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“इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: केवल गरीबी के कारण पति को छोड़कर जाने वाली पत्नी गुजारा-भत्ते की हकदार नहीं”

“इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: केवल गरीबी के कारण पति को छोड़कर जाने वाली पत्नी गुजारा-भत्ते की हकदार नहीं”


भूमिका : गुजारा-भत्ता कानून और न्यायालय की मौलिक व्याख्या

       भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 एक सामाजिक कल्याणकारी प्रावधान है जिसका उद्देश्य ऐसे पति—पत्नी संबंधों में आर्थिक न्याय सुनिश्चित करना है, जहाँ महिला अपने पति से अलग रह रही हो और अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में असमर्थ हो। यह प्रावधान पूरी तरह “सामाजिक न्याय” की भावना पर आधारित है और अदालतें इसे सामान्यतः उदार दृष्टिकोण से ही लागू करती हैं।

       किन्तु इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया कि सिर्फ गरीबी या आर्थिक तंगी के कारण पति का घर छोड़ देना और बाद में गुजारा-भत्ता मांगना, धारा 125 CrPC के उद्देश्य के अनुरूप नहीं माना जाएगा—जब तक कि पत्नी यह सिद्ध नहीं कर दे कि पति ने उसे रहने से रोका, प्रताड़ित किया या उसके साथ निर्ममता से व्यवहार किया।

यह फैसला गुजारा-भत्ता संबंधी विवादों में एक महत्वपूर्ण न्यायिक मिसाल के रूप में उभरकर सामने आया है।


मामले की पृष्ठभूमि : पति-पत्नी में विवाद और अलगाव का कारण

इस मामले में पत्नी ने ट्रायल कोर्ट में धारा 125 CrPC के तहत गुजारा-भत्ता के लिए याचिका दाखिल की थी।

उसका मुख्य तर्क था—

  • पति की आर्थिक स्थिति अच्छी है
  • लेकिन उसके पास खुद का कोई साधन नहीं
  • वह अपने मायके में रह रही है
  • उसके पास रोजगार नहीं है

पति ने याचिका का विरोध करते हुए कहा—

  • पत्नी स्वेच्छा से घर छोड़कर चली गई
  • उसे रोककर रखने में उसकी कोई बाधा नहीं थी
  • पत्नी के जाने का वास्तविक कारण गरीबी या आर्थिक दबाव था
  • पति ने कभी उसके साथ अत्याचार नहीं किया
  • वह बिना किसी “पर्याप्त कारण” के पति को छोड़कर गई है, इसलिए वह भरण-पोषण की हकदार नहीं

ट्रायल कोर्ट ने तथ्यों को ध्यान में रखते हुए पति के पक्ष में निर्णय दिया।

इस निर्णय को पत्नी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी।


मुख्य प्रश्न : क्या पत्नी केवल गरीबी के कारण पति का घर छोड़कर जा सकती है और फिर भी गुजारा-भत्ता मांग सकती है?

हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान यह महत्वपूर्ण प्रश्न उठाया कि—

क्या धारा 125 CrPC के तहत ‘पर्याप्त कारण’ (sufficient reason) में गरीबी या आर्थिक कठिनाई के कारण पति को छोड़ना शामिल है?

इस प्रश्न का उत्तर केस के निर्णायक बिंदु के रूप में उभरा।


हाईकोर्ट की विस्तृत व्याख्या : धारा 125 CrPC का “उद्देश्य और सीमा”

हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में स्पष्ट कहा—

1. धारा 125 का उद्देश्य पति की जिम्मेदारी तय करना है, गरीबी को कारण बनाकर छोड़ना नहीं

अदालत ने कहा कि पत्नियों को संरक्षण देना विधि का उद्देश्य अवश्य है, लेकिन यह संरक्षण तभी लागू होता है जब पत्नी—

  • दांपत्य घर छोड़ने के लिए बाध्य हुई हो
  • पति ने प्रताड़ना या हिंसा की हो
  • पति ने उसे रहने से इंकार किया हो
  • या पति ने उसे भरण-पोषण देने से मना किया हो

यहां पत्नी के पास कोई प्रमाण नहीं था कि पति ने अत्याचार किया या उसे घर से निकाला।

2. गरीबी को ‘पर्याप्त कारण’ नहीं माना जा सकता

अदालत का यह मुख्य अवलोकन अत्यंत महत्वपूर्ण है।

कोर्ट ने कहा—

“यदि कोई पत्नी केवल आर्थिक कठिनाई या गरीबी के कारण पति का घर छोड़ देती है, तो यह अलग रहने के लिए ‘पर्याप्त कारण’ नहीं माना जा सकता।”

यानी, अगर गरीबी ही कारण है, तो पत्नी के पास घर छोड़ने का कोई वैध आधार नहीं है, खासकर जब पति स्वयं गरीबी से जूझ रहा हो।

3. पति भी गरीब हो सकता है, इसका मतलब यह नहीं कि वह भरण-पोषण का दायित्व नहीं चाहता

यदि पति गरीब है, फिर भी वह अपनी पत्नी को साथ रखने को तैयार है, तो पत्नी का अलग रहना कानूनी दृष्टि से उचित नहीं माना जाएगा।

पति यह दिखाने में सफल रहा कि—

  • वह पत्नी को साथ रखने को तैयार था
  • उसने उसे कभी नहीं निकाला
  • आर्थिक स्थिति कमजोर होने के बावजूद वह पत्नी का साथ चाहता था

यहां पत्नी का अलग रहना संगत नहीं माना गया।


हाईकोर्ट की टिप्पणी : गुजारा-भत्ता ‘त्याग कर देने’ का इनाम नहीं है

अदालत ने एक बेहद महत्वपूर्ण अवलोकन दर्ज किया—

“गुजारा-भत्ता त्याग कर देने वाले व्यवहार को प्रोत्साहित करने के लिए नहीं है। कानून का उद्देश्य स्वेच्छा से अलग हो जाने को बढ़ावा देना नहीं है।”

इसके साथ हाईकोर्ट ने यह संकेत दिया कि—

  • धारा 125 सामाजिक सुरक्षा के लिए है
  • लेकिन इसका दुरुपयोग रोकना भी उतना ही आवश्यक है
  • यदि पत्नी उचित कारण के बिना अलग हो जाए, तो वह लाभ नहीं ले सकती

यह सिद्धांत विभिन्न पूर्ववर्ती निर्णयों के अनुरूप है।


मामले के तथ्य: पत्नी ने क्रूरता, उत्पीड़न या निष्कासन का कोई साक्ष्य नहीं दिया

हाईकोर्ट ने विशेष रूप से कहा कि—

  • पत्नी यह साबित नहीं कर सकी कि पति ने मारपीट की
  • वह यह भी साबित नहीं कर सकी कि पति ने उसे निकाला
  • किसी प्रकार की दैहिक या मानसिक क्रूरता का कोई रिकॉर्ड नहीं
  • पति के आचरण में ऐसा कुछ नहीं था जो पत्नी को अलग रहने पर मजबूर करे

ऐसे में अदालत ने माना कि पत्नी ने—

  • स्वेच्छा से घर छोड़ा
  • और उसके पास कोई वैध कारण नहीं था

महत्वपूर्ण न्यायिक सिद्धांत : पत्नी तभी भरण-पोषण की हकदार जब…

हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कई महत्वपूर्ण फैसलों का हवाला दिया, जहाँ यह नियम स्थापित है—

पत्नी तभी गुजारा-भत्ता की हकदार है, जब—

  • वह पति के उत्पीड़न या दुर्व्यवहार के कारण अलग रही हो
  • पति ने उसे घर से निकाला हो
  • पति ने उसे साथ रखने से इंकार किया हो
  • पति ने भरण-पोषण देने से मना किया हो
  • पति का व्यवहार असहनीय हो

और पत्नी गुजारा-भत्ता की हकदार नहीं, जब—

  • पत्नी स्वेच्छा से अलग हो जाए
  • पति उसे वापस घर आने के लिए आमंत्रित करे
  • पति किसी अत्याचार का दोषी न हो
  • पत्नी का अलग रहना ‘बिना पर्याप्त कारण’ हो

बिल्कुल यही स्थिति इस मामले में पाई गई।


अंतिम निर्णय : पत्नी भरण-पोषण की हकदार नहीं

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पत्नी की याचिका खारिज करते हुए कहा—

“जब पत्नी स्वयं अपनी इच्छा से पति का घर छोड़कर चली जाती है और इसके पीछे कोई वैध कारण नहीं है, तो वह धारा 125 CrPC के तहत गुजारा-भत्ता मांगने की हकदार नहीं है।”

अदालत ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को उचित और वैध माना।


निर्णय के मायने : गुजारा-भत्ता मामलों पर बड़ा प्रभाव

यह निर्णय कई गुजारा-भत्ता मुकदमों को सीधे प्रभावित करेगा, विशेषकर उन मामलों में—

1. जहाँ पति-पत्नी दोनों गरीब हों

ऐसे परिवारों में पत्नी का थोड़ी कठिनाई होते ही मायके चले जाना और फिर भरण-पोषण मांगना, इस फैसले के बाद सरल नहीं रहेगा।

2. पति के ऊपर अधिक भार नहीं डाला जाएगा

जब पति पहले से आर्थिक रूप से कमजोर हो और पत्नी को साथ रखने को भी तैयार हो, तो उस पर अतिरिक्त दंडात्मक भार नहीं डाला जाएगा।

3. धारा 125 CrPC के उद्देश्य को सुदृढ़ करता है

सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के अनुसार, यह धारा—

  • तलाक का अधिकार नहीं
  • प्रताड़ना का निवारण नहीं
  • और न ही अलग रहने की स्वतंत्रता का भुगतान है

यह केवल आर्थिक रूप से असहाय पत्नी की मदद के लिए है।


सामाजिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण संकेत

यह फैसला समाज में कुछ महत्वपूर्ण संदेश देता है—

  • विवाह केवल आर्थिक सुविधा नहीं है
  • गरीबी किसी भी परिवार में हो सकती है—लेकिन परिवार छोड़ने का कारण नहीं
  • कानून त्याग को नहीं, जिम्मेदारी को बढ़ावा देता है
  • पति-पत्नी दोनों को दायित्व निभाना होता है

यह फैसला उन मामलों में सख्त रुख दिखाता है जहाँ महिलाएँ बिना वैध कारण पति का घर छोड़कर भरण-पोषण का दावा करती हैं।


निष्कर्ष : धारा 125 CrPC की ‘पर्याप्त कारण’ की कसौटी मजबूत हुई

इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह निर्णय गुजारा-भत्ता कानून की व्यावहारिक व्याख्या को मजबूती देता है।

मुख्य बातें:

  • गरीबी स्वयं में घर छोड़ने का ‘पर्याप्त कारण’ नहीं
  • बिना वैध आधार अलग रहने वाली पत्नी भरण-पोषण की हकदार नहीं
  • पति का गरीब होना भी महत्वपूर्ण कारक
  • पति अगर साथ रखने को तैयार है, तो पत्नी का दावा कमजोर हो जाता है
  • न्यायालयों ने सामाजिक संतुलन और न्याय को प्राथमिकता दी

यह निर्णय भविष्य में आने वाले अनेक मामलों में मार्गदर्शक सिद्ध होगा।