🔷 शीर्षक: “आंशिक स्वीकृति अवैध: मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का आदेश – सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा Order 23 Rule 1(3) की सख्ती से व्याख्या”
🔹 प्रस्तावना:
सिविल वादों की प्रक्रिया में, Order 23 Rule 1(3), सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC), उस स्थिति से संबंधित है जहाँ वादी (Plaintiff) किसी मुकदमे को वापस लेना चाहता है और साथ ही उसे भविष्य में एक नया वाद दायर करने की अनुमति भी चाहिए होती है। हाल ही में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय (M.P. High Court) ने एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए स्पष्ट किया है कि ऐसी स्थिति में अदालत आंशिक आदेश पारित नहीं कर सकती — यानि वादी को मुकदमा वापस लेने की अनुमति तो दी जाए लेकिन नया वाद दायर करने की अनुमति न दी जाए — यह विधिसम्मत नहीं है।
🔹 मामले का संक्षिप्त विवरण:
- वादी (Plaintiff) ने एक घोषणा और निषेधाज्ञा (Declaration and Injunction) संबंधी वाद दायर किया था।
- बाद में वादी ने Order 23 Rule 1(3) CPC के तहत आवेदन किया कि उसे वाद वापस लेने और भविष्य में एक नया वाद दायर करने की अनुमति दी जाए।
- ट्रायल कोर्ट ने आवेदन को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए केवल वाद वापसी की अनुमति दी, लेकिन नया वाद दायर करने की अनुमति नहीं दी।
- वादी ने इस आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी।
🔹 उच्च न्यायालय का निर्णय:
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने यह महत्वपूर्ण निर्णय दिया कि:
- Order 23 Rule 1(3) के तहत आवेदन को आंशिक रूप से स्वीकार नहीं किया जा सकता।
- कानून स्पष्ट रूप से कहता है कि यदि वादी को नया वाद दायर करने की अनुमति देनी है, तो पूरी अनुमति दी जानी चाहिए।
- केवल वाद वापस लेने की अनुमति देना और नया वाद दायर करने से इनकार करना प्रक्रिया की भावना के विपरीत है।
- आदेशों में स्पष्टता और संपूर्णता जरूरी है।
- अदालतों को ऐसा आदेश पारित नहीं करना चाहिए जिससे वादी अनिश्चितता और असहाय स्थिति में रह जाए।
- आधा-अधूरा आदेश न्यायिक प्रक्रिया का मज़ाक बनाता है।
- न्यायालय ने निचली अदालत के आदेश को निरस्त (Set Aside) कर दिया।
- साथ ही, वादी के Order 23 Rule 1(3) के तहत आवेदन को पूरी तरह से अस्वीकार (Rejected) कर दिया।
- मामले को फिर से खोले जाने (Reopen) और आगे की सुनवाई का निर्देश दिया गया।
- अब ट्रायल कोर्ट उसी वाद में आगे सुनवाई करेगा जैसा पहले लंबित था।
🔹 विधिक महत्व और विश्लेषण:
यह निर्णय न्यायिक प्रक्रिया में निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिंदुओं को उजागर करता है:
✅ Order 23 Rule 1(3) की स्पष्टता:
इस नियम के अंतर्गत वादी केवल तभी मुकदमा वापस ले सकता है जब उसे भविष्य में नया वाद दायर करने की अनुमति मिलती हो, यदि अदालत उसे यह अनुमति नहीं देती, तो मुकदमा वापस लेने की अनुमति भी नहीं दी जानी चाहिए।
✅ न्यायिक आदेशों में स्पष्टता की आवश्यकता:
यह निर्णय बताता है कि आदेशों को आधा-अधूरा नहीं छोड़ा जा सकता। अदालतें प्रत्येक निर्णय को विधि के अनुरूप और स्पष्ट रूप में देना आवश्यक है।
✅ वादी के अधिकारों की रक्षा:
यदि वादी को बिना अनुमति के वाद वापस लेने दिया जाता है और भविष्य में उसे नया वाद दायर करने का अवसर नहीं मिलता, तो यह उसके न्यायिक अधिकारों का हनन है।
✅ ट्रायल कोर्ट की भूमिका:
उच्च न्यायालय ने यह निर्देश देकर कि मामला दोबारा खोला जाए, यह संदेश दिया कि निचली अदालतें अपनी प्रक्रिया में सतर्क और कानून के प्रति जवाबदेह हों।
🔹 निष्कर्ष:
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का यह निर्णय न्यायिक प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। यह केवल एक तकनीकी मामला नहीं है, बल्कि वादी के अधिकार, अदालत की विधिक जिम्मेदारी, और न्याय की निष्पक्षता से गहराई से जुड़ा हुआ है। आदेश 23 Rule 1(3) का उद्देश्य वादी को नई याचिका दायर करने का उचित अवसर देना है, न कि उसे ऐसे मोड़ पर छोड़ देना जहाँ उसके पास कोई उपाय न बचे।
यह निर्णय अन्य न्यायालयों के लिए एक मार्गदर्शक सिद्धांत है कि आवेदनों पर आदेश पारित करते समय उन्हें पूर्णता और विधिक अनुशासन का पालन करना चाहिए, ताकि न्यायिक प्रक्रिया केवल औपचारिकता न बनकर वास्तविक न्याय का माध्यम बनी रहे।