“आपराधिक इतिहास हर मामले में निर्णायक नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट का अग्रिम जमानत पर महत्वपूर्ण फैसला”
बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए एक ऐसे व्यक्ति को अग्रिम जमानत प्रदान की, जिस पर चोरी और आपराधिक धमकी जैसे गंभीर आरोप लगे थे। लेकिन अदालत ने इस बात पर विशेष ज़ोर दिया कि हर आपराधिक मामले में आरोपी के पूर्व इतिहास को एक तय मानक या ‘स्ट्रेट जैकेट फॉर्मूला’ के तौर पर लागू नहीं किया जा सकता।
मामले की पृष्ठभूमि:
- आरोपी व्यक्ति पर चोरी और आपराधिक धमकी देने का आरोप लगाया गया था।
- शिकायतकर्ता ने दावा किया कि आरोपी ने जानबूझकर उसकी संपत्ति में घुसकर न केवल चोरी की, बल्कि उसे जान से मारने की धमकी भी दी।
- आरोपी ने कोर्ट में अग्रिम जमानत के लिए याचिका दायर की, यह कहते हुए कि मामला निजी संपत्ति से संबंधित सिविल विवाद का है, और यह एक आपराधिक साजिश नहीं, बल्कि पारिवारिक या व्यक्तिगत झगड़े का परिणाम है।
अदालत की महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ:
न्यायमूर्ति एस.जी. मेहता की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा:
- “हर आपराधिक केस में आरोपी के आपराधिक इतिहास को ‘स्ट्रेट जैकेट फॉर्मूला’ की तरह नहीं देखा जा सकता।”
- “प्रथम दृष्टया यह मामला एक सिविल प्रकृति का विवाद प्रतीत होता है, जिसमें निजी स्वामित्व और उपयोग का झगड़ा शामिल है।”
- अदालत ने यह भी माना कि झूठे आरोप लगाकर आपराधिक धाराओं का दुरुपयोग भी एक बढ़ती प्रवृत्ति है, विशेषतः जब मामला संपत्ति के स्वामित्व या कब्जे से संबंधित हो।
सिविल और क्रिमिनल विवाद में अंतर:
- कोर्ट ने इस निर्णय के माध्यम से यह स्पष्ट संकेत दिया कि सभी झगड़े जो आपराधिक धाराओं के अंतर्गत लाए जाते हैं, वास्तव में आपराधिक नहीं होते, बल्कि उनमें से कई विवाद सिविल प्रकृति के होते हैं।
- विशेषतः संपत्ति विवादों में अक्सर फौजदारी धाराएं (IPC sections) जोड़ दी जाती हैं ताकि दबाव बनाया जा सके।
फैसले के प्रभाव:
- यह निर्णय न्यायपालिका की इस सोच को रेखांकित करता है कि न्याय की आत्मा ‘मामले की प्रकृति’ को देखकर ही निर्णय लेना है, न कि एक टेम्पलेट आधारित न्याय प्रणाली से।
- यह उन मामलों में राहत प्रदान करने की दिशा में एक मिसाल बन सकता है, जहाँ आरोपी को झूठे मुकदमों में फँसाया गया हो।
निष्कर्ष:
बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ का यह फैसला भारतीय न्याय व्यवस्था में न्यायिक विवेक और संतुलन का प्रमाण है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कानून का उद्देश्य किसी को बिना आधार दंडित करना नहीं, बल्कि निष्पक्ष रूप से न्याय देना है। यह फैसला विशेष रूप से उन मामलों के लिए प्रेरणास्रोत हो सकता है जहाँ आपराधिक कानूनों का दुरुपयोग कर सिविल विवादों को जबरन फौजदारी मुकदमे का रूप दे दिया जाता है।