इलाहाबाद हाईकोर्ट का ग्रैंड ओमेक्स बिल्डर को बड़ा आदेश: 25 करोड़ जमा करें और 50 फ्लैट खरीदारों को अतिरिक्त यूनिट्स जारी करें

शीर्षक: इलाहाबाद हाईकोर्ट का ग्रैंड ओमेक्स बिल्डर को बड़ा आदेश: 25 करोड़ जमा करें और 50 फ्लैट खरीदारों को अतिरिक्त यूनिट्स जारी करें


प्रस्तावना
रियल एस्टेट विवादों और फ्लैट खरीदारों की समस्याओं को लेकर एक महत्वपूर्ण कानूनी मोड़ सामने आया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट (लखनऊ पीठ) ने ग्रेटर नोएडा वेस्ट स्थित ग्रैंड ओमेक्स प्रोजेक्ट के डेवलपर को निर्देश दिया है कि वह 25 करोड़ रुपये की राशि कोर्ट में जमा करे और साथ ही 50 फ्लैट खरीदारों को अतिरिक्त फ्लैट (यूनिट्स) प्रदान किए जाएं। यह आदेश फ्लैट बायर्स के हितों की रक्षा और बिल्डरों की जवाबदेही सुनिश्चित करने की दिशा में एक बड़ी न्यायिक पहल मानी जा रही है।


मामले की पृष्ठभूमि
ग्रैंड ओमेक्स प्रोजेक्ट को लेकर सैकड़ों फ्लैट खरीदारों ने आरोप लगाया था कि—

  • उन्हें वादा किए गए समय पर कब्जा नहीं मिला,
  • अधूरी सुविधाएं और निर्माण की गुणवत्ता बेहद खराब थी,
  • कुछ खरीदारों को तो अब तक फ्लैट अलॉट भी नहीं किया गया,
  • जबकि बिल्डर ने कई अतिरिक्त फ्लैटों की बुकिंग कर दी थी जो नियमानुसार नहीं थी।

इन मुद्दों को लेकर फ्लैट बायर्स ने NCLT, RERA और हाईकोर्ट में भी याचिकाएं दाखिल कीं, जिसके बाद यह मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट की निगरानी में पहुंचा।


हाईकोर्ट का निर्देश और टिप्पणी
हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा:

बिल्डर की प्राथमिक जिम्मेदारी है कि वह खरीदारों को समय पर और पूरी पारदर्शिता के साथ कब्जा प्रदान करे।
लंबे समय से लंबित वाद, खरीदारों के मौलिक अधिकारों और जीवन की गरिमा का उल्लंघन है।

इसके मद्देनजर कोर्ट ने बिल्डर को आदेश दिया—

  1. 25 करोड़ रुपये कोर्ट में जमा करें, ताकि जरूरत पड़ने पर उसका उपयोग फ्लैट बायर्स के हित में किया जा सके।
  2. 50 अतिरिक्त फ्लैट बायर्स को फ्लैट अलॉट किए जाएं और उन्हें निर्माण/कब्जे की स्थिति से समय पर अवगत कराया जाए।
  3. कोर्ट द्वारा नियुक्त पर्यवेक्षक (monitoring committee) की निगरानी में परियोजना की प्रगति रिपोर्ट हर माह दाखिल की जाए।

न्यायिक सक्रियता और खरीदारों के अधिकार
यह आदेश रियल एस्टेट क्षेत्र में न्यायिक सक्रियता (judicial activism) का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि:

  • बिल्डर का दायित्व केवल परियोजना का निर्माण नहीं, बल्कि उचित समय, गुणवत्ता और पारदर्शिता के साथ कब्जा देना है।
  • फ्लैट खरीदार उपभोक्ता हैं, और उन्हें संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सम्मानजनक जीवन और आवास का अधिकार प्राप्त है।
  • निर्माणाधीन परियोजनाओं में अनियमितता, धोखाधड़ी और विलंब दंडनीय हैं, और अदालतें अब इन मामलों में सख्ती से कार्यवाही कर रही हैं।

रियल एस्टेट कानून की भूमिका
इस मामले में RERA (Real Estate Regulation and Development Act, 2016) के उल्लंघन के कई पहलू भी सामने आए। बिल्डर ने बिना RERA अप्रूवल के निर्माण किया, और फ्लैटों की बिक्री शुरू कर दी थी। कोर्ट ने कहा कि—

ऐसे व्यवहार से न केवल खरीदार बल्कि पूरा रियल एस्टेट इकोसिस्टम अस्थिर होता है।
बिल्डरों को RERA नियमों का पालन करना अनिवार्य है।


निष्कर्ष
इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह आदेश फ्लैट खरीदारों के अधिकारों की रक्षा, बिल्डर की जवाबदेही सुनिश्चित करने और रियल एस्टेट क्षेत्र में विश्वास बहाल करने की दिशा में मील का पत्थर है। यह संदेश साफ है कि—

अब बिल्डर मनमानी नहीं कर सकते, और कानून खरीदारों के साथ है।

यदि बिल्डर आदेश का पालन नहीं करता, तो कोर्ट कड़ी दंडात्मक कार्रवाई कर सकता है, जिसमें परियोजना अधिग्रहण, संपत्ति सीलिंग या यहां तक कि आपराधिक कार्यवाही भी हो सकती है।