अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और डिजिटल युग: Shreya Singhal v. Union of India (2015) का प्रभाव
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रत्येक नागरिक का मौलिक अधिकार है। लेकिन डिजिटल युग में यह स्वतंत्रता अक्सर तकनीकी कानूनों, साइबर अपराधों और राज्य की नीतियों से टकराती रही है। इस संदर्भ में Shreya Singhal v. Union of India (2015) का फैसला भारतीय न्यायिक इतिहास में एक मील का पत्थर माना जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66A को असंवैधानिक घोषित कर दिया, क्योंकि यह अत्यधिक अस्पष्ट, दमनकारी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन करने वाली थी।
आज जब कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), सोशल बॉट्स और स्वचालित फेक न्यूज डिजिटल प्लेटफार्मों पर तेजी से बढ़ रहे हैं, तब इस फैसले की प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है। यह लेख लगभग 1400 शब्दों में इस केस की पृष्ठभूमि, निर्णय, और AI युग में इसके महत्व का विश्लेषण करता है।
1. मामले की पृष्ठभूमि (Background of the Case)
यह मामला 2012 में महाराष्ट्र में दो युवतियों की गिरफ्तारी से जुड़ा था। उन्होंने फेसबुक पर एक पोस्ट साझा किया और ‘लाइक’ किया था, जिसमें मुंबई में शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे की मृत्यु के बाद शहर बंद करने की आलोचना की गई थी। पुलिस ने उन्हें सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66A के तहत गिरफ्तार कर लिया।
धारा 66A के अनुसार, कोई भी व्यक्ति यदि ऑनलाइन “आपत्तिजनक, धमकीपूर्ण या असुविधाजनक” संदेश भेजता है तो उसे तीन साल तक की सजा हो सकती है। समस्या यह थी कि यह धारा बहुत अस्पष्ट थी और “आपत्तिजनक” जैसे शब्दों की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं दी गई थी।
इसी पृष्ठभूमि में वकील श्रेया सिंघल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की और धारा 66A को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की।
2. सुप्रीम कोर्ट का निर्णय (The Supreme Court Judgment)
24 मार्च 2015 को सुप्रीम कोर्ट की दो-न्यायाधीशों की पीठ (न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर और न्यायमूर्ति आर.एफ. नरीमन) ने धारा 66A को असंवैधानिक करार दिया।
मुख्य बिंदु:
- अस्पष्टता (Vagueness): “आपत्तिजनक”, “परेशान करने वाला” और “असुविधाजनक” जैसे शब्दों की कोई निश्चित परिभाषा नहीं थी। इससे पुलिस को असीमित विवेकाधिकार मिल जाता था।
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन: अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत नागरिकों को स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अधिकार है। धारा 66A इस अधिकार को अनुचित रूप से सीमित करती थी।
- अनुच्छेद 19(2) का परीक्षण: संविधान केवल “राज्य की सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता, मानहानि, न्यायालय की अवमानना” जैसे आधारों पर ही अभिव्यक्ति पर प्रतिबंध की अनुमति देता है। लेकिन धारा 66A इनमें से किसी भी आधार पर खरी नहीं उतरती थी।
- चिलिंग इफेक्ट: इस धारा से नागरिक सोशल मीडिया पर अपनी राय व्यक्त करने से डरते थे।
इस प्रकार, सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र की आत्मा है और इसे अस्पष्ट कानूनों के सहारे दबाया नहीं जा सकता।
3. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और डिजिटल प्लेटफॉर्म (Freedom of Speech in the Digital Era)
डिजिटल प्लेटफॉर्म नागरिकों की अभिव्यक्ति का प्रमुख माध्यम बन चुके हैं। ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब जैसे मंचों पर लोग अपने विचार खुलकर साझा करते हैं। लेकिन यही प्लेटफॉर्म साइबर अपराध, ट्रोलिंग, हेट स्पीच और फेक न्यूज का भी केंद्र बन गए हैं।
Shreya Singhal Judgment ने इस दुविधा को संबोधित करते हुए स्पष्ट किया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को तकनीकी विकास और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भी समान रूप से लागू किया जाएगा।
4. AI और सोशल बॉट्स के संदर्भ में प्रासंगिकता (Relevance in the Age of AI and Bots)
आज कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के उपयोग से स्वचालित सोशल बॉट्स (Automated Social Bots) तैयार किए जा रहे हैं, जो बड़े पैमाने पर फेक न्यूज फैलाते हैं, चुनावों को प्रभावित करते हैं और ऑनलाइन हेट स्पीच को बढ़ावा देते हैं।
- फेक न्यूज और डीपफेक: AI आधारित टूल्स झूठी खबरें और वीडियो तैयार कर सकते हैं।
- स्वचालित प्रचार (Automated Propaganda): बॉट्स किसी भी विचारधारा या नेता के समर्थन/विरोध में कृत्रिम रूप से ट्रेंड चला सकते हैं।
- ऑनलाइन हेट स्पीच: AI सिस्टम्स गलत सूचनाओं और घृणित संदेशों को amplify कर सकते हैं।
इस संदर्भ में Shreya Singhal Judgment महत्वपूर्ण है क्योंकि यह याद दिलाता है कि कोई भी कानून इन समस्याओं से निपटने के लिए बने, तो वह स्पष्ट, अनुपातिक और संवैधानिक मानकों पर आधारित होना चाहिए।
5. धारा 66A और AI युग की चुनौतियाँ (Section 66A vs. Challenges in AI Era)
यदि धारा 66A आज भी लागू होती, तो AI आधारित बॉट्स या ऑनलाइन यूजर्स को केवल “आपत्तिजनक” पोस्ट करने के आरोप में जेल भेजा जा सकता था। यह स्थिति नागरिकों की स्वतंत्रता को गंभीर रूप से प्रभावित करती।
AI युग में चुनौतियाँ हैं:
- फेक न्यूज की पहचान – किसे “सत्य” और किसे “झूठ” माना जाए, यह अक्सर विवादास्पद होता है।
- स्वचालित एल्गोरिद्म का नियंत्रण – कौन तय करेगा कि कौन-सा कंटेंट हटाया जाए और कौन-सा रहे?
- अभिव्यक्ति बनाम दमन – कहीं ऐसा न हो कि सरकारें AI और बॉट्स के बहाने असहमति की आवाज़ दबा दें।
Shreya Singhal Judgment इस संतुलन को स्थापित करने में मार्गदर्शक है।
6. साइबर अपराध और वैध नियंत्रण (Cyber Crimes and Reasonable Restrictions)
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पूर्ण नहीं है। अनुच्छेद 19(2) के तहत उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। साइबर अपराध जैसे –
- साइबर बुलिंग
- अश्लील सामग्री
- राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा
- नफरत फैलाने वाले संदेश
इन मामलों में कानून बनाना आवश्यक है। लेकिन ऐसे कानून स्पष्ट और न्यायिक रूप से परखे जाने योग्य होने चाहिए। इस प्रकार, साइबर अपराध से लड़ाई और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाना ही सही मार्ग है।
7. अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य (International Perspective)
दुनिया भर में सोशल मीडिया और AI आधारित बॉट्स से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बहस जारी है।
- अमेरिका: “First Amendment” नागरिकों को मजबूत सुरक्षा देता है, लेकिन हेट स्पीच और फेक न्यूज बड़ी चुनौती हैं।
- यूरोप: GDPR और डिजिटल सर्विसेज एक्ट के जरिए अभिव्यक्ति और निजता दोनों की रक्षा की जा रही है।
- चीन: वहाँ सरकार ऑनलाइन अभिव्यक्ति पर कड़ा नियंत्रण रखती है, जिससे स्वतंत्रता सीमित हो जाती है।
भारत में Shreya Singhal Judgment अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को एक लोकतांत्रिक और संतुलित दृष्टिकोण देता है।
8. तकनीकी नियमन की आवश्यकता (Need for Future Regulation)
AI और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए भारत को ऐसे कानूनों की आवश्यकता है जो—
- स्पष्ट और परिभाषित हों।
- नागरिकों की स्वतंत्रता पर अनावश्यक अंकुश न लगाएँ।
- फेक न्यूज, हेट स्पीच और साइबर अपराध से प्रभावी ढंग से निपटें।
- AI आधारित एल्गोरिद्म की पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करें।
इस प्रकार भविष्य का कोई भी कानून Shreya Singhal Judgment में स्थापित सिद्धांतों पर आधारित होना चाहिए।
9. लोकतंत्र और स्वतंत्र अभिव्यक्ति (Democracy and Free Expression)
लोकतंत्र में नागरिकों की राय और असहमति महत्वपूर्ण है। यदि लोग डर के कारण सोशल मीडिया पर अपने विचार व्यक्त न कर सकें, तो लोकतंत्र का आधार कमजोर हो जाएगा। Shreya Singhal Judgment ने इस सिद्धांत की रक्षा की और कहा कि नागरिकों की स्वतंत्रता केवल सरकार की सुविधानुसार सीमित नहीं की जा सकती।
10. निष्कर्ष (Conclusion)
Shreya Singhal v. Union of India (2015) का निर्णय भारतीय लोकतंत्र और डिजिटल युग दोनों के लिए ऐतिहासिक महत्व रखता है। इसने यह सुनिश्चित किया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता केवल प्रिंट और पारंपरिक माध्यमों तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि डिजिटल प्लेटफॉर्म और AI युग में भी समान रूप से संरक्षित रहेगी।
AI आधारित सोशल बॉट्स, फेक न्यूज और निगरानी जैसी चुनौतियाँ आज गंभीर हैं। लेकिन इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि ऐसे किसी भी नियंत्रण का आधार केवल संविधान में स्वीकृत, स्पष्ट और आनुपातिक प्रतिबंध ही हो सकते हैं।
इस प्रकार, यह केस हमें यह सिखाता है कि लोकतंत्र में स्वतंत्र अभिव्यक्ति और तकनीकी नियंत्रण का संतुलन ही भविष्य की राह है।
प्रश्न 1. Shreya Singhal v. Union of India (2015) केस की पृष्ठभूमि क्या थी?
यह मामला 2012 में महाराष्ट्र में दो युवतियों की गिरफ्तारी से जुड़ा था। उन्होंने फेसबुक पर एक पोस्ट ‘लाइक’ किया था, जिसमें मुंबई बंद करने की आलोचना की गई थी। पुलिस ने उन्हें सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (IT Act) की धारा 66A के तहत गिरफ्तार कर लिया। धारा 66A के अनुसार कोई भी व्यक्ति यदि ऑनलाइन “आपत्तिजनक या परेशान करने वाला” संदेश भेजता है, तो तीन साल तक की सजा हो सकती थी। यह धारा अस्पष्ट और दमनकारी थी। इसके विरोध में वकील श्रेया सिंघल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की और धारा 66A को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की।
प्रश्न 2. सुप्रीम कोर्ट ने धारा 66A को असंवैधानिक क्यों घोषित किया?
सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि धारा 66A बहुत अस्पष्ट थी। “आपत्तिजनक” और “परेशान करने वाला” जैसे शब्दों की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं थी। इससे पुलिस को असीमित विवेकाधिकार मिलता था। कोर्ट ने कहा कि यह नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Article 19(1)(a)) का उल्लंघन करता है। अनुच्छेद 19(2) के तहत प्रतिबंध केवल “राज्य सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता या न्यायालय की अवमानना” जैसे आधारों पर ही लग सकते हैं। धारा 66A इनमें से किसी भी मानक पर खरी नहीं उतरती थी।
प्रश्न 3. इस फैसले का डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर क्या प्रभाव पड़ा?
फैसले ने यह स्पष्ट किया कि सोशल मीडिया जैसे प्लेटफॉर्म्स पर नागरिकों को अपनी राय व्यक्त करने का अधिकार है। बिना स्पष्ट कानूनी आधार के कोई भी संदेश या पोस्ट “आपत्तिजनक” कहकर प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता। यह निर्णय डिजिटल अभिव्यक्ति और लोकतंत्र की रक्षा करता है और लोगों को सोशल मीडिया पर खुलकर संवाद करने का साहस देता है।
प्रश्न 4. धारा 66A में “चिलिंग इफेक्ट” क्या था?
“चिलिंग इफेक्ट” का अर्थ है कि नागरिक डर के कारण अपनी अभिव्यक्ति को रोक दें। धारा 66A के कारण लोग सोशल मीडिया पर अपनी राय व्यक्त करने से डरते थे, क्योंकि अस्पष्ट शब्दों के कारण उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा कानून लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों के खिलाफ है।
प्रश्न 5. AI और सोशल बॉट्स के संदर्भ में इस फैसले की प्रासंगिकता क्या है?
आज AI आधारित सोशल बॉट्स बड़ी मात्रा में फेक न्यूज और हेट स्पीच फैलाते हैं। Shreya Singhal Judgment याद दिलाता है कि ऐसे मामलों में कानून को स्पष्ट, न्यायसंगत और संवैधानिक होना चाहिए। किसी भी तकनीकी माध्यम से अभिव्यक्ति को दबाना या नागरिकों की स्वतंत्रता को प्रभावित करना असंवैधानिक होगा।
प्रश्न 6. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और साइबर अपराध के बीच संतुलन कैसे बनाए रखा गया?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पूर्ण नहीं होती। अनुच्छेद 19(2) के तहत उचित प्रतिबंध लागू किए जा सकते हैं। साइबर अपराध जैसे साइबर बुलिंग, अश्लील सामग्री, राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा और नफरत फैलाने वाले संदेशों से निपटने के लिए कानून बना सकते हैं। लेकिन यह कानून स्पष्ट और न्यायिक रूप से परखा गया होना चाहिए।
प्रश्न 7. अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में यह फैसला क्यों महत्वपूर्ण है?
दुनिया भर में सोशल मीडिया और AI आधारित बॉट्स से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बहस जारी है। यूरोप में GDPR और Digital Services Act नागरिकों की अभिव्यक्ति और निजता की रक्षा करते हैं। अमेरिका में First Amendment सुरक्षा प्रदान करता है। चीन में अभिव्यक्ति पर कड़ा नियंत्रण है। भारत में Shreya Singhal का फैसला लोकतांत्रिक और संतुलित दृष्टिकोण देता है।
प्रश्न 8. धारा 66A की असंवैधानिकता ने कानूनी प्रक्रिया पर क्या प्रभाव डाला?
धारा 66A की असंवैधानिकता ने यह स्पष्ट किया कि कानून को नागरिकों के अधिकारों के अनुरूप और स्पष्ट रूप से परिभाषित होना चाहिए। अस्पष्ट कानून नागरिकों को डराने और दमन करने के साधन बन सकते हैं। यह निर्णय न्यायपालिका को यह दिशा देता है कि डिजिटल युग में कानून बनाते समय संविधान की प्राथमिकताओं को ध्यान में रखना अनिवार्य है।
प्रश्न 9. भविष्य में डिजिटल अभिव्यक्ति के लिए क्या सीख मिलती है?
फैसले से स्पष्ट होता है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर कानून बनाते समय नागरिकों की अभिव्यक्ति और सुरक्षा के बीच संतुलन आवश्यक है। कानून स्पष्ट, अनुपातिक और पारदर्शी होना चाहिए। AI और फेक न्यूज के युग में यह निर्णय भविष्य में डिजिटल लोकतंत्र की रक्षा में मार्गदर्शक बनेगा।
प्रश्न 10. लोकतंत्र में इस फैसले का महत्व क्या है?
लोकतंत्र में असहमति और विचारों की विविधता महत्वपूर्ण है। Shreya Singhal Judgment ने यह सुनिश्चित किया कि कोई भी कानून, चाहे तकनीकी माध्यम से लागू हो, नागरिकों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति को दबाने का साधन न बने। इससे नागरिकों का विश्वास डिजिटल प्लेटफॉर्म्स में बना रहता है और लोकतंत्र मजबूत होता है।