावित हो रही है, हाईकोर्ट प्रशासन ने कुछ प्रयास किए हैं:
- जमानत और अग्रिम जमानत अर्जियों की सुनवाई के लिए अधिक पीठों का गठन किया गया।
- सुनवाई के क्रम में प्राथमिकता फ्रेश अर्जियों को दी जा रही है।
- न्यायिक कार्यों में सुधार के लिए जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया जारी है।
फिर भी, यह समाधान संपूर्ण नहीं है, और लंबित मामलों की संख्या के कारण निस्तारण में देरी जारी है।
सामाजिक और कानूनी प्रभाव
जमानत अर्जियों का लंबित रहना न्यायिक प्रक्रिया और नागरिकों की स्वतंत्रता पर गंभीर प्रभाव डालता है।
- चार साल से जेल में बंद व्यक्ति जैसे लक्ष्य तंवर के मामले में नागरिकों की स्वतंत्रता प्रभावित होती है।
- लंबित मामलों की संख्या न्याय प्रणाली की क्षमता और कार्यक्षमता पर सवाल खड़ा करती है।
- सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी यह दर्शाती है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट को प्रकरणों के निस्तारण में सुधार करना आवश्यक है।
निष्कर्ष
इलाहाबाद हाईकोर्ट में 11 लाख से अधिक लंबित मामले न्यायिक प्रणाली की गंभीर चुनौती हैं। जमानत और अग्रिम जमानत अर्जियों का लंबित रहना नागरिकों की स्वतंत्रता और न्याय की गति पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
मुख्य कारण:
- जजों की संख्या कम होना (86 जज, क्षमता 160)
- भारी प्रकरण संख्या और अपराधिक मामलों की भरमार
- प्रतिशपथ पत्र और जवाब की आवश्यकता
- काज लिस्ट में लंबित अर्जियों का निस्तारण
इसके समाधान के लिए:
- अधिक जजों की नियुक्ति और स्थानांतरण को प्राथमिकता देना
- सुनवाई प्रक्रिया में फ्रेश अर्जियों को प्राथमिकता देना
- प्रशासनिक सुधार और केस प्रबंधन में तकनीकी उपकरणों का उपयोग
यदि ये कदम उठाए जाएं तो इलाहाबाद हाईकोर्ट की कार्यक्षमता और निस्तारण की गति में सुधार संभव है।
इस प्रकार, जमानत अर्जियों का लंबित रहना केवल प्रशासनिक चुनौती नहीं, बल्कि नागरिकों की स्वतंत्रता और न्याय तक पहुंच का सवाल भी बन गया है।
- सवाल: एक अगस्त 2025 तक इलाहाबाद हाईकोर्ट में कुल लंबित मामले कितने थे?
उत्तर: कुल 11,41,687 मामले। - सवाल: लंबित मामलों में प्रधान पीठ और लखनऊ खंडपीठ के कितने मामले शामिल थे?
उत्तर: प्रधान पीठ में 9,29,607 और लखनऊ खंडपीठ में 2,12,080 मामले। - सवाल: इलाहाबाद हाईकोर्ट में जमानत अर्जियों की सुनवाई के लिए कितनी पीठें काम कर रही हैं?
उत्तर: प्रधान पीठ में सात पीठें। - सवाल: सुप्रीम कोर्ट ने लक्ष्य तंवर की जमानत अर्जियों पर क्या टिप्पणी की थी?
उत्तर: 27 बार टलने पर नाराजगी जताई और कहा कि स्वतंत्रता के मामलों में याचिका लटकाना नहीं चाहिए। - सवाल: जमानत अर्जियों के लंबित रहने का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर: जजों की कमी, भारी प्रकरण संख्या और काज लिस्ट में लंबित अर्जियां। - सवाल: हाईकोर्ट में जजों की वर्तमान संख्या कितनी है और क्षमता कितनी थी?
उत्तर: वर्तमान में 86 जज हैं, जबकि कुल क्षमता 160 जजों की थी। - सवाल: जमानत और अग्रिम जमानत अर्जियों की सुनवाई की प्राथमिकता किस प्रकार तय होती है?
उत्तर: सबसे पहले फ्रेश अर्जियों की सुनवाई होती है, उसके बाद काज लिस्ट में गई अर्जियां। - सवाल: लंबित जमानत अर्जियों का निस्तारण अक्सर क्यों “भगवान भरोसे” माना जाता है?
उत्तर: क्योंकि आपत्तियां, जवाब और फ्रेश आवेदन की संख्या के कारण नंबर का निश्चित समय नहीं होता। - सवाल: इलाहाबाद हाईकोर्ट प्रशासन ने जमानत सुनवाई में सुधार के लिए क्या किया है?
उत्तर: अधिक पीठें गठित कीं और जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया तेज की। - सवाल: लंबित जमानत अर्जियों का निस्तारण क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर: यह नागरिकों की स्वतंत्रता, न्याय की गति और न्यायिक प्रणाली की विश्वसनीयता से जुड़ा हुआ है।