“अपील में अनुपस्थिति पर केवल नॉन-प्रॉसिक्यूशन के आधार पर खारिजी संभव: सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट निर्देश – Dhanayya & Others Versus Chandrashekhar”
प्रस्तावना
भारतीय न्याय प्रक्रिया में “अपील” एक महत्वपूर्ण अधिकार है, जो एक पक्ष को यह अवसर देता है कि वह किसी निचली अदालत के निर्णय की वैधता को ऊपरी अदालत में चुनौती दे सके। परंतु जब अपीलकर्ता अपील की सुनवाई के समय उपस्थित नहीं होता, तो क्या अपील को मेरिट (गुण-दोष) पर खारिज किया जा सकता है? इस जटिल प्रश्न पर सुप्रीम कोर्ट ने Dhanayya & Others Versus Chandrashekhar मामले में अपना निर्णायक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है।
मामले की पृष्ठभूमि
इस प्रकरण में, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने उस अपील को मेरिट के आधार पर खारिज कर दिया, जिसमें अपीलकर्ता (Dhanayya और अन्य) जब सुनवाई के समय उपस्थित नहीं हुए थे। इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी, जहां यह महत्वपूर्ण प्रश्न उठाया गया कि –
“क्या अदालत, अपीलकर्ता की अनुपस्थिति में अपील को मेरिट्स पर खारिज कर सकती है?”
सुप्रीम कोर्ट का अवलोकन और निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि:
- यदि अपील की सुनवाई के समय अपीलकर्ता उपस्थित नहीं है, तो उस स्थिति में अपील को केवल “गैर-अनुसरण” (non-prosecution) के आधार पर खारिज किया जा सकता है।
- मूल्यांकन कर के (on merits) अपील को खारिज करना न्यायोचित नहीं है, जब तक कि पक्षों को सुनने का अवसर न दिया गया हो।
इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक सिद्धांतों और पूर्ववर्ती निर्णयों को आधार बनाते हुए यह दोहराया कि “सुनवाई का अधिकार” न्याय का एक मूल स्तंभ है, और इसे केवल अनुपस्थिति के आधार पर कुचलना न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।
महत्वपूर्ण कानूनी सिद्धांत
- नैसर्गिक न्याय (Natural Justice):
प्रत्येक पक्ष को सुनवाई का पूरा अवसर मिलना चाहिए। - Order XLI Rule 17 of CPC:
यदि अपीलकर्ता अनुपस्थित है, तो अपील को dismissed for default किया जा सकता है, न कि merits पर। - पूर्ववर्ती निर्णय:
- Abdur Rahman vs. Athifa Begum (1996): सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि पक्ष की अनुपस्थिति में merits पर निर्णय देना अनुचित है।
- K.S. Panduranga v. State of Karnataka (2013): यदि अधिवक्ता अनुपस्थित हो, तब भी न्यायालय को यथासंभव merit पर विचार करते हुए निर्णय देना चाहिए, परंतु यह बाध्यता नहीं है।
न्यायालय की आलोचना उच्च न्यायालय के प्रति
सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के निर्णय को त्रुटिपूर्ण करार देते हुए यह स्पष्ट किया कि जब अपीलकर्ता उपस्थित नहीं था, तो उच्च न्यायालय को उस अपील को केवल dismissed for non-prosecution कहना चाहिए था, न कि merits पर निर्णय देकर उसे खारिज करना।
निष्कर्ष
Dhanayya & Others Vs. Chandrashekhar मामले में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय भारतीय न्याय प्रणाली में Due Process of Law और Fair Hearing के सिद्धांत को बल प्रदान करता है। यह फैसला न केवल उच्च न्यायालयों को न्यायिक प्रक्रिया के मानकों की याद दिलाता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि किसी भी अपील को केवल इसलिए नकारात्मक निर्णय नहीं मिलना चाहिए क्योंकि अपीलकर्ता उपस्थित नहीं हो पाया।
सुनवाई के अधिकार को केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि एक संवैधानिक और प्राकृतिक न्याय का मूलाधिकार माना जाना चाहिए।