IndianLawNotes.com

आपातकालीन चिकित्सा सेवा अस्पताल की कानूनी बाध्यता

आपातकालीन चिकित्सा सेवा अस्पताल की कानूनी बाध्यता

भूमिका
भारत में स्वास्थ्य सेवा को एक मौलिक अधिकार के रूप में देखा जाता है। संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत “जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार” की परिभाषा में स्वास्थ्य और चिकित्सा सुविधा को भी सम्मिलित किया गया है। विशेषकर आपातकालीन चिकित्सा सेवा (Emergency Medical Service) के मामले में अस्पतालों और चिकित्सकों पर कानूनी बाध्यताएँ (Legal Obligations) लगाई गई हैं ताकि किसी भी व्यक्ति को समय पर उपचार मिल सके और उसकी जान बचाई जा सके। आपातकालीन स्थिति में उपचार प्रदान करना केवल नैतिक कर्तव्य ही नहीं, बल्कि कानूनी दायित्व भी है।


आपातकालीन चिकित्सा सेवा की परिभाषा

आपातकालीन चिकित्सा सेवा वह चिकित्सकीय सुविधा है जो किसी गंभीर चोट, दुर्घटना, प्रसव, हृदयाघात, दमा, स्ट्रोक, विषाक्तता, जलने या अन्य जीवन-घातक परिस्थिति में तुरंत दी जाती है। इसका उद्देश्य रोगी की जान बचाना, उसे स्थिर करना और समय पर उचित चिकित्सा उपलब्ध कराना होता है।


अस्पतालों की कानूनी बाध्यता

भारत में अस्पतालों और चिकित्सकों की कानूनी बाध्यता निम्नलिखित पहलुओं पर आधारित है—

1. संविधानिक दायित्व

  • अनुच्छेद 21 – जीवन का अधिकार
    उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि जीवन का अधिकार केवल अस्तित्व का अधिकार नहीं है, बल्कि गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार भी है। आपातकालीन चिकित्सा सुविधा न देना अनुच्छेद 21 का उल्लंघन माना जाएगा।
  • अनुच्छेद 47 – राज्य का नीति निर्देशक तत्व
    यह राज्य पर यह दायित्व डालता है कि वह जनता के स्वास्थ्य स्तर को सुधारने के लिए उपाय करे और आवश्यक चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध कराए।

2. न्यायालय के निर्णय

  • परमानंद कटारा बनाम भारत संघ (1989)
    इस ऐतिहासिक मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि “किसी भी डॉक्टर, चाहे वह सरकारी हो या निजी, की प्राथमिक जिम्मेदारी है कि वह आपातकालीन स्थिति में रोगी का इलाज करे।”
    अदालत ने कहा कि अस्पताल और चिकित्सक यह बहाना नहीं बना सकते कि मामला पुलिस का है या कि शुल्क जमा नहीं हुआ है।
  • प्रसाद बनाम Union of India तथा अन्य निर्णयों में भी न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अस्पताल का प्रथम कर्तव्य रोगी की जान बचाना है।

3. भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम और आचार संहिता

  • भारतीय चिकित्सा परिषद (Medical Council of India – MCI) द्वारा जारी Indian Medical Council (Professional Conduct, Etiquette and Ethics) Regulations, 2002 में कहा गया है कि चिकित्सक को आपातकालीन स्थिति में कभी भी उपचार से इंकार नहीं करना चाहिए।
  • चिकित्सकों को रोगी की प्राथमिक सहायता (First Aid) देने और जीवन रक्षक उपचार करने की कानूनी जिम्मेदारी है।

4. क्लिनिकल एस्टैब्लिशमेंट अधिनियम, 2010

  • इस अधिनियम के तहत पंजीकृत अस्पतालों पर यह दायित्व है कि वे न्यूनतम मानक चिकित्सा सुविधाएँ प्रदान करें।
  • आपातकालीन सेवा में अस्पताल द्वारा लापरवाही करना या उपचार से इनकार करना अधिनियम का उल्लंघन माना जाएगा।

5. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019

  • अस्पताल और चिकित्सक सेवा प्रदाता (Service Provider) की श्रेणी में आते हैं।
  • यदि आपातकालीन उपचार से इंकार किया जाता है, तो रोगी या उसके परिजन अस्पताल के खिलाफ Medical Negligence का दावा कर सकते हैं।
  • उपभोक्ता आयोग अस्पताल पर क्षतिपूर्ति (Compensation) का आदेश दे सकता है।

6. भारतीय दंड संहिता (IPC) की प्रासंगिक धाराएँ

  • धारा 304A – लापरवाही से मृत्यु। यदि डॉक्टर या अस्पताल की लापरवाही से रोगी की मृत्यु हो जाती है, तो यह धारा लागू हो सकती है।
  • धारा 336, 337 और 338 – किसी व्यक्ति के जीवन या सुरक्षा को खतरे में डालने वाले कृत्य पर दंड।
  • धारा 39 CrPC – कुछ अपराधों की सूचना देना डॉक्टर का दायित्व है, लेकिन यह उपचार रोकने का आधार नहीं बन सकता।

निजी और सरकारी अस्पतालों की जिम्मेदारी

  • सरकारी अस्पताल : इन पर संवैधानिक दायित्व अधिक है क्योंकि ये राज्य के अंग हैं। इन्हें निःशुल्क या न्यूनतम शुल्क पर आपातकालीन सेवा देनी ही होगी।
  • निजी अस्पताल : न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि निजी अस्पताल भी आपातकालीन स्थिति में इलाज से इंकार नहीं कर सकते। शुल्क की मांग या पुलिस प्रक्रिया को कारण बनाकर उपचार टालना अवैध है।

व्यावहारिक बाधाएँ और समाधान

  1. चिकित्सा संसाधनों की कमी – ग्रामीण क्षेत्रों में एम्बुलेंस, ICU और विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी।
    • समाधान: सरकार को बुनियादी स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत करना चाहिए।
  2. कानूनी डर – डॉक्टर अक्सर कानूनी झंझटों और पुलिस मामलों से बचने के लिए आपातकालीन रोगियों को लेने से हिचकिचाते हैं।
    • समाधान: Good Samaritan Law और उचित कानूनी सुरक्षा प्रदान की गई है, जिसे और सख्ती से लागू किया जाना चाहिए।
  3. शुल्क का मुद्दा – निजी अस्पताल शुल्क जमा न होने पर रोगी को भर्ती करने से इंकार कर देते हैं।
    • समाधान: सरकार ने यह प्रावधान किया है कि जीवनरक्षक उपचार पहले किया जाए और शुल्क बाद में वसूला जाए।

गुड समैरिटन कानून (Good Samaritan Law)

भारत सरकार ने 2016 में Good Samaritan Guidelines जारी कीं, जिसके अनुसार यदि कोई व्यक्ति सड़क दुर्घटना में घायल व्यक्ति को अस्पताल ले जाता है, तो अस्पताल को तुरंत मुफ्त में प्राथमिक उपचार देना होगा। किसी भी स्थिति में अस्पताल इलाज से मना नहीं कर सकता।


निष्कर्ष

आपातकालीन चिकित्सा सेवा केवल एक चिकित्सा प्रक्रिया नहीं बल्कि जीवन रक्षा का संवैधानिक, नैतिक और कानूनी दायित्व है। अस्पताल और डॉक्टर दोनों पर यह जिम्मेदारी है कि वे किसी भी आपातकालीन स्थिति में रोगी को प्राथमिक उपचार और आवश्यक चिकित्सा सहायता प्रदान करें।
उपचार से इंकार करना या देरी करना नैतिक अपराध ही नहीं बल्कि कानूनी अपराध भी है। परमानंद कटारा मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया कि “हर सेकंड कीमती है, और किसी भी स्थिति में जीवन बचाने की प्राथमिकता सर्वोच्च है।”

इसलिए, भारत में अस्पतालों और चिकित्सकों के लिए आपातकालीन चिकित्सा सेवा प्रदान करना न केवल एक कानूनी बाध्यता है बल्कि मानवता का भी सर्वोच्च कर्तव्य है।