IndianLawNotes.com

आयु निर्धारण में स्कूल रिकॉर्ड पर्याप्त नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा—अवैध निरोध पर हैबियस कॉर्पस याचिका maintainable

आयु निर्धारण में स्कूल रिकॉर्ड पर्याप्त नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा—अवैध निरोध पर हैबियस कॉर्पस याचिका maintainable

Smt. Rohini v. State of U.P., Habeas Corpus (W.P.) No. 572 of 2025, निर्णय दिनांक: 05 दिसंबर 2025


भूमिका

        इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 05 दिसंबर 2025 को एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए यह स्पष्ट किया कि Juvenile Justice (Care and Protection of Children) Act, 2015 की धारा 94(2) के अंतर्गत किसी व्यक्ति की आयु निर्धारण (Age Determination) का आधार केवल वही दस्तावेज हो सकते हैं, जिन्हें अधिनियम में “Date of Birth Certificate” के रूप में मान्यता दी गई है। स्कूल के ट्रांसफर सर्टिफिकेट (TC), एडमिशन रजिस्टर, या प्रधानाध्यापक का मौखिक/साक्ष्य आधारित बयान “वैध जन्म प्रमाणपत्र” की श्रेणी में नहीं आते

       यह निर्णय न केवल JJ Act की व्याख्या को मजबूत करता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि गलत आयु निर्धारण के आधार पर किसी व्यक्ति को निरुद्ध (detained) नहीं किया जा सकता। यदि आयु निर्धारण आदेश बिना अधिकार क्षेत्र (without jurisdiction) या यांत्रिक तरीके से पारित हो, तो उसका परिणामस्वरूप होने वाला निरोध अवैध माना जाएगा — और ऐसे मामलों में हैबियस कॉर्पस याचिका पूरी तरह maintainable है


मामले की पृष्ठभूमि

       याचिका Smt. Rohini द्वारा Habeas Corpus याचिका के रूप में दायर की गई थी, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि उनकी पुत्री/परिजन को पुलिस ने अवैध रूप से निरुद्ध कर रखा है और उसकी उम्र गलत तरीके से कम दर्शाकर बाल कल्याण समिति (CWC) को भेज दिया गया है।

       पुलिस ने IPC की धारा 147, 363, 366, 323, 506, तथा POCSO Act 2012 के अंतर्गत अपराध दर्ज किया था। जांच के दौरान पुलिस ने लड़की की आयु स्कूल रिकॉर्ड के आधार पर कम दर्शाई और उसे बालिका गृह भेज दिया।

       CWC ने स्कूल रिकॉर्ड और प्रधानाध्यापक के बयान के आधार पर निर्णय दे दिया, जबकि ये दोनों ही धारा 94(2) के तहत वैध आयु-प्रमाण नहीं माने जाते।

      इसी अवैध आयु निर्धारण के आधार पर लड़की को हिरासत में रखा गया, जिसके खिलाफ माँ ने सीधे हाईकोर्ट में Habeas Corpus याचिका दायर की।


विवाद का मुख्य प्रश्न

     क्या स्कूल रिकॉर्ड (TC, Admission Register) तथा प्रधानाध्यापक के मौखिक बयानों के आधार पर आयु निर्धारित की जा सकती है?
और यदि CWC ने ऐसे अप्रामाणिक दस्तावेज़ों पर आधारित होकर आयु निर्धारित की है, तो क्या निरोध अवैध माना जाएगा?

       इन मूल प्रश्नों पर हाईकोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपना निर्णय दिया।


कानूनी ढांचा एवं संबंधित प्रावधान

1. धारा 94(2), Juvenile Justice Act, 2015

JJ Act में age determination का स्पष्ट तीन-स्तरीय आधार दिया गया है:

  1. (i) जन्म तिथि प्रमाणपत्र (Date of Birth Certificate)
    • जो विद्यालय (School) द्वारा जारी हो,
    • या नगरपालिका/पंचायत द्वारा जारी birth certificate,
    • या अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी वैध प्रमाणपत्र।
  2. (ii) यदि (i) उपलब्ध न हो तो मेडिकल ऑसिफिकेशन (Ossification Test)
  3. (iii) यदि उपरोक्त दोनों न हों तो CWC का विवेकाधिकार

स्पष्ट है कि Admission Register, TC, या माता-पिता के मौखिक बयान धारा 94(2)(i) में वर्णित प्रमाणपत्रों में शामिल नहीं हैं।


2. धारा 27(9), JJ Act

CWC को केवल उन्हीं मामलों में आयु निर्धारण करने का अधिकार है, जहाँ अधिनियम के तहत उसे अधिकार प्राप्त हो। यदि आदेश बिना अधिकार पारित किया जाए, तो वह असंवैधानिक और अवैध होगा।


3. Supreme Court का निर्णय – P. Yuvaprakash v. State (2023 AIR SC 3525)

हाईकोर्ट ने Yuvaprakash मामले पर भरोसा करते हुए कहा:

  • केवल स्कूल रिकॉर्ड आयु साबित नहीं करता,
  • यदि रिकॉर्ड में आयु माता-पिता द्वारा बताए गए मौखिक आधार पर दर्ज हो, तो वह प्रमाणित दस्तावेज नहीं,
  • वास्तविक जन्म प्रमाणपत्र का उत्पादन आवश्यक है।

हाईकोर्ट का विस्तृत विश्लेषण

1. स्कूल रिकॉर्ड वैध जन्म प्रमाणपत्र नहीं

कोर्ट ने साफ कहा:

  • Transfer Certificate (TC)
  • Admission Register Entry
  • प्रधानाध्यापक का oral testimony

इनमें से कोई भी धारा 94(2)(i) के अंतर्गत वैध/प्रथम प्राथमिकता का जन्म प्रमाणपत्र नहीं है।

क्योंकि:

  • ये दस्तावेज़ मूल डेटा (original birth record) पर आधारित नहीं होते
  • स्कूल अक्सर माता-पिता के कथन पर आयु दर्ज करता है
  • ऐसे रिकॉर्ड की authenticity और veracity संदेहपूर्ण रहती है

इसलिए CWC का आदेश कानूनी रूप से टिक नहीं सकता


2. CWC द्वारा पारित आदेश ‘बिना अधिकार क्षेत्र’ (Without Jurisdiction)

कोर्ट ने कहा:

  • CWC ने जिस दस्तावेज़ पर भरोसा किया, वे JJ Act के तहत कानूनन मान्य नहीं थे
  • इसलिए उसका आयु निर्धारण आदेश अवैध, यांत्रिक और अधिकारविहीन है

यदि किसी व्यक्ति को ऐसे आदेश के आधार पर निरुद्ध किया गया है, तो वह अवैध निरोध (illegal detention) बन जाएगा।


3. हैबियस कॉर्पस याचिका maintainable

चूँकि:

  • आयु निर्धारण आदेश गलत
  • निरोध अवैध
  • CWC का आदेश अधिकारविहीन

इसलिए विधि के स्थापित सिद्धांतों के अनुसार:

हैबियस कॉर्पस याचिका Maintainable है
और कोर्ट सीधे यह देखेगा कि निरोध कानून सम्मत है या नहीं।


4. निरोध अवैध – याचिका स्वीकार

कोर्ट ने पाया कि:

  • लड़की की आयु गलत तरीके से कम दिखाई गई
  • उसे सही दस्तावेजों के अभाव में CWC को भेजा गया
  • पूरा प्रक्रिया अवैध और मनमानी थी

इसलिए कोर्ट ने आदेश दिया:

  • निरोध अवैध घोषित
  • लड़की को तुरंत रिहा किया जाए
  • Habeas Corpus याचिका स्वीकार की जाती है

निर्णय का महत्व

1. फर्जी/गलत स्कूल रिकॉर्ड पर अंकुश

यह निर्णय पूरे देश के लिए एक मार्गदर्शक बनेगा। फर्जी आयु निर्धारण:

  • POCSO मामलों को गलत दिशा में ले जा सकता है
  • निर्दोष व्यक्तियों को फंसाने का कारण बनता है
  • बालिग व्यक्ति को नाबालिग दिखाकर अन्याय किया जाता है

हाईकोर्ट के इस निर्णय ने इस दुरुपयोग पर रोक लगाई है।


2. CWC की शक्तियों पर न्यायिक निगरानी

CWC कई बार:

  • पुलिस के दबाव में
  • कथित ‘rescue’ के नाम पर
  • आयु निर्धारण की प्रक्रिया को नजरअंदाज कर देता है

यह निर्णय बताता है कि CWC सुपर-लॉ अथॉरिटी नहीं है;
उसे कानून की सीमाओं में रहकर ही काम करना होगा।


3. Habeas Corpus के दायरे का विस्तार

कोर्ट ने माना कि:

  • किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Article 21) सर्वोपरि है
  • यदि procedural safeguards का पालन नहीं हुआ, तो
    निरोध स्वतः गैरकानूनी माना जाएगा

इससे Habeas Corpus remedy का उपयोग और व्यापक हुआ है।


4. पुलिस जांच की निष्पक्षता सुनिश्चित

कई बार पुलिस:

  • FIR को मजबूत बनाने
  • POCSO जोड़ने
  • या दबाव के कारण

उम्र कम दर्शा देती है।

यह निर्णय पुलिस को चेतावनी देता है कि:

  • आयु निर्धारण कानूनन निर्धारित दस्तावेज़ों पर ही आधारित होना चाहिए
  • अन्यथा पूरा मामला अदालत में गिर जाएगा

विधिक सिद्धांत जिन्हें यह निर्णय मजबूत करता है

  1. Illegal order cannot be the foundation of lawful detention
  2. Jurisdictional error = detention invalid
  3. Age determination must strictly follow Section 94(2)
  4. Fundamental Right to Liberty cannot be curtailed by faulty administrative orders
  5. School records are not birth certificates

आगे का मार्गदर्शन (Law in Practice)

विधि-व्यवसायियों, पुलिस, और न्यायालयों के लिए इस निर्णय से महत्वपूर्ण मार्गदर्शन मिलता है:

यदि किसी अभियुक्त/पीड़ित की उम्र विवादित है, तो सबसे पहले माँगा जाए:

  1. जन्म प्रमाणपत्र — Nagar Nigam / Panchayat
  2. Matriculation Certificate (यदि उपलब्ध)
  3. स्कूल द्वारा जारी DOB Certificate (not TC / admission register)

यदि इनमें से कोई नहीं मिले, तभी:

  1. Ossification Test कराना होगा

निष्कर्ष

      Smt. Rohini v. State of U.P. (05 December 2025) का निर्णय आयु निर्धारण के क्षेत्र में एक अत्यंत महत्वपूर्ण मिसाल स्थापित करता है।

हाईकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि:

  • आयु निर्धारण के लिए केवल वही दस्तावेज मान्य हैं जो JJ Act की धारा 94(2) में परिभाषित हैं
  • Admission Register, TC, प्रधानाध्यापक का बयान कानूनन मान्य नहीं
  • ऐसे आधार पर CWC का आदेश अधिकार-विहीन और अवैध
  • परिणामस्वरूप निरोध अवैध, और Habeas Corpus याचिका पूरी तरह maintainable

यह निर्णय व्यक्तिगत स्वतंत्रता, निष्पक्ष जांच, और कानून के शासन के सिद्धांतों को और मजबूत करता है।