इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला: 69 हजार सहायक शिक्षक भर्ती में ईडब्ल्यूएस आरक्षण से इनकार

शीर्षक: इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला: 69 हजार सहायक शिक्षक भर्ती में ईडब्ल्यूएस आरक्षण से इनकार

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश की बहुचर्चित 69 हजार सहायक अध्यापक भर्ती प्रक्रिया में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) को आरक्षण देने की मांग को लेकर दाखिल की गई दर्जनों याचिकाओं को खारिज कर दिया है। यह फैसला न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति प्रवीण कुमार गिरी की खंडपीठ ने शिवम पांडेय सहित कई याचिकाकर्ताओं की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुनाया।

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह भर्ती प्रक्रिया पहले ही पूरी हो चुकी है और चयनित अभ्यर्थी पिछले कई वर्षों से कार्यरत हैं। ऐसे में अब इस भर्ती प्रक्रिया में ईडब्ल्यूएस आरक्षण लागू करने का कोई औचित्य नहीं बनता है। कोर्ट ने यह भी माना कि चयन प्रक्रिया उस समय शुरू की गई थी, जब ईडब्ल्यूएस आरक्षण की व्यवस्था प्रभावी नहीं हुई थी।

ईडब्ल्यूएस जानकारी का अभाव बना मुख्य आधार

कोर्ट ने अपने निर्णय में यह भी कहा कि भर्ती परीक्षा के आवेदन पत्र में किसी भी अभ्यर्थी से उसकी ईडब्ल्यूएस स्थिति की जानकारी नहीं मांगी गई थी। इससे यह जानना अत्यंत कठिन हो जाता है कि कौन-कौन अभ्यर्थी इस श्रेणी में आते हैं। जब ईडब्ल्यूएस अभ्यर्थियों का विवरण ही उपलब्ध नहीं है, तो उनके लिए अलग से मेरिट सूची तैयार करना भी संभव नहीं है।

यदि कोर्ट ईडब्ल्यूएस आरक्षण लागू करने का आदेश देता है, तो इसके लिए अनारक्षित श्रेणी के 10 प्रतिशत चयनित अभ्यर्थियों को हटाना पड़ेगा, जिससे नए ईडब्ल्यूएस अभ्यर्थियों को समायोजित किया जा सके। यह न केवल व्यावहारिक रूप से कठिन होगा, बल्कि वर्षों से कार्यरत शिक्षकों को नौकरी से हटाना भी अन्यायपूर्ण और असंवेदनशील कदम होगा।

चयन प्रक्रिया में किसी को पक्षकार नहीं बनाया गया

कोर्ट ने यह भी इंगित किया कि वर्तमान याचिकाओं में किसी भी चयनित अभ्यर्थी को पक्षकार नहीं बनाया गया है और ना ही उनकी नियुक्ति या चयन को सीधे चुनौती दी गई है। ऐसे में बिना प्रभावित पक्ष को सुने कोई निर्देश देना न्याय की प्रक्रिया के विरुद्ध होगा।

बीएड धारकों की पात्रता पर भी उठे प्रश्न

कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि अधिकांश याचिकाकर्ता बीएड डिग्रीधारी हैं, जबकि सुप्रीम कोर्ट के पूर्ववर्ती निर्णयों के अनुसार वे प्राथमिक स्तर की शिक्षक भर्ती के लिए पात्र नहीं माने जाते हैं। यह भी याचिकाओं की वैधता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है।

एकल न्यायाधीश के आदेश की पुनरावृत्ति

गौरतलब है कि यह याचिकाएं उस एकल न्यायाधीश के निर्णय के विरुद्ध दाखिल की गई थीं, जिन्होंने 29 फरवरी 2024 को भी यह कहते हुए ईडब्ल्यूएस आरक्षण लागू करने से मना कर दिया था कि भर्ती प्रक्रिया आरक्षण लागू होने से पहले शुरू हो चुकी थी। खंडपीठ ने भी इसी तर्क को स्वीकार किया और पुनः स्पष्ट किया कि नियमों के विपरीत जाकर कोई आदेश नहीं दिया जा सकता।

निष्कर्षतः, यह फैसला भर्ती प्रक्रियाओं में कानूनी समयसीमा, पारदर्शिता, और निष्पक्षता के सिद्धांतों को बरकरार रखने वाला माना जा सकता है। यह निर्णय यह भी स्पष्ट करता है कि न्यायपालिका कानून की प्रक्रिया से हटकर किसी भी समूह को लाभ देने का आदेश नहीं दे सकती, विशेषकर तब जब उससे पहले ही संपूर्ण प्रक्रिया संपन्न हो चुकी हो।