आपातकालीन परिस्थितियों में नागरिकों के कानूनी अधिकार
प्रस्तावना
लोकतांत्रिक व्यवस्था में नागरिकों के अधिकार सर्वोच्च महत्व रखते हैं, किंतु कभी-कभी राष्ट्रीय सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था या संविधान की रक्षा हेतु ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं जब सामान्य अधिकारों पर अस्थायी रूप से प्रतिबंध लगाया जाता है। भारतीय संविधान में आपातकाल (Emergency) से संबंधित विशेष प्रावधान दिए गए हैं, जो केंद्र सरकार को व्यापक शक्तियाँ प्रदान करते हैं। हालाँकि, इन परिस्थितियों में भी नागरिक पूर्णतः अधिकार-विहीन नहीं हो जाते। कुछ अधिकार अबाध रूप से नागरिकों को प्राप्त रहते हैं, वहीं कुछ अधिकार सीमित अथवा निलंबित हो सकते हैं। इस लेख में हम आपातकालीन परिस्थितियों में नागरिकों के कानूनी अधिकारों, संवैधानिक प्रावधानों और न्यायिक व्याख्याओं का विस्तृत विश्लेषण करेंगे।
आपातकाल की संवैधानिक परिभाषा
भारतीय संविधान के भाग XVIII (अनुच्छेद 352 से 360) में आपातकाल की व्यवस्था की गई है। आपातकाल तीन प्रकार का हो सकता है –
- राष्ट्रीय आपातकाल (Article 352) – युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में।
- राज्य आपातकाल या राष्ट्रपति शासन (Article 356) – जब राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल हो जाता है।
- वित्तीय आपातकाल (Article 360) – जब देश की वित्तीय स्थिरता को खतरा हो।
इन परिस्थितियों में केंद्र सरकार राज्यों पर अधिक अधिकार जमा सकती है और नागरिकों के कुछ मौलिक अधिकारों को सीमित कर सकती है।
आपातकाल में मौलिक अधिकारों की स्थिति
भारतीय संविधान में अनुच्छेद 12 से 35 तक मौलिक अधिकारों का उल्लेख है। आपातकालीन परिस्थितियों में इन अधिकारों पर विशेष प्रभाव पड़ता है:
- राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352) के दौरान –
- अनुच्छेद 19 (स्वतंत्रता के अधिकार) स्वतः निलंबित हो जाते हैं।
- अनुच्छेद 20 (दोषसिद्धि के समय संरक्षण) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) को छीनना संभव नहीं है।
- संसद अनुच्छेद 359 के तहत राष्ट्रपति से यह घोषणा करवा सकती है कि कुछ अधिकार नागरिकों द्वारा न्यायालय में लागू नहीं किए जा सकेंगे।
- राज्य आपातकाल (अनुच्छेद 356) –
- यहाँ नागरिकों के मौलिक अधिकार प्रत्यक्ष रूप से निलंबित नहीं होते, बल्कि राज्य सरकार की शक्तियाँ राष्ट्रपति के अधीन चली जाती हैं।
- इससे प्रशासनिक और विधायी प्रक्रिया प्रभावित होती है।
- वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360) –
- इसमें मौलिक अधिकार सीधे प्रभावित नहीं होते, लेकिन सरकारी कर्मचारियों के वेतन और न्यायालयों के खर्चों पर नियंत्रण लगाया जा सकता है।
नागरिकों के अबाध अधिकार
आपातकाल में भी कुछ अधिकार नागरिकों से नहीं छीने जा सकते।
- अनुच्छेद 20: अपराध के समय लागू कानून के आधार पर ही दंड दिया जाएगा।
- अनुच्छेद 21: किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही जीवन और स्वतंत्रता से वंचित किया जा सकता है।
- अनुच्छेद 32 (न्याय पाने का अधिकार) आपातकाल में सीमित किया जा सकता है, लेकिन जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर पूर्ण प्रतिबंध संभव नहीं है।
न्यायिक व्याख्या और ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
भारतीय न्यायपालिका ने आपातकालीन अधिकारों की व्याख्या कई महत्वपूर्ण निर्णयों में की है।
- ADM जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला (1976): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपातकाल में अनुच्छेद 21 का भी प्रवर्तन नहीं किया जा सकता। इस निर्णय की व्यापक आलोचना हुई और बाद में 44वें संविधान संशोधन (1978) द्वारा स्पष्ट कर दिया गया कि अनुच्छेद 20 और 21 आपातकाल में भी निलंबित नहीं होंगे।
- केशवानंद भारती बनाम राज्य केरल (1973): सुप्रीम कोर्ट ने ‘मौलिक संरचना सिद्धांत’ प्रतिपादित किया, जिसके अनुसार संविधान के मूल ढाँचे को संसद भी नहीं बदल सकती।
- इंदिरा गांधी बनाम राज नारायण (1975): न्यायालय ने चुनावी प्रक्रिया की पवित्रता को मूल संरचना का हिस्सा माना।
आपातकालीन परिस्थितियों में नागरिकों की सुरक्षा हेतु संशोधन
- 42वाँ संविधान संशोधन (1976) – आपातकालीन शक्तियों को व्यापक बनाया गया।
- 44वाँ संविधान संशोधन (1978) – नागरिकों की सुरक्षा हेतु महत्त्वपूर्ण प्रावधान किए गए, जैसे:
- अनुच्छेद 20 और 21 को निलंबित न करने की गारंटी।
- आपातकाल की घोषणा करने के लिए युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह जैसी गंभीर परिस्थितियाँ ही मान्य होंगी।
- राष्ट्रपति को आपातकाल हटाने का भी अधिकार दिया गया।
आपातकालीन स्थिति में नागरिकों की जिम्मेदारियाँ
कानून केवल अधिकार ही नहीं देता, बल्कि नागरिकों पर कुछ दायित्व भी डालता है। आपातकाल में –
- नागरिकों को राष्ट्रीय एकता और अखंडता बनाए रखने का कर्तव्य है।
- कानून और व्यवस्था का पालन करना आवश्यक है।
- सेना, पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों की सहायता करना नागरिक का दायित्व है।
- गलत सूचना या अफवाह फैलाना दंडनीय अपराध है।
आलोचनाएँ और सुधार की आवश्यकता
आपातकालीन प्रावधानों की आलोचना मुख्यतः इस आधार पर हुई है कि इनका दुरुपयोग राजनीतिक कारणों से किया जा सकता है। 1975 का आपातकाल इसका सबसे बड़ा उदाहरण है जब नागरिक स्वतंत्रता गंभीर रूप से प्रभावित हुई थी। इसलिए विशेषज्ञों का मत है कि –
- आपातकाल घोषित करने की प्रक्रिया को और कठोर बनाया जाए।
- न्यायपालिका की स्वतंत्रता को सुनिश्चित किया जाए।
- मीडिया और नागरिक समाज को अधिक सुरक्षा प्रदान की जाए ताकि दमनकारी नीतियों का विरोध हो सके।
निष्कर्ष
भारतीय संविधान ने आपातकालीन परिस्थितियों का सामना करने के लिए पर्याप्त प्रावधान किए हैं। यह सही है कि आपातकाल में कुछ अधिकारों पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है, किंतु नागरिक पूरी तरह अधिकार-विहीन नहीं होते। अनुच्छेद 20 और 21 जैसी धाराएँ उन्हें जीवन और स्वतंत्रता की न्यूनतम सुरक्षा देती हैं। 44वें संशोधन ने नागरिक स्वतंत्रता को और मज़बूत किया है। लोकतंत्र के लिए यह आवश्यक है कि आपातकालीन शक्तियों का प्रयोग केवल राष्ट्रीय हित में किया जाए, न कि राजनीतिक स्वार्थ के लिए। अतः नागरिकों को अपने अधिकारों के प्रति सजग रहना चाहिए और शासन को उत्तरदायी बनाए रखना चाहिए, ताकि आपातकालीन स्थिति में भी संविधान और लोकतंत्र की मूल भावना सुरक्षित रह सके।
आपातकालीन परिस्थितियों में नागरिक अधिकारों से जुड़ी संवैधानिक धाराएँ
| अनुच्छेद (Article) | विषय (Provision) | संक्षिप्त विवरण |
|---|---|---|
| 352 | राष्ट्रीय आपातकाल | युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में आपातकाल घोषित किया जा सकता है। |
| 353 | आपातकाल के प्रभाव | केंद्र सरकार को राज्यों पर कार्यपालिका और विधायिका की व्यापक शक्तियाँ प्राप्त होती हैं। |
| 354 | वित्तीय वितरण में संशोधन | आपातकाल के दौरान केंद्र राज्य के वित्तीय संसाधनों के वितरण को बदल सकता है। |
| 355 | राज्यों की रक्षा | केंद्र सरकार का कर्तव्य है कि वह राज्यों को बाहरी आक्रमण और आंतरिक गड़बड़ी से बचाए। |
| 356 | राज्य आपातकाल (राष्ट्रपति शासन) | जब राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल हो जाए तो राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। |
| 357 | राज्य विधानमंडल की शक्तियों का प्रयोग | राष्ट्रपति या संसद राज्य की विधायी शक्तियों का प्रयोग कर सकते हैं। |
| 358 | अनुच्छेद 19 का निलंबन | राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान अनुच्छेद 19 (स्वतंत्रता का अधिकार) स्वतः निलंबित हो जाता है। |
| 359 | मौलिक अधिकारों का प्रवर्तन निलंबित | राष्ट्रपति आदेश द्वारा कुछ मौलिक अधिकारों (अनुच्छेद 20 और 21 को छोड़कर) के प्रवर्तन को निलंबित कर सकता है। |
| 360 | वित्तीय आपातकाल | देश की वित्तीय स्थिरता और साख को खतरा होने पर घोषित किया जा सकता है। इसमें सरकारी वेतन और न्यायालयों पर वित्तीय नियंत्रण लगाया जा सकता है। |
| 20 | अपराध के समय संरक्षण | दोहरी सजा से सुरक्षा, प्रतिकूल प्रभाव वाले कानून से संरक्षण – आपातकाल में भी नहीं छीना जा सकता। |
| 21 | जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार | विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के बिना किसी को जीवन और स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता – आपातकाल में भी संरक्षित। |
| 32 | संवैधानिक उपचार का अधिकार | मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया जा सकता है, हालाँकि आपातकाल में इसका प्रवर्तन सीमित किया जा सकता है। |