आईपीसी धारा 325 एवं बीएनएस धारा 117(2) : गंभीर चोट पहुँचाने का अपराध
भारतीय दंड संहिता (IPC) और भारतीय न्याय संहिता (BNS), दोनों ही हमारे आपराधिक न्याय तंत्र के प्रमुख आधार हैं। इनका उद्देश्य अपराधों को परिभाषित करना, उनके लिए उचित दंड निर्धारित करना तथा समाज में शांति और कानून व्यवस्था बनाए रखना है। आईपीसी धारा 325 (IPC Section 325) और बीएनएस धारा 117(2) (BNS Section 117(2)) दोनों ही “गंभीर चोट पहुँचाने” से संबंधित अपराधों को नियंत्रित करते हैं। जब कोई व्यक्ति किसी दूसरे को इस प्रकार मारता-पीटता है कि उसकी हड्डी टूट जाए, आँख या कान खराब हो जाए, या कोई अन्य गंभीर चोट पहुँच जाए, तब यह अपराध बनता है।
इस लेख में हम विस्तार से देखेंगे कि आईपीसी धारा 325 और बीएनएस धारा 117(2) में क्या प्रावधान हैं, दोनों में समानता और अंतर क्या है, इस अपराध की प्रकृति क्या है, किन परिस्थितियों में यह अपराध सिद्ध होता है, और इसकी सज़ा क्या है।
1. गंभीर चोट की परिभाषा (Grievous Hurt Definition)
किसी चोट को सामान्य चोट (simple hurt) और गंभीर चोट (grievous hurt) में विभाजित किया गया है।
आईपीसी धारा 320 (और अब बीएनएस धारा 115) के अनुसार, निम्न प्रकार की चोटें गंभीर चोट (Grievous Hurt) मानी जाती हैं—
- किसी व्यक्ति की हड्डी या दांत का टूटना।
- किसी व्यक्ति की आँख की रोशनी का जाना।
- किसी व्यक्ति की सुनने की शक्ति का नष्ट होना।
- किसी व्यक्ति का कोई अंग स्थायी रूप से बेकार हो जाना।
- किसी अंग का स्थायी रूप से कुरूप या क्षतिग्रस्त होना।
- 20 दिन से अधिक तक चलने वाला गंभीर दर्द या जीवन के लिए खतरा।
- कोई ऐसा घाव या चोट जो व्यक्ति के स्वास्थ्य या जीवन पर स्थायी असर डाले।
अतः जब कोई व्यक्ति ऐसी चोट पहुँचाता है तो उसे गंभीर चोट (Grievous Hurt) माना जाएगा।
2. आईपीसी धारा 325 (IPC Section 325)
विवरण:
- यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर (Voluntarily) किसी दूसरे को गंभीर चोट पहुँचाता है, और यह चोट आईपीसी धारा 320 में परिभाषित श्रेणी में आती है, तो उस पर धारा 325 लगाई जाती है।
सज़ा:
- 7 साल तक की कैद
- साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
अपराध की प्रकृति:
- गंभीर अपराध (Serious Offence)
- जमानती (Bailable)
- समझौता योग्य (Compoundable with Court’s permission)
- मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी (Magistrate of First Class) द्वारा विचारणीय।
3. बीएनएस धारा 117(2) (BNS Section 117(2))
2023 में भारतीय दंड संहिता को बदलकर भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita – BNS, 2023) लागू की गई। इसमें कई धाराओं को पुनः क्रमांकित (renumbered) और सरल भाषा में प्रस्तुत किया गया है।
धारा 117(2) में वही प्रावधान है जो पहले आईपीसी धारा 325 में था—
- यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे को जानबूझकर गंभीर चोट पहुँचाता है, तो यह अपराध होगा।
सज़ा:
- 7 साल तक की कैद
- साथ ही जुर्माना।
इस प्रकार, आईपीसी धारा 325 और बीएनएस धारा 117(2) का दायरा समान है। केवल अंतर यह है कि नए कानून (BNS) में भाषा को सरल और स्पष्ट किया गया है।
4. अपराध के आवश्यक तत्व (Essential Ingredients)
किसी आरोपी को इस अपराध में दोषी ठहराने के लिए निम्नलिखित तत्व सिद्ध करना आवश्यक है—
- कृत्य (Act): आरोपी ने पीड़ित को चोट पहुँचाई।
- स्वेच्छा (Voluntarily): चोट पहुँचाने का कार्य जानबूझकर किया गया हो।
- गंभीरता (Grievous Nature): चोट आईपीसी धारा 320 / बीएनएस धारा 115 में वर्णित श्रेणी में आती हो।
- इरादा (Intention): आरोपी का इरादा या ज्ञान ऐसा हो जिससे यह अनुमान लगाया जा सके कि चोट गंभीर होगी।
5. उदाहरण (Illustrations)
- यदि कोई व्यक्ति किसी को इस प्रकार मारता है कि उसकी हड्डी टूट जाती है, तो उस पर धारा 325 / 117(2) लगेगी।
- यदि कोई व्यक्ति झगड़े में किसी की आँख पर प्रहार करता है और पीड़ित की आँख की रोशनी चली जाती है, तो यह गंभीर चोट है।
- यदि किसी व्यक्ति के दाँत तोड़ दिए जाते हैं, तब भी यह अपराध बनेगा।
6. न्यायालयीन दृष्टांत (Case Laws)
- State of Karnataka v. Shivalingaiah (1988 CrLJ 1728)
- अदालत ने कहा कि यदि चोट मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार “फ्रैक्चर” है तो यह गंभीर चोट मानी जाएगी।
- Ramkaran v. State of Rajasthan (AIR 1980 SC 1314)
- सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि हड्डी का मामूली क्रैक भी फ्रैक्चर माना जाएगा और गंभीर चोट की श्रेणी में आएगा।
- Jagannath v. State of Orissa (AIR 1966 SC 849)
- अदालत ने कहा कि इरादे और चोट की प्रकृति को देखकर धारा 325 लागू होती है।
7. सज़ा की उपयुक्तता (Appropriateness of Punishment)
इस अपराध में अधिकतम सज़ा 7 साल रखी गई है। इसका उद्देश्य यह है कि—
- समाज में गंभीर हिंसा को रोका जा सके।
- पीड़ित को न्याय मिल सके।
- आरोपी को सुधारने का अवसर भी दिया जा सके।
8. आईपीसी और बीएनएस में तुलना (Comparison)
पहलू | आईपीसी धारा 325 | बीएनएस धारा 117(2) |
---|---|---|
कानून | भारतीय दंड संहिता, 1860 | भारतीय न्याय संहिता, 2023 |
अपराध | जानबूझकर गंभीर चोट पहुँचाना | जानबूझकर गंभीर चोट पहुँचाना |
सज़ा | 7 साल कैद + जुर्माना | 7 साल कैद + जुर्माना |
प्रकृति | जमानती, समझौता योग्य | जमानती, समझौता योग्य |
अंतर | पुरानी संहिता | नई संहिता, सरल भाषा |
9. सामाजिक और विधिक महत्व (Social & Legal Importance)
- यह प्रावधान मानव शरीर की सुरक्षा को सुनिश्चित करता है।
- समाज में हिंसक प्रवृत्तियों पर नियंत्रण रखता है।
- पीड़ितों को न्याय दिलाने का एक मजबूत कानूनी साधन है।
- यह अपराध हत्या और साधारण चोट के बीच की कड़ी है, क्योंकि इसमें चोट इतनी गंभीर होती है कि पीड़ित का जीवन बदल सकता है।
10. निष्कर्ष (Conclusion)
आईपीसी धारा 325 और बीएनएस धारा 117(2), दोनों ही गंभीर चोट पहुँचाने से संबंधित अपराधों को नियंत्रित करते हैं। दोनों में अपराध और सज़ा लगभग समान हैं। अंतर केवल इतना है कि बीएनएस में भाषा को और अधिक स्पष्ट और आधुनिक बना दिया गया है।
यह अपराध समाज में कानून व्यवस्था बनाए रखने और नागरिकों की शारीरिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अत्यंत आवश्यक है। अदालतें भी इस प्रकार के मामलों में मेडिकल सबूतों और गवाहियों के आधार पर आरोपी को सज़ा देती हैं।
इस प्रकार, यदि कोई व्यक्ति किसी को इतनी ज़ोर से मारता है कि उसकी हड्डी टूट जाए, आँख/कान खराब हो जाए, या बहुत गंभीर चोट पहुँच जाए, तो उस पर आईपीसी धारा 325 / बीएनएस धारा 117(2) के तहत मुकदमा चलाया जाएगा और उसे 7 साल तक की सज़ा हो सकती है।
1. प्रश्न: आईपीसी धारा 325 किस अपराध से संबंधित है?
उत्तर:
आईपीसी धारा 325 “जानबूझकर गंभीर चोट पहुँचाने” से संबंधित है। जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को इस प्रकार चोट पहुँचाता है जिससे उसकी हड्डी टूट जाए, आँख की रोशनी चली जाए, कान की सुनने की शक्ति नष्ट हो जाए, या कोई अन्य गंभीर क्षति हो, तो यह अपराध बनता है। यह धारा केवल तभी लागू होती है जब चोट आईपीसी धारा 320 में परिभाषित “गंभीर चोट” की श्रेणी में आती हो। इस अपराध के लिए आरोपी को अधिकतम 7 साल की कैद और जुर्माना हो सकता है। यह अपराध जमानती और समझौता योग्य है।
2. प्रश्न: बीएनएस धारा 117(2) का दायरा क्या है?
उत्तर:
भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) में धारा 117(2) भी वही प्रावधान करती है जो पहले आईपीसी धारा 325 में था। इसमें कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी अन्य को गंभीर चोट पहुँचाता है, तो यह अपराध माना जाएगा। इस धारा के अंतर्गत अधिकतम सज़ा 7 साल तक की कैद और जुर्माना है। यह अपराध जमानती और समझौता योग्य है। इसका उद्देश्य है कि गंभीर हिंसात्मक घटनाओं पर नियंत्रण रखा जा सके और पीड़ित को न्याय मिल सके।
3. प्रश्न: “गंभीर चोट” से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
“गंभीर चोट” (Grievous Hurt) को आईपीसी धारा 320 और बीएनएस धारा 115 में परिभाषित किया गया है। इसमें ऐसी चोटें आती हैं जैसे—हड्डी या दांत का टूटना, आँख की रोशनी जाना, कान की सुनने की शक्ति नष्ट होना, किसी अंग का स्थायी रूप से बेकार हो जाना, स्थायी विकृति या कुरूपता, जीवन के लिए खतरा बनने वाली चोट, और 20 दिन से अधिक चलने वाली असहनीय पीड़ा। इन श्रेणियों में आने वाली चोटों को गंभीर चोट माना जाता है और ऐसे मामलों में आरोपी पर धारा 325 IPC / 117(2) BNS लागू होती है।
4. प्रश्न: धारा 325 / 117(2) के तहत सज़ा क्या है?
उत्तर:
धारा 325 IPC और धारा 117(2) BNS, दोनों ही प्रावधान करती हैं कि गंभीर चोट पहुँचाने वाले व्यक्ति को अधिकतम 7 साल की कैद और जुर्माना हो सकता है। अदालत परिस्थितियों को देखकर न्यूनतम से अधिकतम सज़ा तय कर सकती है। यदि अपराध गंभीर प्रकृति का है, तो अधिक कठोर दंड दिया जाता है। साथ ही, यह अपराध जमानती और समझौता योग्य है, यानी आरोपी को जमानत मिल सकती है और अदालत की अनुमति से समझौता भी किया जा सकता है।
5. प्रश्न: धारा 325 / 117(2) अपराध के आवश्यक तत्व क्या हैं?
उत्तर:
इस अपराध को सिद्ध करने के लिए निम्नलिखित तत्व आवश्यक हैं—
- आरोपी ने पीड़ित को चोट पहुँचाई हो।
- चोट पहुँचाने का कार्य जानबूझकर (Voluntarily) किया गया हो।
- चोट गंभीर चोट की श्रेणी में आती हो।
- आरोपी को यह ज्ञान या इरादा हो कि उसकी कार्रवाई से गंभीर चोट हो सकती है।
यदि ये तत्व सिद्ध हो जाते हैं, तो आरोपी धारा 325 / 117(2) के अंतर्गत दोषी ठहराया जाएगा।
6. प्रश्न: धारा 325 / 117(2) के अंतर्गत अपराध की प्रकृति क्या है?
उत्तर:
यह अपराध गंभीर प्रकृति का है लेकिन इसे कानून ने जमानती (Bailable) और समझौता योग्य (Compoundable with Court’s Permission) रखा है। इसका अर्थ है कि आरोपी को जमानत पर छोड़ा जा सकता है और यदि पीड़ित व आरोपी आपसी सहमति से समझौता करना चाहें तो अदालत की अनुमति से मामला खत्म किया जा सकता है। यह अपराध मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी द्वारा विचारणीय है।
7. प्रश्न: धारा 325 और 117(2) में क्या अंतर है?
उत्तर:
धारा 325 भारतीय दंड संहिता (IPC, 1860) में थी, जबकि धारा 117(2) भारतीय न्याय संहिता (BNS, 2023) में वही प्रावधान रखती है। दोनों में अपराध और सज़ा समान है। केवल अंतर यह है कि IPC एक पुराना कानून है और BNS नया कानून है जिसमें भाषा को अधिक सरल और स्पष्ट किया गया है। उद्देश्य, अपराध का स्वरूप और सज़ा—सभी समान हैं।
8. प्रश्न: कौन-सी चोटें साधारण चोट और गंभीर चोट में अंतर करती हैं?
उत्तर:
साधारण चोट (Simple Hurt) वह है जिसमें अस्थायी दर्द या हल्की क्षति हो और व्यक्ति सामान्य रूप से स्वस्थ हो सके। जबकि गंभीर चोट (Grievous Hurt) वह है जिसमें स्थायी नुकसान हो सकता है, जैसे—हड्डी टूटना, आँख/कान खराब होना, अंग विकृत होना, जीवन के लिए खतरा होना या 20 दिन तक चलने वाला दर्द। धारा 325 / 117(2) केवल गंभीर चोटों पर लागू होती है, साधारण चोटों पर नहीं।
9. प्रश्न: धारा 325 / 117(2) से जुड़े प्रमुख न्यायालयीन दृष्टांत कौन-से हैं?
उत्तर:
- State of Karnataka v. Shivalingaiah (1988 CrLJ 1728): अदालत ने कहा कि फ्रैक्चर स्वतः गंभीर चोट है।
- Ramkaran v. State of Rajasthan (AIR 1980 SC 1314): हड्डी में हल्का क्रैक भी फ्रैक्चर माना जाएगा।
- Jagannath v. State of Orissa (AIR 1966 SC 849): इरादे और चोट की प्रकृति देखकर अपराध तय होता है।
इन निर्णयों से स्पष्ट होता है कि अदालतें मेडिकल रिपोर्ट और परिस्थितियों के आधार पर अपराध सिद्ध करती हैं।
10. प्रश्न: समाज में इस प्रावधान का महत्व क्या है?
उत्तर:
धारा 325 IPC और धारा 117(2) BNS का मुख्य उद्देश्य है नागरिकों को गंभीर शारीरिक हिंसा से सुरक्षा देना। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि लोग एक-दूसरे को गंभीर क्षति न पहुँचाएँ, अन्यथा कठोर दंड मिलेगा। यह अपराध हत्या और साधारण चोट के बीच की कड़ी है क्योंकि इसमें चोट इतनी गंभीर होती है कि व्यक्ति का जीवन बदल सकता है। इस प्रकार यह प्रावधान समाज में कानून व्यवस्था बनाए रखने, अपराध रोकने और पीड़ित को न्याय दिलाने के लिए अत्यंत आवश्यक है।