“अपील की समयसीमा पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर: Tata Steel बनाम राज कुमार बनर्जी मामले में NCLAT की अधिकार-सीमा स्पष्ट”

लेख शीर्षक:
“अपील की समयसीमा पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर: Tata Steel बनाम राज कुमार बनर्जी मामले में NCLAT की अधिकार-सीमा स्पष्ट”


भूमिका:
इन्सॉल्वेंसी एवं बैंकरप्सी संहिता, 2016 (Insolvency and Bankruptcy Code, 2016 – IBC) के अंतर्गत अपील की सीमित समयावधि एक निर्णायक तत्व है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने Tata Steel Ltd बनाम Raj Kumar Banerjee & Others के मामले में यह स्पष्ट कर दिया कि National Company Law Appellate Tribunal (NCLAT) को धारा 61(2) के तहत निर्धारित अधिकतम 45 दिनों (30+15 दिन) की समयसीमा के बाद की गई अपीलों को स्वीकार करने का कोई अधिकार नहीं है। इस निर्णय ने इन्सॉल्वेंसी मामलों में प्रक्रिया की निश्चितता और अनुशासन को दोहराया है।


मामले की पृष्ठभूमि:

  • Tata Steel Ltd ने एक आदेश के खिलाफ NCLAT में अपील दायर की थी।
  • अपील IBC की धारा 61(2) के तहत दायर की गई, जो कहती है कि अपील 30 दिनों के भीतर की जानी चाहिए, और न्यायालय यदि संतुष्ट हो, तो अधिकतम 15 दिन का विलंब और स्वीकार कर सकता है।
  • लेकिन Tata Steel की अपील 45 दिनों के पश्चात दायर की गई थी।
  • इस पर विवाद हुआ कि क्या NCLAT को ऐसी विलंबित अपील स्वीकार करने का विवेकाधिकार (discretionary power) है या नहीं।

प्रमुख कानूनी प्रावधान:

🔹 IBC की धारा 61(2):

“Appeal shall be filed within 30 days… Provided that the Appellate Tribunal may allow it to be filed within a further period not exceeding fifteen days.”

इसका अर्थ यह हुआ कि अधिकतम 45 दिनों तक ही अपील की अनुमति दी जा सकती है, वह भी न्यायालय की संतुष्टि पर।


सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:

  • सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि NCLAT के पास इस 45-दिन की समयसीमा से परे किसी भी अपील को स्वीकार करने का कोई अधिकार नहीं है।
  • न्यायालय ने यह भी रेखांकित किया कि यह समयसीमा अनिवार्य प्रकृति की है (mandatory in nature) और इस पर कोई छूट नहीं दी जा सकती।
  • इस निर्णय में कोर्ट ने ‘Limitation is jurisdictional’ सिद्धांत पर बल दिया – अर्थात् यदि समयसीमा पार हो जाती है, तो ट्रिब्यूनल को उस अपील पर विचार करने का कोई अधिकार नहीं होता।

न्यायालय की टिप्पणी:

The period of limitation prescribed under Section 61(2) of the Code is mandatory. The Adjudicating Authority and the Appellate Tribunal are creatures of the statute and cannot travel beyond the bounds prescribed therein.


प्रभाव और महत्व:

  1. न्यायिक अनुशासन की पुनः पुष्टि:
    • यह निर्णय स्पष्ट करता है कि न्यायालय की शक्ति कानून की सीमाओं में बंधी है।
  2. IBC की प्रक्रिया में सख्ती और निश्चितता:
    • देरी से मुकदमा करने की प्रवृत्ति को हतोत्साहित करता है।
  3. NCLAT की सीमाएं स्पष्ट:
    • NCLAT एक वैधानिक संस्था है, और वह कानून में निर्धारित सीमाओं से बाहर नहीं जा सकती
  4. भविष्य के मामलों के लिए मार्गदर्शक:
    • सभी कॉरपोरेट एवं इन्सॉल्वेंसी मामलों में अपीलकर्ताओं को सख्त समयसीमा का पालन करना होगा।

निष्कर्ष:
Tata Steel Ltd बनाम Raj Kumar Banerjee मामले में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय इन्सॉल्वेंसी कानून की विधिक प्रक्रिया में दृढ़ता और सटीकता को बनाए रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। न्यायालय ने यह दोहराया कि कानून द्वारा निर्धारित समयसीमा का उल्लंघन न्यायिक विवेक से नहीं छूट सकता, और न्याय के नाम पर प्रक्रिया के दुरुपयोग को अनुमति नहीं दी जा सकती।