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इन्सॉल्वेंसी और बैंकिंग कोड, 2016: लेन-देन और कर्ज़ प्रबंधन

इन्सॉल्वेंसी और बैंकिंग कोड, 2016: लेन-देन और कर्ज़ प्रबंधन

भारत में वित्तीय क्षेत्र के सुचारू संचालन और कर्ज़ की वसूली को प्रभावी बनाने के लिए इन्सॉल्वेंसी और बैंकिंग कोड, 2016 (Insolvency and Bankruptcy Code, 2016) एक महत्वपूर्ण कानूनी साधन है। यह कानून मुख्य रूप से उन व्यक्तियों, कंपनियों और फाइनेंशियल संस्थाओं के लिए है, जो अपने वित्तीय दायित्वों को समय पर पूरा नहीं कर पाते। इसका उद्देश्य न केवल कर्ज़दाताओं के हितों की सुरक्षा करना है बल्कि कर्ज़ लेने वालों को भी पुनर्जीवन का अवसर प्रदान करना है।


इन्सॉल्वेंसी और बैंकिंग कोड का परिचय

इन्सॉल्वेंसी और बैंकिंग कोड, 2016 को भारत सरकार ने वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने और कर्ज़ की वसूली प्रक्रिया को सरल, तेज़ और पारदर्शी बनाने के लिए लागू किया। इससे पहले भारत में इन्सॉल्वेंसी से संबंधित कई अलग-अलग कानून थे, जैसे कि:

  1. Companies Act, 2013 (प्रकटन और परिसमापन प्रावधान)
  2. Sick Industrial Companies Act, 1985 (SICA)
  3. Recovery of Debts Due to Banks and Financial Institutions Act, 1993 (RDDBFI Act)

इन विभिन्न अधिनियमों में समान मुद्दों के लिए अलग-अलग प्रक्रिया और समयसीमा थी, जिससे कर्ज़ वसूली में देरी और जटिलताएँ उत्पन्न होती थीं। IBC 2016 ने इसे एक समेकित कानून में बदलकर “विकलांगता समाधान और कर्ज़ वसूली की त्वरित प्रक्रिया” स्थापित किया।


इन्सॉल्वेंसी और रिवाइवल प्रोसेस

IBC के तहत इन्सॉल्वेंसी प्रोसेस को मुख्यतः दो श्रेणियों में बांटा गया है:

  1. कॉर्पोरेट इन्सॉल्वेंसी रेज़ॉल्यूशन प्रोसेस (CIRP)
    यह उन कंपनियों के लिए है जो वित्तीय दायित्वों को पूरा करने में असमर्थ हैं। इसमें प्रक्रिया इस प्रकार है:

    • पात्र कर्ज़दाता (Financial Creditor) या कंपनी स्वयं एनसीएलटी (National Company Law Tribunal) में आवेदन कर सकते हैं।
    • एनसीएलटी आवेदन स्वीकार करने के बाद इन्सॉल्वेंसी प्रोफेशनल (IP) की नियुक्ति करता है।
    • IP कंपनी के सभी संचालन और वित्तीय निर्णयों पर नियंत्रण संभालता है।
    • कंपनी के कर्ज़ की पुनर्गठन योजना तैयार की जाती है।
    • 180 दिन के भीतर (अधिकतम 270 दिन तक बढ़ाया जा सकता है) योजना कर्ज़दाताओं और एनसीएलटी द्वारा अनुमोदित होती है।

    यदि पुनर्गठन योजना विफल रहती है, तो कंपनी का लिक्विडेशन किया जाता है।

  2. इंडिविजुअल और प्रॉपर्टी इन्सॉल्वेंसी
    यह व्यक्तिगत कर्ज़दारों और पार्टनरशिप फर्मों के लिए है। प्रक्रिया सरल और तेज़ है और इसमें संपत्ति की बिक्री कर कर्ज़दाताओं को भुगतान किया जाता है।

कर्ज़ प्रबंधन और लेन-देन पर प्रभाव

IBC ने बैंकिंग क्षेत्र में कर्ज़ प्रबंधन के कई पहलुओं को सुव्यवस्थित किया है:

  1. कर्ज़ की समय पर वसूली:
    बैंक और वित्तीय संस्थाएं यदि 180 दिनों से अधिक समय तक कर्ज़ वसूली में असमर्थ होती हैं, तो उन्हें तुरंत इन्सॉल्वेंसी प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए। इससे “नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स (NPA)” की संख्या कम होती है।
  2. कर्ज़दाता और कर्ज़दार के अधिकार:
    • कर्ज़दाता को योजना के अनुमोदन में निर्णायक अधिकार मिलता है।
    • कर्ज़दार को पुनर्गठन और व्यवसाय बचाने का मौका मिलता है।
  3. लेन-देन का मूल्यांकन:
    IBC के तहत किसी कंपनी के वित्तीय लेन-देन को मिसलेडिंग या फराडुलेंट ट्रांज़ैक्शन के आधार पर चुनौती दी जा सकती है। उदाहरण के लिए, कर्ज़दार ने जानबूझकर संपत्ति को कम मूल्य पर बेचा या संबंधित पार्टी को लाभ पहुंचाया, तो इसे रिवर्स करने का आदेश एनसीएलटी दे सकती है।
  4. वित्तीय अनुशासन:
    IBC ने कर्ज़दारों को अपने वित्तीय दायित्वों को समय पर पूरा करने के लिए मजबूर किया है। इससे भारतीय बैंकिंग प्रणाली में वित्तीय अनुशासन बढ़ा है और जोखिम प्रबंधन बेहतर हुआ है।

प्रमुख प्रावधान

IBC में कुछ महत्वपूर्ण प्रावधान निम्नलिखित हैं:

  1. ऋणदाताओं की सुरक्षा:
    कर्ज़दाता का अधिकार सर्वोपरि होता है। वे पुनर्गठन योजना को मंजूरी या अस्वीकृत कर सकते हैं।
  2. इन्सॉल्वेंसी पेशेवरों की भूमिका:
    IP कंपनी या व्यक्ति के सभी वित्तीय और प्रशासनिक मामलों की निगरानी करते हैं।
  3. समयसीमा का पालन:
    • कॉर्पोरेट इन्सॉल्वेंसी रेज़ॉल्यूशन: 180–270 दिन
    • लिक्विडेशन प्रक्रिया: अधिकतम 365 दिन
  4. फराडुलेंट और वेस्टफुल ट्रांज़ैक्शन का नियंत्रण:
    किसी भी लेन-देन जो कर्ज़दाताओं के हितों के खिलाफ हो, उसे रिवर्स किया जा सकता है।
  5. एनसीएलटी और एनसीएलएटी का न्यायिक हस्तक्षेप:
    IBC के तहत विवादों का निपटारा National Company Law Tribunal (NCLT) और National Company Law Appellate Tribunal (NCLAT) करते हैं।

IBC और बैंकिंग सेक्टर

IBC के लागू होने के बाद भारतीय बैंकिंग प्रणाली में कई सुधार देखे गए हैं:

  1. NPA में कमी:
    समय पर इन्सॉल्वेंसी प्रक्रिया शुरू होने से नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स को नियंत्रित किया जा सकता है।
  2. ऋण पुनर्गठन:
    बैंक अपने ग्राहकों को पुनर्गठन योजना प्रदान कर सकते हैं, जिससे व्यवसाय बचाने का अवसर मिलता है।
  3. फॉरेन इन्वेस्टमेंट आकर्षित करना:
    स्पष्ट और प्रभावी कर्ज़ वसूली कानून विदेशी निवेशकों के लिए भरोसेमंद वातावरण तैयार करता है।
  4. लेन-देन में पारदर्शिता:
    सभी वित्तीय लेन-देन और ऋण संबंधी प्रक्रिया एनसीएलटी की निगरानी में आती है।

महत्वपूर्ण न्यायालयीन मामले

IBC की व्याख्या और प्रभाव को समझने के लिए कुछ प्रमुख सुप्रीम कोर्ट और एनसीएलटी के मामले महत्वपूर्ण हैं:

  1. Swiss Ribbons Pvt. Ltd. v. Union of India (2019) – सुप्रीम कोर्ट ने IBC की संवैधानिकता को मान्यता दी और कहा कि इसका उद्देश्य व्यवसायों को पुनर्जीवित करना और कर्ज़दाताओं के हितों की सुरक्षा करना है।
  2. Innoventive Industries Ltd. v. ICICI Bank (2017) – एनसीएलटी ने स्पष्ट किया कि इन्सॉल्वेंसी आवेदन को समय पर स्वीकार करना और प्रक्रिया शुरू करना कर्ज़दाताओं का अधिकार है।
  3. V. Padmakumar v. Bank of India – इस मामले में व्यक्तिगत कर्ज़दार के लिए इन्सॉल्वेंसी प्रक्रिया की व्याख्या की गई और संपत्ति वितरण प्रक्रिया निर्धारित की गई।

IBC के लाभ

  1. कर्ज़ वसूली की गति में सुधार
  2. कर्ज़दाता और कर्ज़दार दोनों के हितों की सुरक्षा
  3. व्यवसाय पुनर्गठन और रोजगार संरक्षण
  4. फाइनेंशियल अनुशासन और जोखिम प्रबंधन
  5. विदेशी निवेश के लिए भरोसेमंद माहौल

चुनौतियाँ और आलोचना

हालांकि IBC ने भारतीय बैंकिंग और कर्ज़ वसूली प्रणाली में क्रांतिकारी बदलाव लाया है, इसके साथ कुछ चुनौतियाँ भी हैं:

  1. समय सीमा का पालन मुश्किल – कोर्ट और प्रोफेशनल की कार्यक्षमता पर निर्भर।
  2. फराडुलेंट लेन-देन की पहचान जटिल – विशेषज्ञता और समय की आवश्यकता।
  3. लिक्विडेशन प्रक्रिया में देरी – कभी-कभी कर्ज़दाताओं को पूरी राशि प्राप्त करने में अधिक समय लगता है।
  4. व्यक्तिगत कर्ज़दारों के पुनर्वास में कमी – कॉर्पोरेट से अधिक संरचना व्यक्तिगत कर्ज़दार के लिए नहीं है।

निष्कर्ष

इन्सॉल्वेंसी और बैंकिंग कोड, 2016 ने भारतीय वित्तीय क्षेत्र में न केवल कर्ज़ वसूली की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित किया है, बल्कि व्यवसायों को पुनर्जीवित करने का अवसर भी प्रदान किया है। यह कानून कर्ज़दाताओं और कर्ज़दारों के बीच संतुलन बनाता है, वित्तीय अनुशासन को बढ़ावा देता है और विदेशी निवेशकों के लिए भरोसेमंद वातावरण तैयार करता है।

कुल मिलाकर, IBC ने भारतीय बैंकिंग और व्यापारिक प्रणाली में पारदर्शिता, अनुशासन और न्यायसंगत पुनर्गठन को सुनिश्चित किया है। यह कानून आधुनिक भारतीय अर्थव्यवस्था में कर्ज़ प्रबंधन और वित्तीय स्थिरता के लिए अभिन्न स्तंभ बन चुका है।

  1. IBC 2016 का मुख्य उद्देश्य क्या है?
    a) कर वसूली
    b) कर्ज़ वसूली और व्यवसाय पुनर्गठन
    c) विदेशी निवेश रोकना
    d) बैंकिंग सुरक्षा

    उत्तर: b) कर्ज़ वसूली और व्यवसाय पुनर्गठन

  2. कॉर्पोरेट इन्सॉल्वेंसी रेज़ॉल्यूशन प्रोसेस (CIRP) कितने दिनों में पूरी होनी चाहिए?
    a) 90 दिन
    b) 180 दिन (अधिकतम 270 दिन)
    c) 365 दिन
    d) 60 दिन

    उत्तर: b) 180 दिन (अधिकतम 270 दिन)

  3. IBC के तहत कौन आवेदन कर सकता है?
    a) केवल कर्ज़दार
    b) केवल कर्ज़दाता
    c) कर्ज़दाता और कर्ज़दार दोनों
    d) केवल बैंक

    उत्तर: c) कर्ज़दाता और कर्ज़दार दोनों

  4. कर्ज़दाताओं को योजना मंजूरी में क्या अधिकार है?
    a) केवल सुझाव देना
    b) मंजूरी या अस्वीकृति का अधिकार
    c) कोई अधिकार नहीं
    d) केवल योजना तैयार करना

    उत्तर: b) मंजूरी या अस्वीकृति का अधिकार

  5. इन्सॉल्वेंसी प्रोफेशनल (IP) की भूमिका क्या है?
    a) केवल कर्ज़ वसूली
    b) कंपनी के सभी वित्तीय और प्रशासनिक मामलों का नियंत्रण
    c) बैंकिंग नियम बनाना
    d) केवल रिपोर्टिंग

    उत्तर: b) कंपनी के सभी वित्तीय और प्रशासनिक मामलों का नियंत्रण

  6. कर्ज़ वसूली में एनसीएलटी की भूमिका क्या है?
    a) योजना को अनुमोदित करना
    b) कर्ज़दार को निर्देश देना
    c) विवादों का निपटारा करना
    d) उपरोक्त सभी

    उत्तर: d) उपरोक्त सभी

  7. फराडुलेंट ट्रांज़ैक्शन का क्या अर्थ है?
    a) सामान्य लेन-देन
    b) जानबूझकर कर्ज़दाताओं को हानि पहुँचाना
    c) बैंकिंग सुरक्षा
    d) कर्ज़ का पुनर्गठन

    उत्तर: b) जानबूझकर कर्ज़दाताओं को हानि पहुँचाना

  8. एनपीए का पूरा नाम क्या है?
    a) Non-Performing Asset
    b) National Payment Authority
    c) Non-Payment Agreement
    d) None of the above

    उत्तर: a) Non-Performing Asset

  9. IBC 2016 को भारत में लागू करने का मुख्य वर्ष कौन सा है?
    a) 2014
    b) 2015
    c) 2016
    d) 2017

    उत्तर: c) 2016

  10. किस कानून ने IBC से पहले कॉर्पोरेट इन्सॉल्वेंसी से संबंधित मामला संभाला?
    a) Companies Act, 2013
    b) SICA, 1985
    c) RDDBFI Act, 1993
    d) उपरोक्त सभी

    उत्तर: d) उपरोक्त सभी

  11. CIRP में कर्ज़दार का क्या लाभ है?
    a) संपत्ति बेचने का अधिकार
    b) पुनर्गठन और व्यवसाय बचाने का अवसर
    c) ऋण माफ
    d) कोई लाभ नहीं

    उत्तर: b) पुनर्गठन और व्यवसाय बचाने का अवसर

  12. लिक्विडेशन प्रक्रिया अधिकतम कितने दिनों में पूरी हो सकती है?
    a) 180 दिन
    b) 270 दिन
    c) 365 दिन
    d) 90 दिन

    उत्तर: c) 365 दिन

  13. Swiss Ribbons Pvt. Ltd. v. Union of India (2019) में सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
    a) IBC असंवैधानिक है
    b) IBC संवैधानिक है और पुनर्जीवन उद्देश्य रखता है
    c) केवल व्यक्तिगत कर्ज़दाताओं के लिए लागू
    d) केवल बैंकिंग सुरक्षा के लिए

    उत्तर: b) IBC संवैधानिक है और पुनर्जीवन उद्देश्य रखता है

  14. Innoventive Industries Ltd. v. ICICI Bank (2017) मामले का मुख्य संदेश क्या था?
    a) कर्ज़दाताओं को अधिकार नहीं
    b) आवेदन समय पर स्वीकार करना कर्ज़दाताओं का अधिकार है
    c) कंपनी का पुनर्गठन आवश्यक नहीं
    d) व्यक्तिगत कर्ज़दार सुरक्षित हैं

    उत्तर: b) आवेदन समय पर स्वीकार करना कर्ज़दाताओं का अधिकार है

  15. एनसीएलटी का पूरा नाम क्या है?
    a) National Corporate Law Tribunal
    b) National Company Law Tribunal
    c) National Court of Law Tribunal
    d) None of the above

    उत्तर: b) National Company Law Tribunal

  16. IBC के तहत व्यक्तिगत कर्ज़दारों की प्रक्रिया क्या कहलाती है?
    a) CIRP
    b) Personal Insolvency Resolution
    c) Liquidation
    d) Debt Recovery Tribunal

    उत्तर: b) Personal Insolvency Resolution

  17. कर्ज़ वसूली में समय सीमा उल्लंघन होने पर क्या होता है?
    a) कर्ज़दाताओं को आवेदन करने का अधिकार
    b) कोई कार्रवाई नहीं
    c) बैंक स्वतः लाभान्वित
    d) कर्ज़ माफ

    उत्तर: a) कर्ज़दाताओं को आवेदन करने का अधिकार

  18. कौन सी संस्था अपील का निर्णय देती है?
    a) NCLT
    b) NCLAT
    c) Supreme Court
    d) High Court

    उत्तर: b) NCLAT

  19. फराडुलेंट लेन-देन की पहचान किसके द्वारा की जाती है?
    a) बैंक
    b) एनसीएलटी और इन्सॉल्वेंसी प्रोफेशनल
    c) कर्ज़दार
    d) सुप्रीम कोर्ट

    उत्तर: b) एनसीएलटी और इन्सॉल्वेंसी प्रोफेशनल

  20. IBC के प्रभाव से भारतीय बैंकिंग प्रणाली में क्या सुधार आया?
    a) NPA में वृद्धि
    b) वित्तीय अनुशासन में सुधार
    c) विदेशी निवेश में कमी
    d) व्यवसाय की गिरावट

    उत्तर: b) वित्तीय अनुशासन में सुधार

  1. IBC 2016 क्या है?
    IBC 2016 एक समेकित कानून है जो भारत में इन्सॉल्वेंसी और कर्ज़ वसूली प्रक्रिया को नियमित करता है। इसका उद्देश्य कर्ज़दाताओं के हितों की सुरक्षा और कर्ज़दारों के लिए पुनर्गठन अवसर प्रदान करना है।
  2. CIRP का उद्देश्य क्या है?
    कॉर्पोरेट इन्सॉल्वेंसी रेज़ॉल्यूशन प्रोसेस (CIRP) का मुख्य उद्देश्य वित्तीय संकट में फंसी कंपनियों को पुनर्जीवित करना और कर्ज़दाताओं के हित सुरक्षित करना है।
  3. कर्ज़दाताओं के अधिकार क्या हैं?
    कर्ज़दाता पुनर्गठन योजना को मंजूरी या अस्वीकृत कर सकते हैं। उनके निर्णय का प्रभाव पूरी प्रक्रिया पर पड़ता है।
  4. इन्सॉल्वेंसी प्रोफेशनल की भूमिका क्या है?
    IP कंपनी या व्यक्ति के वित्तीय और प्रशासनिक मामलों का प्रबंधन करता है और योजना के क्रियान्वयन में सहयोग करता है।
  5. फराडुलेंट लेन-देन का अर्थ क्या है?
    यह लेन-देन है जिसमें कर्ज़दार जानबूझकर कर्ज़दाताओं को नुकसान पहुँचाता है, जैसे संपत्ति को कम मूल्य पर बेचना।
  6. एनसीएलटी और एनसीएलएटी का क्या कार्य है?
    एनसीएलटी इन्सॉल्वेंसी और लिक्विडेशन मामलों का निपटारा करता है। एनसीएलएटी एनसीएलटी के निर्णयों के खिलाफ अपील सुनता है।
  7. IBC के लागू होने से बैंकिंग पर क्या प्रभाव पड़ा?
    NPA में कमी, वित्तीय अनुशासन, पारदर्शिता, और विदेशी निवेश के लिए भरोसेमंद माहौल बना।
  8. लिक्विडेशन प्रक्रिया क्या है?
    यह प्रक्रिया तब होती है जब पुनर्गठन योजना विफल हो जाती है। इसमें कंपनी की संपत्ति बेचकर कर्ज़दाताओं को भुगतान किया जाता है।
  9. Swiss Ribbons Pvt. Ltd. केस का महत्व क्या है?
    इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने IBC की संवैधानिकता को मान्यता दी और कहा कि इसका उद्देश्य व्यवसायों का पुनर्जीवन है।
  10. IBC में समय सीमा का महत्व क्या है?
    समय सीमा कर्ज़ वसूली और पुनर्गठन प्रक्रिया को तेज़ बनाती है, जिससे व्यवसायों और कर्ज़दाताओं दोनों का हित सुरक्षित रहता है।