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‘आखिरी बार देखे जाने’ के सिद्धांत पर सर्वोच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण निर्णय

‘आखिरी बार देखे जाने’ के सिद्धांत पर सर्वोच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण निर्णय

प्रस्तावना

भारतीय न्यायपालिका में ‘आखिरी बार देखे जाने’ (Last Seen Theory) का सिद्धांत एक महत्वपूर्ण कानूनी उपकरण है, जिसका उपयोग अभियोजन पक्ष आरोपी की संलिप्तता साबित करने के लिए करता है। हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने इस सिद्धांत के प्रयोग में सावधानी बरतने की आवश्यकता को रेखांकित किया है। हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐसे व्यक्ति को बरी कर दिया जिसे केवल ‘आखिरी बार देखे जाने’ के आधार पर दोषी ठहराया गया था, और कहा कि इसके लिए अन्य ठोस सबूतों का होना आवश्यक है।

‘आखिरी बार देखे जाने’ का सिद्धांत

यह सिद्धांत इस पर आधारित है कि यदि किसी व्यक्ति को मृतक के साथ अपराध के समय के आसपास आखिरी बार देखा जाता है, तो यह उस व्यक्ति की संलिप्तता की ओर इशारा कर सकता है। हालांकि, यह सिद्धांत अकेले पर्याप्त नहीं होता; इसके साथ-साथ अन्य परिस्थितिजन्य साक्ष्य भी आवश्यक होते हैं।

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ‘आखिरी बार देखे जाने’ के सिद्धांत के आधार पर दोषी ठहराने से पहले अभियोजन पक्ष को आरोपी की ‘अलीबाई’ (अनुपस्थिति का प्रमाण) को नकारना आवश्यक है। यदि आरोपी एक वैध अलीबाई प्रस्तुत करता है और अभियोजन पक्ष उसे गलत साबित नहीं कर पाता, तो केवल ‘आखिरी बार देखे जाने’ के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि आरोपी के खिलाफ कोई अन्य पुष्ट साक्ष्य नहीं हैं, तो उसे दोषी ठहराना उचित नहीं होगा।

महत्वपूर्ण मामलों का विश्लेषण

  1. जगदीश गोंड बनाम छत्तीसगढ़ राज्य: इस मामले में, आरोपी ने यह दावा किया कि वह घटना के समय सीमेंट फैक्ट्री में ड्यूटी पर था। अभियोजन पक्ष ने उसकी अनुपस्थिति की पुष्टि करने के लिए कोई ठोस साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किए। कोर्ट ने इसे ध्यान में रखते हुए आरोपी को बरी कर दिया।
  2. पद्मन बिभर बनाम ओडिशा राज्य: यह मामला एक हत्या से संबंधित था, जिसमें अभियोजन पक्ष ने ‘आखिरी बार देखे जाने’ के सिद्धांत पर भरोसा किया। कोर्ट ने पाया कि अभियोजन पक्ष ने आरोपी की अनुपस्थिति को नकारने के लिए पर्याप्त साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किए, और उसे बरी कर दिया।
  3. उत्तराखंड राज्य बनाम जाबिर और अन्य: इस मामले में, तीन आरोपियों को केवल ‘आखिरी बार देखे जाने’ के आधार पर दोषी ठहराया गया था। कोर्ट ने कहा कि इस सिद्धांत का सीमित उपयोग है, और केवल इस आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

कानूनी दृष्टिकोण

भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत हत्या के मामलों में दोषी ठहराने के लिए अभियोजन पक्ष को यह सिद्ध करना होता है कि आरोपी ने अपराध किया है। यदि अभियोजन पक्ष केवल ‘आखिरी बार देखे जाने’ के सिद्धांत पर निर्भर करता है और अन्य ठोस साक्ष्य प्रस्तुत नहीं करता, तो यह आरोपी को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं होता।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से यह स्पष्ट होता है कि ‘आखिरी बार देखे जाने’ का सिद्धांत अकेले दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं है। अभियोजन पक्ष को आरोपी की अनुपस्थिति को नकारने के लिए ठोस साक्ष्य प्रस्तुत करने होते हैं। यदि ऐसे साक्ष्य नहीं होते, तो आरोपी को दोषी ठहराना न्यायिक दृष्टिकोण से उचित नहीं होगा। यह निर्णय न्यायपालिका की निष्पक्षता और अभियोजन पक्ष की जिम्मेदारी को रेखांकित करता है।

सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से यह संदेश जाता है कि न्याय में निष्पक्षता और ठोस साक्ष्य की आवश्यकता है, ताकि निर्दोष व्यक्ति को सजा न हो और दोषी को उचित दंड मिले।


1. ‘आखिरी बार देखे जाने’ का सिद्धांत क्या है?
‘आखिरी बार देखे जाने’ (Last Seen Theory) का सिद्धांत अभियोजन पक्ष द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला कानूनी सिद्धांत है। इसके तहत यह माना जाता है कि यदि किसी व्यक्ति को मृतक या पीड़ित के साथ अपराध के समय के आसपास आखिरी बार देखा गया है, तो यह उसकी संलिप्तता का संकेत हो सकता है। हालाँकि, केवल इस आधार पर दोषारोपण करना पर्याप्त नहीं है; इसके साथ अन्य परिस्थितिजन्य साक्ष्यों की भी आवश्यकता होती है।


2. सुप्रीम कोर्ट ने ‘आखिरी बार देखे जाने’ सिद्धांत पर क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केवल ‘आखिरी बार देखे जाने’ के आधार पर किसी को दोषी ठहराना उचित नहीं है। अभियोजन पक्ष को अन्य ठोस साक्ष्यों से आरोपी की संलिप्तता साबित करनी होगी। यदि कोई आरोपी वैध अलीबाई प्रस्तुत करता है और उसे नकारने के लिए पर्याप्त साक्ष्य नहीं हैं, तो उसे बरी करना न्यायसंगत है।


3. इस सिद्धांत का प्रयोग कब किया जाता है?
यह सिद्धांत मुख्य रूप से हत्या, अपहरण या गंभीर अपराधों में आरोपी की संलिप्तता साबित करने के लिए उपयोग किया जाता है। अभियोजन यह दिखाने के लिए इसका सहारा लेता है कि आरोपी अपराध स्थल या पीड़ित के साथ अपराध समय पर मौजूद था।


4. अकेले इस सिद्धांत पर दोषी ठहराना क्यों गलत है?
क्योंकि ‘आखिरी बार देखे जाने’ केवल संभावना दिखाता है, न कि निश्चितता। अभियोजन को आरोपी की संलिप्तता के लिए अन्य साक्ष्य भी प्रस्तुत करने होते हैं। यदि ऐसा नहीं किया जाता, तो न्यायपालिका निर्दोष व्यक्ति को सजा दे सकती है।


5. वैध अलीबाई और इस सिद्धांत का संबंध
यदि आरोपी अपराध के समय किसी अन्य स्थान पर मौजूद होने का ठोस प्रमाण (अलीबाई) प्रस्तुत करता है, तो केवल ‘आखिरी बार देखे जाने’ का सिद्धांत उसका दोष साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं होता। कोर्ट को अलीबाई की पुष्टि और अन्य साक्ष्य की समीक्षा करनी पड़ती है।


6. सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख मामले

  • जगदीश गोंड बनाम छत्तीसगढ़: आरोपी को बरी किया गया क्योंकि अलीबाई और साक्ष्य न होने के कारण ‘आखिरी बार देखे जाने’ पर्याप्त नहीं था।
  • पद्मन बिभर बनाम ओडिशा: अभियोजन ने आरोपी की अनुपस्थिति को साबित नहीं किया; आरोपी बरी।

7. अभियोजन पक्ष की जिम्मेदारी
अभियोजन को केवल सिद्धांत पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। उसे आरोपी की संलिप्तता साबित करने के लिए ठोस और प्रत्यक्ष साक्ष्य, गवाहों के बयान, फॉरेंसिक साक्ष्य आदि पेश करने होते हैं।


8. सिद्धांत की सीमाएँ
यह सिद्धांत निश्चित दोष का प्रमाण नहीं देता। यह केवल संदिग्धता या संभावना दिखाता है। न्यायालय इसे तभी स्वीकार करता है जब अन्य ठोस साक्ष्य आरोपी की संलिप्तता की पुष्टि करें।


9. न्यायिक निष्पक्षता पर प्रभाव
सुप्रीम कोर्ट ने इस सिद्धांत पर बरी करने के मामलों में दिखाया कि न्यायपालिका के लिए साक्ष्यों की मजबूती और निष्पक्ष जांच प्राथमिकता है। निर्दोष व्यक्ति को सजा न हो और दोषी को उचित दंड मिले, यही उद्देश्य है।


10. निष्कर्ष
‘आखिरी बार देखे जाने’ सिद्धांत एक सहायक उपकरण है, लेकिन अकेले दोष साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं। अभियोजन को अन्य ठोस साक्ष्य पेश करने होते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इसे स्पष्ट करते हुए कहा कि न्याय में निष्पक्षता और ठोस प्रमाण सर्वोपरि हैं।