IndianLawNotes.com

“आरटीआई अधिकार बनाम राज्य सुरक्षा: पुलिस विशेष शाखा पर आरटीआई लागू नहीं — अदालत ने की व्याख्या”

“RTI Act की धारा 24(4) के तहत पुलिस की विशेष शाखाओं पर सूचना का अधिकार लागू नहीं: न्यायालय का स्पष्ट आदेश और विधिक विश्लेषण”


भूमिका

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (Right to Information Act, 2005) भारत के लोकतांत्रिक ढांचे की एक अत्यंत महत्वपूर्ण कड़ी है। यह अधिनियम नागरिकों को शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने का अधिकार देता है। परंतु, इस अधिकार की भी कुछ सीमाएँ हैं, जिनका निर्धारण स्वयं अधिनियम की विभिन्न धाराओं में किया गया है। ऐसी ही एक महत्वपूर्ण सीमा धारा 24(4) के अंतर्गत आती है, जो कुछ विशेष सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों को आरटीआई के दायरे से बाहर रखती है।

हाल ही में एक महत्वपूर्ण उच्च न्यायालय निर्णय में यह स्पष्ट किया गया कि जिला पुलिस अधिकारियों की विशेष शाखाएँ (Special Branch of Police), जो अधिसूचना द्वारा अधिनियम की धारा 24(4) के तहत अपवर्जित की गई हैं, उन पर आरटीआई अधिनियम लागू नहीं होता।


मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता ने जिला पुलिस की विशेष शाखा से कुछ दस्तावेज़ माँगे थे, जो Negotiable Instruments Act, 1881 की धारा 138 (Cheque Bounce) के एक आपराधिक प्रकरण में उपयोगी हो सकते थे। याचिकाकर्ता का कहना था कि संबंधित शाखा के पास ऐसे दस्तावेज़ उपलब्ध हैं जो उनके बचाव के लिए आवश्यक हैं।

परंतु पुलिस विभाग ने आरटीआई आवेदन को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि संबंधित शाखा राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित रूप से RTI Act की धारा 24(4) के तहत अपवर्जित संस्था (Exempted Organization) है। याचिकाकर्ता ने इस निर्णय को उच्च न्यायालय में चुनौती दी, यह तर्क देते हुए कि उन्हें न्यायिक कार्यवाही में सहायता हेतु दस्तावेज़ों की आवश्यकता है, इसलिए आरटीआई के माध्यम से जानकारी देना बाध्यकारी है।


मुख्य कानूनी प्रश्न

इस मामले में न्यायालय के समक्ष मुख्य प्रश्न यह था—

“क्या RTI Act के अंतर्गत अधिसूचना द्वारा अपवर्जित पुलिस शाखा से जानकारी मांगी जा सकती है, यदि वह जानकारी किसी आपराधिक मामले में आवश्यक हो?”


न्यायालय का अवलोकन

उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में RTI Act की धारा 8(1)(h) और धारा 24(4) का विस्तृत विश्लेषण किया।

  1. धारा 8(1)(h) के अनुसार, ऐसी कोई भी सूचना प्रदान नहीं की जा सकती जिससे किसी चल रही जांच, अपराधी के पकड़ने, या अभियोजन की प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न हो।
  2. धारा 24(4) राज्य सरकार को यह अधिकार देती है कि वह अधिसूचना के माध्यम से किसी सुरक्षा या खुफिया एजेंसी को RTI Act के प्रावधानों से मुक्त कर सकती है।

राज्य सरकार ने अपने अधिकार का प्रयोग करते हुए पुलिस की कुछ शाखाओं को—जैसे कि विशेष शाखा (Special Branch), इंटेलिजेंस विंग, और सीआईडी (Criminal Investigation Department)—को आरटीआई अधिनियम के दायरे से बाहर किया हुआ है।

न्यायालय ने कहा कि जब एक बार कोई संस्था अधिसूचना के माध्यम से अपवर्जित की जा चुकी है, तब तक वह संस्था केवल उन्हीं मामलों में सूचना देने के लिए बाध्य है, जिनका संबंध भ्रष्टाचार या मानवाधिकार उल्लंघन से हो (जैसा कि RTI Act के प्रावधानों में अपवाद रूप में उल्लेखित है)।


न्यायालय का निर्णय

न्यायालय ने यह कहा कि –

  • याचिकाकर्ता द्वारा मांगे गए दस्तावेज़ किसी मानवाधिकार उल्लंघन या भ्रष्टाचार से संबंधित नहीं हैं।
  • मांगी गई जानकारी एक आपराधिक मुकदमे में साक्ष्य के रूप में उपयोग हेतु थी, जिसके लिए उचित माध्यम न्यायालय की प्रक्रिया है, न कि RTI।
  • धारा 138 NI Act के मुकदमे में आवश्यक दस्तावेज़ न्यायालय के समक्ष धारा 91 CrPC (Summons to Produce Documents) के तहत प्राप्त किए जा सकते हैं।

इस आधार पर, न्यायालय ने याचिका को गुण-दोष पर राय दिए बिना (without expressing opinion on merits) खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि याचिकाकर्ता उचित न्यायिक प्रक्रिया अपनाने के लिए स्वतंत्र हैं।


न्यायालय की महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ

  1. RTI की सीमाएँ:
    न्यायालय ने कहा कि “सूचना का अधिकार” असीमित नहीं है। यदि कोई संस्था राज्य सुरक्षा या खुफिया कार्यों में संलग्न है, तो उसकी गोपनीयता बनाए रखना प्रशासनिक आवश्यकता है।
  2. न्यायिक प्रक्रिया का महत्व:
    अदालत ने यह दोहराया कि किसी भी आपराधिक मुकदमे में दस्तावेज़ों की प्राप्ति का सही रास्ता न्यायिक प्रक्रिया है, न कि प्रशासनिक सूचना अधिकार।
  3. भ्रष्टाचार एवं मानवाधिकार अपवाद:
    यदि याचिकाकर्ता यह दिखा सके कि मांगी गई जानकारी का संबंध भ्रष्टाचार या मानवाधिकार उल्लंघन से है, तो अपवर्जित संस्थाओं से भी सूचना प्राप्त की जा सकती है। परंतु वर्तमान प्रकरण में ऐसा कोई तत्व नहीं पाया गया।

धारा 24(4) का विधिक विश्लेषण

RTI Act की धारा 24(4) राज्य सरकार को यह शक्ति देती है कि वह अधिसूचना जारी कर किसी पुलिस या खुफिया इकाई को RTI के प्रावधानों से बाहर रख सके। इसका उद्देश्य यह है कि

  • राज्य की सुरक्षा व्यवस्था, खुफिया जानकारी, और संवेदनशील दस्तावेज़ सार्वजनिक न हो जाएँ।
  • पुलिस जांच और अभियोजन की प्रक्रिया प्रभावित न हो।
  • गोपनीय स्रोतों और गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

यह धारा एक प्रकार का “सुरक्षा कवच” है, जो सुरक्षा एजेंसियों को अनावश्यक खुलासे से बचाती है।


पूर्ववर्ती न्यायिक दृष्टांत

  1. Central Board of Secondary Education v. Aditya Bandopadhyay (2011)
    — सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि RTI का उद्देश्य पारदर्शिता है, परंतु यह अधिकार अन्य कानूनों के अनुरूप सीमित किया जा सकता है।
  2. Union of India v. Central Information Commission (2019)
    — कोर्ट ने माना कि यदि कोई संस्था धारा 24 के तहत अपवर्जित है, तो उससे सूचना तभी मांगी जा सकती है जब मामला भ्रष्टाचार या मानवाधिकार से जुड़ा हो।
  3. S.P. Gupta v. Union of India (1981)
    — इस ऐतिहासिक निर्णय में न्यायालय ने यह स्वीकार किया कि सरकारी गोपनीयता भी सार्वजनिक हित के अधीन है, परंतु सुरक्षा से संबंधित मामलों में गोपनीयता सर्वोपरि है।

इस निर्णय का प्रभाव

इस निर्णय का प्रभाव व्यापक है—

  • यह स्पष्ट करता है कि पुलिस विभाग की विशेष शाखाएँ RTI के दायरे में नहीं आतीं, जब तक कि मामला भ्रष्टाचार या मानवाधिकार उल्लंघन से संबंधित न हो।
  • याचिकाकर्ताओं को न्यायिक प्रक्रिया अपनाने के लिए प्रेरित करता है, ताकि प्रशासनिक आरटीआई का दुरुपयोग न हो।
  • इससे सरकार और पुलिस की खुफिया शाखाओं को एक कानूनी सुरक्षा कवच प्राप्त होता है, जिससे उनकी गोपनीय सूचनाएँ सार्वजनिक नहीं होतीं।

आलोचनात्मक विश्लेषण

हालांकि यह निर्णय विधिक दृष्टि से उचित प्रतीत होता है, परंतु इससे नागरिकों के सूचना अधिकार की सीमा और अधिक संकुचित हो सकती है।

  • सकारात्मक पक्ष: राष्ट्रीय सुरक्षा और जांच की गोपनीयता सुरक्षित रहती है।
  • नकारात्मक पक्ष: यदि किसी व्यक्ति को न्यायिक प्रक्रिया में सहायता के लिए दस्तावेज़ों की आवश्यकता हो, तो आरटीआई के माध्यम से उसकी पहुँच कठिन हो जाती है।

कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि इस स्थिति में एक संतुलन नीति (Balanced Policy) आवश्यक है, जिससे नागरिकों के अधिकार और राज्य की सुरक्षा दोनों संरक्षित रह सकें।


निष्कर्ष

यह निर्णय न्यायिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण उदाहरण है जो सूचना के अधिकार और राज्य सुरक्षा के बीच संतुलन की आवश्यकता को रेखांकित करता है। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि RTI Act का उपयोग न्यायिक प्रक्रिया को दरकिनार करने के लिए नहीं किया जा सकता।

पुलिस की विशेष शाखाएँ, जो धारा 24(4) के अंतर्गत अधिसूचित हैं, आरटीआई के दायरे में तभी आएंगी जब मामला भ्रष्टाचार या मानवाधिकार उल्लंघन से संबंधित होगा। अन्यथा, किसी भी अभियोजन या जांच से जुड़ी जानकारी केवल न्यायालय की प्रक्रिया के माध्यम से ही प्राप्त की जा सकती है।


न्यायालय का संदेश

“सूचना का अधिकार लोकतंत्र की आत्मा है, परंतु जब यह अधिकार राज्य सुरक्षा या न्यायिक प्रक्रिया के साथ टकराता है, तब न्यायालय को संविधान और कानून दोनों के बीच संतुलन बनाना होता है।”