आपदा प्रबंधन में नागरिक भागीदारी और विधिक ढाँचा (Citizen Participation and Legal Framework in Disaster Management)
प्रस्तावना
आपदा किसी भी समय और कहीं भी घटित हो सकती है। यह प्राकृतिक हो सकती है जैसे – भूकंप, बाढ़, चक्रवात, सुनामी, महामारी आदि, अथवा मानव-निर्मित जैसे – औद्योगिक दुर्घटनाएँ, रासायनिक रिसाव, आतंकवादी हमला और युद्ध। आपदा का सबसे बड़ा प्रभाव आम नागरिकों पर पड़ता है, इसलिए नागरिक भागीदारी और विधिक ढाँचा (Legal Framework) आपदा प्रबंधन की सफलता के लिए अनिवार्य है। केवल सरकारी तंत्र से आपदा का प्रभावी प्रबंधन संभव नहीं है, जब तक नागरिक समाज, स्वयंसेवी संगठन और स्थानीय समुदाय सक्रिय भूमिका न निभाएँ।
भारत जैसे विशाल और विविध भूगोल वाले देश में जहाँ लगभग हर वर्ष बाढ़, सूखा, भूकंप और चक्रवात आते रहते हैं, वहाँ नागरिक भागीदारी और कानूनी व्यवस्था का महत्व और भी बढ़ जाता है। इस लेख में हम आपदा प्रबंधन में नागरिकों की भूमिका, कानूनी ढाँचे, नीतिगत उपाय, चुनौतियों और समाधान पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
आपदा प्रबंधन की अवधारणा
आपदा प्रबंधन वह संगठित प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत आपदा की रोकथाम, तैयारी, प्रतिक्रिया और पुनर्वास के उपाय किए जाते हैं। इसका उद्देश्य मानव जीवन, पशुधन, संपत्ति और पर्यावरण को होने वाली क्षति को न्यूनतम करना है।
चार प्रमुख चरण इस प्रकार हैं:
- प्रतिकार (Mitigation): आपदा की संभावना और प्रभाव को कम करने वाले दीर्घकालिक उपाय।
- तैयारी (Preparedness): संभावित आपदा से निपटने के लिए योजना, प्रशिक्षण और संसाधन जुटाना।
- प्रतिक्रिया (Response): आपदा घटित होने के तुरंत बाद राहत और बचाव कार्य।
- पुनर्वास (Recovery): आपदा प्रभावित क्षेत्र का पुनर्निर्माण और नागरिकों का पुनः सामान्य जीवन की ओर लौटना।
भारत में कानूनी ढाँचा
1. आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005
- इस अधिनियम द्वारा राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) की स्थापना हुई।
- प्रधानमंत्री इसके अध्यक्ष होते हैं।
- राज्य और जिला स्तर पर क्रमशः SDMA और DDMA गठित किए गए।
- अधिनियम में राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) का गठन हुआ जो विशेष प्रशिक्षण प्राप्त बल है।
- कोविड-19 महामारी के समय लॉकडाउन, क्वारंटाइन और स्वास्थ्य आपातकालीन उपाय इसी अधिनियम के अंतर्गत लिए गए।
2. नागरिक सुरक्षा अधिनियम, 1968
- युद्ध, बाहरी आक्रमण या आपदा की स्थिति में नागरिकों की सुरक्षा हेतु यह अधिनियम लागू है।
- इसमें नागरिक सुरक्षा स्वयंसेवकों की नियुक्ति और प्रशिक्षण का प्रावधान है।
- यह केवल युद्धकालीन नहीं बल्कि प्राकृतिक आपदाओं में भी लागू होता है।
3. अन्य संबंधित कानून
- पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 – औद्योगिक और पर्यावरणीय आपदाओं की रोकथाम।
- पब्लिक लाइबिलिटी इंश्योरेंस एक्ट, 1991 – औद्योगिक दुर्घटना में त्वरित मुआवजा।
- फैक्टरी अधिनियम, 1948 – औद्योगिक सुरक्षा और स्वास्थ्य प्रावधान।
नागरिक भागीदारी का महत्व
नागरिक आपदा प्रबंधन के केंद्र में होते हैं। उनके सहयोग के बिना कोई भी योजना कारगर नहीं हो सकती। नागरिक भागीदारी के कुछ प्रमुख पहलू निम्नलिखित हैं:
- जागरूकता और शिक्षा:
- स्थानीय लोगों को आपदा की प्रकृति और उससे बचाव के उपायों की जानकारी होना आवश्यक है।
- स्कूलों और कॉलेजों में आपदा शिक्षा पाठ्यक्रम का हिस्सा होना चाहिए।
- स्वयंसेवी संगठन और NGOs की भूमिका:
- राहत, पुनर्वास और स्वास्थ्य सेवाओं में NGOs की भागीदारी महत्वपूर्ण है।
- रेड क्रॉस, सेव द चिल्ड्रन, और स्थानीय स्वयंसेवी संस्थाएँ संकट के समय बड़ा सहयोग देती हैं।
- समुदाय आधारित आपदा प्रबंधन (CBDM):
- ग्राम पंचायत और नगर निकाय स्तर पर आपदा प्रबंधन समितियाँ गठित होनी चाहिए।
- सामुदायिक प्रशिक्षण और आपदा अभ्यास (Mock Drill) जरूरी हैं।
- जनसहयोग:
- रक्तदान, राहत सामग्री, आश्रय, और आर्थिक सहयोग।
- नागरिकों द्वारा तकनीकी सहयोग जैसे – मोबाइल एप्स, सोशल मीडिया सूचना साझा करना।
भारत में आपदा प्रबंधन की प्रमुख संस्थाएँ
- NDMA (राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण): नीति निर्माण और दिशा-निर्देशन।
- NDRF (राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल): विशेष प्रशिक्षण प्राप्त बल।
- SDMA और DDMA: राज्य और जिला स्तर पर योजना एवं क्रियान्वयन।
- भारतीय मौसम विभाग (IMD): आपदा पूर्व चेतावनी प्रणाली।
- स्वास्थ्य मंत्रालय और सेना: आपातकालीन सेवाओं और राहत में महत्वपूर्ण।
प्रमुख आपदाएँ और उनसे मिले सबक
- ओडिशा सुपर साइक्लोन (1999):
- लाखों लोग प्रभावित हुए।
- चेतावनी और बचाव व्यवस्था की कमी उजागर हुई।
- गुजरात भूकंप (2001):
- भारी जनहानि और संपत्ति की क्षति।
- बेहतर निर्माण कोड और आपदा प्रतिक्रिया की आवश्यकता स्पष्ट हुई।
- सुनामी (2004):
- दक्षिण भारत और अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह में तबाही।
- समुद्री आपदा प्रबंधन प्रणाली की स्थापना हुई।
- उत्तराखंड बाढ़ (2013):
- धार्मिक पर्यटन क्षेत्र में आपदा प्रबंधन की कमी सामने आई।
- कोविड-19 महामारी (2020):
- लॉकडाउन, स्वास्थ्य आपातकाल, और आर्थिक संकट।
- आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 का व्यापक उपयोग हुआ।
नागरिक सुरक्षा और आपदा प्रबंधन का समन्वय
- नागरिक सुरक्षा युद्धकालीन और आपदा कालीन दोनों परिस्थितियों में नागरिकों की रक्षा सुनिश्चित करती है।
- आपदा प्रबंधन प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं पर केंद्रित है।
- दोनों का उद्देश्य नागरिक जीवन, संपत्ति और संसाधनों की सुरक्षा करना है।
- इनके लिए सामूहिक जिम्मेदारी और नागरिक सहयोग अनिवार्य है।
चुनौतियाँ
- आपदा प्रबंधन योजनाओं का जमीनी स्तर पर कमजोर क्रियान्वयन।
- ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में संसाधनों की कमी।
- नागरिकों और स्थानीय समुदाय में जागरूकता की कमी।
- राजनीतिक-प्रशासनिक समन्वय का अभाव।
- तकनीकी साधनों (सैटेलाइट, GIS, ड्रोन) का सीमित उपयोग।
- आपदा राहत फंड का पारदर्शी उपयोग न होना।
- जलवायु परिवर्तन के कारण आपदाओं की बढ़ती तीव्रता।
सुधार और समाधान
- स्थानीय स्तर पर आपदा प्रबंधन समितियों को सशक्त करना।
- स्कूलों और कॉलेजों में आपदा शिक्षा और नागरिक सुरक्षा प्रशिक्षण।
- आधुनिक तकनीक का प्रयोग – ड्रोन, GIS मैपिंग, सैटेलाइट पूर्वानुमान।
- आपदा बीमा व्यवस्था को सरल और सुलभ बनाना।
- PPP मॉडल द्वारा निजी क्षेत्र की भागीदारी।
- आपदा राहत फंड का पारदर्शी प्रबंधन।
- NGOs और स्वयंसेवकों को औपचारिक रूप से आपदा प्रबंधन ढाँचे में सम्मिलित करना।
अंतर्राष्ट्रीय सहयोग
भारत ने आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी सहयोग बढ़ाया है।
- सेंडाई फ्रेमवर्क (2015-2030): आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर वैश्विक समझौता।
- संयुक्त राष्ट्र आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्यालय (UNDRR) के साथ भारत का सहयोग।
- दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) के अंतर्गत आपदा प्रबंधन तंत्र।
निष्कर्ष
भारत में नागरिक सुरक्षा और आपदा प्रबंधन केवल सरकारी नीति या कानून का विषय नहीं है, बल्कि यह सामूहिक जिम्मेदारी है। आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 और नागरिक सुरक्षा अधिनियम, 1968 ने कानूनी ढाँचा उपलब्ध कराया है, लेकिन इसका प्रभाव तभी दिखेगा जब नागरिक समाज सक्रिय भागीदारी करेगा।
नागरिकों की जागरूकता, सामुदायिक सहयोग, आधुनिक तकनीक और पारदर्शी प्रशासन के माध्यम से भारत एक मजबूत आपदा प्रबंधन प्रणाली विकसित कर सकता है। आपदा चाहे प्राकृतिक हो या मानव निर्मित, यदि नागरिक और सरकार मिलकर कार्य करें तो नुकसान को न्यूनतम किया जा सकता है। यही आपदा प्रबंधन में नागरिक भागीदारी और विधिक ढाँचे की वास्तविक सफलता है।
नागरिक सुरक्षा और आपदा प्रबंधन कानून से संबंधित संभावित परीक्षा प्रश्न
A. Objective Type Questions (MCQs)
- आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 कब लागू हुआ?
(a) 2001
(b) 2003
(c) 2005
(d) 2007
उत्तर: (c) 2005 - राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के अध्यक्ष कौन होते हैं?
(a) गृह मंत्री
(b) प्रधानमंत्री
(c) राष्ट्रपति
(d) लोकसभा अध्यक्ष
उत्तर: (b) प्रधानमंत्री - नागरिक सुरक्षा अधिनियम भारत में कब पारित हुआ?
(a) 1948
(b) 1962
(c) 1968
(d) 1975
उत्तर: (c) 1968 - राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) किस कानून के तहत गठित किया गया?
(a) IPC, 1860
(b) आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005
(c) नागरिक सुरक्षा अधिनियम, 1968
(d) पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986
उत्तर: (b) आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 - राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA) की अध्यक्षता कौन करता है?
(a) राज्यपाल
(b) मुख्यमंत्री
(c) गृह सचिव
(d) उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश
उत्तर: (b) मुख्यमंत्री - जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (DDMA) के प्रमुख कौन होते हैं?
(a) जिला कलेक्टर
(b) पुलिस अधीक्षक
(c) पंचायत प्रमुख
(d) नगर आयुक्त
उत्तर: (a) जिला कलेक्टर - ‘Sendai Framework for Disaster Risk Reduction’ किस अवधि के लिए है?
(a) 2010–2025
(b) 2015–2030
(c) 2020–2040
(d) 2000–2015
उत्तर: (b) 2015–2030 - भारत का कौन-सा क्षेत्र भूकंप की दृष्टि से सबसे अधिक संवेदनशील है?
(a) राजस्थान
(b) उत्तर-पूर्वी राज्य
(c) पंजाब
(d) मध्य प्रदेश
उत्तर: (b) उत्तर-पूर्वी राज्य - भोपाल गैस त्रासदी किस वर्ष हुई थी?
(a) 1982
(b) 1983
(c) 1984
(d) 1985
उत्तर: (c) 1984 - NDRF का मुख्य कार्य है—
(a) केवल कानून-व्यवस्था बनाए रखना
(b) आपदा के समय राहत और बचाव कार्य करना
(c) न्यायिक सहायता देना
(d) वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना
उत्तर: (b) आपदा के समय राहत और बचाव कार्य करना
B. Short Answer Type Questions (3–4 वाक्यों में)
- नागरिक सुरक्षा (Civil Protection) से आप क्या समझते हैं?
👉 नागरिक सुरक्षा का तात्पर्य नागरिकों को युद्धकालीन परिस्थितियों, प्राकृतिक आपदाओं, दुर्घटनाओं और अन्य आपात स्थितियों से सुरक्षित रखने से है। इसका मुख्य उद्देश्य जीवन व संपत्ति की रक्षा और सामान्य स्थिति की बहाली है। - आपदा प्रबंधन की तीन प्रमुख अवस्थाएँ कौन-सी हैं?
👉 आपदा प्रबंधन की तीन अवस्थाएँ हैं—(i) आपदा पूर्व तैयारी (Preparedness), (ii) आपदा के दौरान त्वरित कार्रवाई (Response), और (iii) आपदा के बाद पुनर्वास व पुनर्निर्माण (Recovery & Rehabilitation)। - राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) की भूमिका क्या है?
👉 NDMA आपदा प्रबंधन से संबंधित नीतियाँ, दिशा-निर्देश और योजनाएँ तैयार करता है। यह सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के लिए मार्गदर्शक संस्था है। - आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 का महत्व बताइए।
👉 इस अधिनियम ने भारत में आपदा प्रबंधन को विधिक और संस्थागत ढांचा प्रदान किया। इसके अंतर्गत NDMA, SDMA, DDMA और NDRF जैसी संस्थाएँ गठित की गईं। - नागरिकों के आपदा प्रबंधन में क्या कर्तव्य हैं?
👉 नागरिकों का कर्तव्य है कि वे कानूनों का पालन करें, अफवाहें न फैलाएँ, प्रशासन को सहयोग दें और सामुदायिक स्तर पर सक्रिय भागीदारी निभाएँ। - शहरीकरण से जुड़ी आपदाओं के उदाहरण दीजिए।
👉 शहरीकरण से जुड़ी आपदाओं में भवन गिरना, आगजनी, रासायनिक दुर्घटनाएँ, सड़क दुर्घटनाएँ और जलभराव प्रमुख हैं। - भारत की आपदा प्रबंधन प्रणाली में तकनीकी साधनों का क्या महत्व है?
👉 सैटेलाइट मैपिंग, ड्रोन, GIS और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आपदा पूर्वानुमान और राहत कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। - ‘Sendai Framework’ क्या है?
👉 यह संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2015–2030 की अवधि के लिए आपदा जोखिम न्यूनीकरण हेतु बनाया गया अंतरराष्ट्रीय ढांचा है, जिसमें भारत भी सक्रिय भागीदार है। - आपदा प्रभावित गरीब वर्ग को विशेष सुरक्षा क्यों आवश्यक है?
👉 गरीब और वंचित वर्ग संसाधनों की कमी के कारण आपदाओं से अधिक प्रभावित होते हैं। इनके पुनर्वास व सहायता के लिए विशेष नीतियाँ आवश्यक हैं। - भारत में आपदा प्रबंधन को और सशक्त बनाने के लिए कौन-से सुधार आवश्यक हैं?
👉 सामुदायिक भागीदारी, तकनीकी नवाचार, सार्वजनिक-निजी भागीदारी, पारदर्शी मुआवजा प्रणाली और शिक्षा में आपदा प्रबंधन का समावेश आवश्यक है।