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“आरोपी के अधिकार और नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023: क्या बदला?”

“आरोपी के अधिकार और नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023: क्या बदला?”


🔷 प्रस्तावना:

भारतीय संविधान प्रत्येक व्यक्ति को जीवन, स्वतंत्रता और निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार देता है — चाहे वह निर्दोष हो या आरोपी। आपराधिक न्याय प्रणाली में आरोपी के अधिकारों की रक्षा अत्यंत महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि न्याय तभी पूरा होता है जब सिर्फ सजा ही नहीं, बल्कि निष्पक्ष सुनवाई भी सुनिश्चित हो।

दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) में इन अधिकारों की सीमित सुरक्षा दी गई थी, लेकिन 2023 में सरकार द्वारा भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (भा.ना.सु.सं.), 2023 लागू किए जाने के बाद आरोपी के अधिकारों की संरचना को नए सिरे से परिभाषित किया गया है।

यह लेख इसी विषय पर केंद्रित है कि नई संहिता ने आरोपी के अधिकारों में क्या बदलाव लाया है, और क्या यह बदलाव न्यायिक संतुलन की ओर एक सकारात्मक कदम है?


🔷 1. आरोपी के अधिकारों की संवैधानिक नींव:

संविधान के अनुच्छेद 20 और 21 आरोपी के अधिकारों की नींव रखते हैं:

  • अनुच्छेद 20: आत्म-प्रत्यायन के विरुद्ध संरक्षण, दोहरी सजा से मुक्ति।
  • अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार — विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार।

भा.ना.सु.सं. 2023 इन संवैधानिक सिद्धांतों को अधिक व्यावहारिक और मजबूत रूप में लागू करने का प्रयास करती है।


🔷 2. भा.ना.सु.सं. 2023 में आरोपी के प्रमुख अधिकार:

✅ (i) जानकारी का अधिकार (Right to Information):

  • आरोपी को गिरफ्तारी के समय स्पष्ट रूप से उस पर लगे आरोपों की जानकारी देना अनिवार्य किया गया है।
  • सभी कानूनी दस्तावेजों की प्रति — जैसे प्राथमिकी, चार्जशीट, गवाहों की सूची — आरोपी को उपलब्ध करानी होगी।

✅ (ii) कानूनी सहायता का अधिकार (Right to Legal Aid):

  • आरोपी यदि सक्षम नहीं है वकील रखने में, तो सरकार द्वारा मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान की जाएगी (पूर्ववत अधिकार, अब अधिक व्यवस्थित)।
  • यह सहायता जांच स्तर से ही प्रारंभ होगी, न कि केवल कोर्ट में।

✅ (iii) गिरफ्तारी में सुरक्षा:

  • गैर-गंभीर अपराधों में गिरफ्तारी की बजाय नोटिस की व्यवस्था को प्राथमिकता दी गई है।
  • पुलिस को गिरफ्तारी से पूर्व आरोपी के सामाजिक और व्यक्तिगत प्रभाव का भी मूल्यांकन करना होगा।

✅ (iv) वीडियो रिकॉर्डिंग और निगरानी:

  • आरोपी के बयान और पूछताछ की वीडियो रिकॉर्डिंग अनिवार्य की गई है, ताकि उत्पीड़न या ज़बरदस्ती को रोका जा सके।

✅ (v) त्वरित सुनवाई और जमानत प्रक्रिया:

  • जमानत अर्जी पर समयबद्ध सुनवाई, विशेष रूप से कमजोर वर्ग के आरोपियों के लिए।
  • जमानत न मिलने की स्थिति में उच्चतर मंच पर अपील का अधिकार।

🔷 3. तुलना: CrPC बनाम भा.ना.सु.सं.

विषय CrPC, 1973 भा.ना.सु.सं., 2023
गिरफ्तारी में पारदर्शिता सीमित निर्देश गिरफ्तारी से पूर्व मूल्यांकन अनिवार्य
कानूनी सहायता कोर्ट स्तर पर जांच से प्रारंभ
दस्तावेज़ की प्रतिलिपि कुछ सीमित पूर्ण जानकारी और प्रति देना अनिवार्य
डिजिटल संरक्षण नहीं वीडियो रिकॉर्डिंग और निगरानी
अपील की सुविधा सीमित पीड़ित और आरोपी दोनों को अपील का स्पष्ट अधिकार

🔷 4. न्यायिक संतुलन और आरोपी की गरिमा:

भा.ना.सु.सं. 2023 इस बात पर ज़ोर देती है कि आरोपी “अपराधी” नहीं है जब तक अदालत उसे दोषी सिद्ध न कर दे। अतः उसकी:

  • निजता की रक्षा,
  • मानवाधिकारों की सुरक्षा,
  • और निष्पक्ष सुनवाई का अवसर सुनिश्चित करना न्याय का मूलभूत अंग है।

🔷 5. आलोचना और चुनौतियाँ:

हालांकि प्रावधान अच्छे हैं, लेकिन कुछ चुनौतियाँ बनी हुई हैं:

  • पुलिस द्वारा अधिकारों की जानकारी देना एक औपचारिकता बन सकता है, यदि निगरानी नहीं की गई।
  • फ्री लीगल एड के लिए सक्षम और प्रशिक्षित वकीलों की कमी
  • डिजिटल रिकॉर्डिंग की तकनीकी तैयारी और निगरानी प्रणाली का अभी विस्तार नहीं हुआ है।

🔷 6. निष्कर्ष:

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 ने आरोपी को न केवल एक संवैधानिक नागरिक के रूप में देखा है, बल्कि उसके साथ न्यायसंगत और गरिमापूर्ण व्यवहार सुनिश्चित करने की पहल की है।

अब आवश्यकता है कि इन प्रावधानों को केवल कागज़ी न रखकर व्यवहार में लाया जाए — पुलिस, अभियोजन, वकील और न्यायालय सभी मिलकर आरोपी के अधिकारों की रक्षा करें, ताकि न्याय की प्रक्रिया एकपक्षीय न होकर संतुलित और न्यायसंगत हो।