इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: सात दिनों में जमानती न मिलने पर होगी वकील की व्यवस्था

इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: सात दिनों में जमानती न मिलने पर होगी वकील की व्यवस्था

प्रस्तावना

भारतीय न्याय व्यवस्था का मूल उद्देश्य है कि किसी भी निर्दोष या न्यायालय से जमानत प्राप्त कर चुके व्यक्ति को अनावश्यक रूप से जेल में न रहना पड़े। लेकिन व्यवहार में देखा गया है कि कई बार अभियुक्त, आर्थिक और सामाजिक कारणों से, समय पर जमानतदार प्रस्तुत नहीं कर पाते। ऐसे मामलों में वे लंबे समय तक जेल में ही बंद रहते हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस समस्या को गंभीरता से लेते हुए एक ऐतिहासिक आदेश दिया है, जिसमें कहा गया है कि यदि कोई अभियुक्त सात दिनों के भीतर जमानती पेश नहीं कर पाता है, तो जेल अधीक्षक को जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) को सूचना देनी होगी और अभियुक्त की रिहाई के लिए वकील की व्यवस्था की जाएगी।

यह फैसला न केवल आरोपी व्यक्तियों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि गरीब और असहाय लोगों के लिए न्याय तक पहुंच को सरल बनाने की दिशा में भी एक बड़ा कदम है।


मामला: पृष्ठभूमि

गोरखपुर निवासी बच्ची देवी ने हाईकोर्ट में अर्जी दायर की थी। उसने तर्क दिया कि कई अभियुक्त ऐसे हैं जिन्हें जमानत तो मिल जाती है, लेकिन वे जमानतदार (surety) समय पर प्रस्तुत नहीं कर पाते। परिणामस्वरूप उन्हें जेल में ही रहना पड़ता है, जबकि उन्हें कानूनी रूप से रिहा होना चाहिए।

मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की एकल पीठ ने की।


हाईकोर्ट के निर्देश

अदालत ने अपने आदेश में निम्नलिखित स्पष्ट निर्देश दिए:

  1. सात दिनों की समय-सीमा
    • यदि कोई अभियुक्त जमानत मिलने के सात दिनों के भीतर जमानती पेश नहीं करता, तो जेल अधीक्षक (Superintendent of Jail) संबंधित जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) के सचिव को सूचित करेगा।
  2. वकील की व्यवस्था
    • DLSA यह सुनिश्चित करेगा कि अभियुक्त की रिहाई के लिए एक वकील नियुक्त किया जाए, जो अदालत में आवश्यक औपचारिकताएँ पूरी करके उसकी रिहाई सुनिश्चित करे।
  3. बहु-राज्य मामलों में रिहाई
    • यदि किसी अभियुक्त पर विभिन्न राज्यों में कई मामले दर्ज हैं, तो अदालत को सुप्रीम कोर्ट के गिरीश गांधी बनाम भारत संघ (Girish Gandhi v. Union of India) मामले में दिए गए निर्देशों का पालन करना होगा।
  4. आदेश का प्रसार और अनुपालन
    • कोर्ट ने रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिया कि इस आदेश की प्रति मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखी जाए, ताकि इस विषय पर नए दिशानिर्देश जारी करने पर विचार हो सके।
    • रजिस्ट्रार (अनुपालन) को भी आदेश दिया गया कि आदेश की प्रति सभी जिला न्यायाधीशों, पुलिस महानिदेशक, अपर महानिदेशक (अभियोजन) और न्यायिक प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान, लखनऊ को भेजी जाए।

गिरीश गांधी बनाम भारत संघ का मामला

यह मामला इस आदेश की पृष्ठभूमि समझने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

  • गिरीश गांधी नामक व्यक्ति पर 13 अलग-अलग मुकदमे दर्ज थे।
  • सभी मामलों में उसे जमानत मिल गई थी, लेकिन वह केवल दो जोड़ी जमानतदार ही प्रस्तुत कर सका।
  • बाकी मुकदमों के लिए उसे 22 अतिरिक्त जमानतदार लाने थे, जो संभव नहीं हो सका।
  • परिणामस्वरूप, जमानत मिल जाने के बावजूद वह जेल से बाहर नहीं आ पाया।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए कहा कि 13 मामलों में केवल दो जोड़ी जमानतदार पर्याप्त होंगे। इसके आधार पर गिरीश गांधी को जेल से रिहा किया गया।


कानूनी और संवैधानिक पहलू

  1. संविधान का अनुच्छेद 21
    • हर व्यक्ति को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार है। यदि किसी व्यक्ति को जमानत मिलने के बाद भी केवल तकनीकी कारणों से जेल में रखा जाता है, तो यह अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।
  2. जमानत का सिद्धांत
    • भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) का मूल सिद्धांत है कि आरोपी को जांच और मुकदमे के दौरान जेल में रखने के बजाय जमानत पर छोड़ा जाए, ताकि वह अपनी रक्षा की तैयारी कर सके।
  3. गरीब और असहाय अभियुक्त
    • जिन अभियुक्तों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति कमजोर होती है, वे प्रायः जमानतदार लाने में असमर्थ रहते हैं। अदालत का यह आदेश ऐसे लोगों को राहत देगा।

सामाजिक और व्यावहारिक महत्व

  • गरीब कैदियों के लिए राहत
    यह आदेश उन कैदियों के लिए बहुत बड़ी राहत है जो आर्थिक और सामाजिक कारणों से जमानतदार नहीं जुटा पाते।
  • जमानत की प्रक्रिया में पारदर्शिता
    DLSA और अधिवक्ताओं की मदद से जमानत की प्रक्रिया तेज और सरल होगी।
  • न्याय तक पहुंच का विस्तार
    यह फैसला “एक्सेस टू जस्टिस” (Access to Justice) की अवधारणा को मजबूत करता है।

आलोचना और चुनौतियाँ

  • प्रशासनिक बोझ
    DLSA और अधिवक्ताओं पर अतिरिक्त कार्यभार बढ़ सकता है।
  • कार्यान्वयन की समस्या
    यदि आदेश का पालन सभी जिलों में समान रूप से न हो, तो इसका लाभ सीमित रह जाएगा।
  • जमानतदार प्रणाली पर प्रश्न
    यह आदेश एक बार फिर इस बहस को जन्म देता है कि क्या जमानतदार प्रणाली आज के समय में व्यावहारिक और न्यायोचित है या इसमें सुधार की आवश्यकता है।

निष्कर्ष

इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह आदेश न्यायिक दृष्टि से अत्यंत प्रगतिशील है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि जमानत मिलने के बावजूद कोई अभियुक्त केवल जमानतदार न मिलने के कारण जेल में न रहे।

  • गिरीश गांधी मामले की पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए अदालत ने स्पष्ट किया कि तकनीकीताओं से ऊपर उठकर न्याय प्रदान करना ही कानून का उद्देश्य है।
  • यह फैसला गरीब और असहाय वर्ग के अभियुक्तों को न्याय तक पहुँचाने का मार्ग प्रशस्त करता है।

अंततः यह कहा जा सकता है कि यह आदेश भारतीय न्याय व्यवस्था को अधिक संवेदनशील, मानवीय और व्यावहारिक बनाने की दिशा में एक अहम कदम है।