“आनुवंशिक डेटा और जैव प्रौद्योगिकी कानून: नैतिकता, गोपनीयता और नियामक ढांचे की कानूनी पड़ताल”

“आनुवंशिक डेटा और जैव प्रौद्योगिकी कानून: नैतिकता, गोपनीयता और नियामक ढांचे की कानूनी पड़ताल”


प्रस्तावना

21वीं सदी में विज्ञान की प्रगति ने मानव जीवन के हर क्षेत्र को प्रभावित किया है। विशेषकर आनुवंशिकी (Genetics) और जैव प्रौद्योगिकी (Biotechnology) में क्रांतिकारी विकास ने मानव स्वास्थ्य, कृषि, पर्यावरण, और यहां तक कि आपराधिक न्याय प्रणाली में भी नए अवसर एवं चुनौतियां उत्पन्न की हैं। इसके साथ ही, आनुवंशिक डेटा की गोपनीयता, स्वामित्व, भंडारण और प्रयोग को लेकर कई कानूनी, नैतिक एवं सामाजिक प्रश्न खड़े हुए हैं। यह लेख इन्हीं मुद्दों की पड़ताल करता है।


1. आनुवंशिक डेटा क्या है?

आनुवंशिक डेटा वह सूचनात्मक जानकारी है जो किसी व्यक्ति के डीएनए, जीन, जीनोम या वंशानुगत गुणों से संबंधित होती है। इसका उपयोग चिकित्सा निदान, रोग पूर्वानुमान, अनुवांशिक विकारों की पहचान, आपराधिक जांच, और व्यक्तिगत दवा उपचारों (personalized medicine) में होता है।


2. जैव प्रौद्योगिकी कानून की आवश्यकता

जैव प्रौद्योगिकी में जेनेटिक इंजीनियरिंग, क्लोनिंग, जीएम फसलों (Genetically Modified Crops), स्टेम सेल रिसर्च आदि गतिविधियाँ आती हैं। इनका नियंत्रण और निगरानी आवश्यक है क्योंकि इनसे मानवाधिकार, नैतिकता, पर्यावरण और जैव विविधता पर प्रभाव पड़ता है। इसलिए, समुचित विधायी ढांचे की आवश्यकता है।


3. भारत में आनुवंशिक डेटा संरक्षण का कानूनी ढांचा

भारत में आनुवंशिक डेटा और जैव प्रौद्योगिकी को नियंत्रित करने वाले कुछ प्रमुख कानून एवं नियम हैं:

  • भारतीय जैव प्रौद्योगिकी अधिनियम (Biotechnology Regulatory Authority of India – Proposed Bill, 2013) – जैविक उत्पादों के परीक्षण और निगरानी के लिए प्रस्तावित।
  • आनुवंशिक रूप से परिवर्तित जीवों (GMOs) पर पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत नियम – जीएम फसलों और जैविक अनुसंधान की अनुमति और नियंत्रण हेतु।
  • डीएनए प्रौद्योगिकी (उपयोग और अनुप्रयोग) विनियमन विधेयक, 2019 – डीएनए प्रोफाइलिंग और डेटा संग्रह को नियमित करने हेतु (अभी विधेयक स्थिति में)।
  • डेटा संरक्षण विधेयक, 2023 – जिसमें स्वास्थ्य और आनुवंशिक डेटा को संवेदनशील व्यक्तिगत डेटा (Sensitive Personal Data) माना गया है।

4. कानूनी चुनौतियाँ और विवाद

  1. गोपनीयता का उल्लंघन – अनुवांशिक डेटा अत्यंत निजी होता है। बिना अनुमति उसका उपयोग व्यक्ति की निजता का उल्लंघन है।
  2. सूचना का दुरुपयोग – बीमा कंपनियाँ या नियोक्ता इसका प्रयोग भेदभाव करने हेतु कर सकते हैं।
  3. डेटा स्वामित्व का प्रश्न – व्यक्ति, अस्पताल या अनुसंधान संस्था में किसका अधिकार होगा?
  4. अनैतिक अनुसंधान – क्लोनिंग या भ्रूण संबंधी अनुसंधान नैतिक और धार्मिक विवाद उत्पन्न करते हैं।

5. अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य

  • यूएसए में GINA (Genetic Information Nondiscrimination Act, 2008) कानून आनुवंशिक जानकारी के आधार पर भेदभाव को रोकता है।
  • यूरोपीय संघ का GDPR आनुवंशिक डेटा को उच्चतम गोपनीय श्रेणी में रखता है।
  • UNESCO’s Universal Declaration on the Human Genome and Human Rights (1997) जैव नैतिकता को प्रोत्साहित करता है।

6. नैतिक और सामाजिक विचार

आनुवंशिक डेटा का दुरुपयोग जातीय शुद्धता, नस्लवाद या “डिज़ाइनर बेबी” जैसे विचारों को बढ़ावा दे सकता है। समाज में भेदभाव, कलंक और सामाजिक असमानता की नई चुनौतियाँ सामने आ सकती हैं।


7. समाधान एवं सुझाव

  • एक स्वतंत्र और पारदर्शी जैव प्रौद्योगिकी नियामक निकाय की स्थापना।
  • सख्त गोपनीयता कानून जो व्यक्ति की स्पष्ट सहमति के बिना आनुवंशिक डेटा प्रयोग की अनुमति न दें।
  • जनजागरूकता अभियान, जिससे नागरिकों को उनके जैविक अधिकारों की जानकारी हो।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग, ताकि वैश्विक स्तर पर समान मानदंड बन सकें।

निष्कर्ष

आनुवंशिक डेटा और जैव प्रौद्योगिकी का क्षेत्र वैज्ञानिक वरदान और संभावित खतरे दोनों को साथ लेकर चलता है। ऐसे में भारत जैसे विकासशील देश को नैतिकता, मानवाधिकार और तकनीकी उन्नति के बीच संतुलन साधते हुए एक सशक्त और संवेदनशील कानूनी ढांचा तैयार करना चाहिए। यह न केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करेगा, बल्कि वैज्ञानिक प्रगति को भी नैतिक रूप से दिशा देगा।