आपराधिक मामलों में ‘Res Judicata’ का सिद्धांत: S.C. Garg vs. State of Uttar Pradesh & Anr. निर्णय का विश्लेषण

शीर्षक: आपराधिक मामलों में ‘Res Judicata’ का सिद्धांत: S.C. Garg vs. State of Uttar Pradesh & Anr. निर्णय का विश्लेषण


प्रस्तावना:
‘Res Judicata’ एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है जो यह सुनिश्चित करता है कि एक ही विवाद को बार-बार अलग-अलग मंचों पर न उठाया जाए। यह सिद्धांत सामान्यतः दीवानी मामलों में लागू होता है, परंतु S.C. Garg vs. State of Uttar Pradesh & Anr. के ऐतिहासिक निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यह सिद्धांत आपराधिक कार्यवाहियों में भी समान रूप से लागू हो सकता है। अदालत ने यह भी कहा कि यदि किसी आपराधिक अदालत द्वारा कोई तथ्यात्मक निष्कर्ष (finding of fact) दर्ज किया गया है, तो वह दोनों पक्षों पर बाद की कार्यवाहियों में बाध्यकारी रहेगा, बशर्ते विवादित मुद्दा वही हो।


मामले की पृष्ठभूमि:
इस मामले में याचिकाकर्ता S.C. Garg ने एक आपराधिक कार्यवाही में कुछ तथ्यों को चुनौती दी थी, जिन पर पहले ही किसी अन्य आपराधिक मामले में निर्णय हो चुका था। प्रतिवादी पक्ष का तर्क था कि अब वे तथ्यों पर फिर से बहस नहीं हो सकती क्योंकि वे पूर्व में निर्णीत हो चुके हैं और इसलिए ‘res judicata’ लागू होती है।

याचिकाकर्ता ने यह आपत्ति उठाई कि ‘res judicata’ की अवधारणा केवल दीवानी मुकदमों पर लागू होती है, आपराधिक मामलों में नहीं।


सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि:

  1. ‘Res Judicata’ का मूल उद्देश्य न्यायिक निर्णयों की अंतिमता और दोहराव से बचाव है, जो किसी भी प्रकार की न्यायिक प्रक्रिया – दीवानी हो या आपराधिक – में लागू होता है।
  2. जब एक आपराधिक अदालत किसी तथ्य पर निष्कर्ष (finding of fact) देती है, और वही मुद्दा भविष्य की किसी कार्यवाही में पुनः सामने आता है, तो पूर्व निष्कर्ष दोनों पक्षों पर बाध्यकारी होगा।
  3. न्यायालय ने कहा कि Section 300 of CrPC और Article 20(2) of the Constitution यद्यपि ‘double jeopardy’ से संबंधित हैं, लेकिन न्यायिक सुसंगति और न्यायिक व्यय की दृष्टि से ‘res judicata’ का सैद्धांतिक और व्यावहारिक आधार आपराधिक मामलों में भी यथोचित लागू होता है।

न्यायिक महत्व:
इस निर्णय के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट ने निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिंदुओं को मान्यता दी:

  • एक बार निर्णीत तथ्यात्मक निष्कर्षों को दोहराया नहीं जा सकता, ताकि न्यायिक प्रणाली की दक्षता बनी रहे।
  • यह सिद्धांत fair trial और legal certainty जैसे सिद्धांतों को बल देता है।
  • इस निर्णय से यह सुनिश्चित होता है कि कोई पक्ष द्वेषपूर्ण ढंग से समान मुद्दों को बार-बार उठा कर न्यायालय का दुरुपयोग न करे

निष्कर्ष:
S.C. Garg vs. State of Uttar Pradesh & Anr. निर्णय भारतीय विधि व्यवस्था में एक मील का पत्थर है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने ‘res judicata’ जैसे दीवानी सिद्धांत को आपराधिक न्याय प्रक्रिया में विस्तार से लागू करने की वैधता को स्वीकार किया। यह न केवल न्यायिक व्यवस्था की स्थिरता और अंतिमता की रक्षा करता है, बल्कि अनावश्यक मुकदमेबाज़ी और पुनरावृत्ति से भी बचाव करता है। यह निर्णय भविष्य के आपराधिक मामलों में मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में काम करेगा।