“अपवादस्वरूप मामलों में अंतरिम राहत हेतु उच्च न्यायालय की अनुच्छेद 227 के तहत हस्तक्षेप की अनुमति: सुप्रीम कोर्ट का निर्णायक फैसला”

लेख शीर्षक:
“अपवादस्वरूप मामलों में अंतरिम राहत हेतु उच्च न्यायालय की अनुच्छेद 227 के तहत हस्तक्षेप की अनुमति: सुप्रीम कोर्ट का निर्णायक फैसला”
(M/S Jindal Steel And Power Ltd. & Anr बनाम M/S Bansal Infra Projects Pvt. Ltd. & Others)


🔷 भूमिका:

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में यह स्पष्ट किया कि Arbitration and Conciliation Act, 1996 के अंतर्गत यद्यपि न्यूनतम न्यायिक हस्तक्षेप का सिद्धांत लागू होता है, फिर भी कुछ अपवादस्वरूप परिस्थितियों में अनुच्छेद 227 के तहत उच्च न्यायालय को अंतरिम राहत प्रदान करने का अधिकार है, विशेषतः जब राहत न मिलने से अपूरणीय क्षति (irreparable harm) हो सकती है।


⚖️ प्रकरण का संक्षिप्त विवरण:

  • वाद: M/S Jindal Steel And Power Ltd. & Anr बनाम M/S Bansal Infra Projects Pvt. Ltd. & Others
  • मुद्दा: क्या उच्च न्यायालय अनुच्छेद 227 के अंतर्गत आर्बिट्रेशन प्रक्रिया में हस्तक्षेप कर सकता है?
  • निर्णय: हां, किन्तु केवल अपवादस्वरूप परिस्थितियों में।

🏛️ सुप्रीम कोर्ट की मुख्य टिप्पणियाँ:

न्यूनतम न्यायिक हस्तक्षेप का सिद्धांत बरकरार:

Arbitration and Conciliation Act, 1996 न्यायिक हस्तक्षेप को न्यूनतम रखने की बात करता है ताकि वैकल्पिक विवाद निपटान प्रणाली को स्वतंत्रता दी जा सके।

अनुच्छेद 227 का प्रयोग सीमित परंतु प्रभावी:

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अनुच्छेद 227 के तहत उच्च न्यायालय की सुपरवाइजरी शक्तियाँ बरकरार रहती हैं और यदि कोई पक्ष गंभीर नुकसान या अन्याय की आशंका जताता है, तो अंतरिम राहत प्रदान की जा सकती है।

न्याय का संतुलन आवश्यक:

यह भी कहा गया कि कानून की आत्मा यह है कि जब कोई पक्ष न्यायालय में उचित अंतरिम सुरक्षा चाहता है और अगर उसे वंचित किया गया तो उसे अपूरणीय क्षति हो सकती है, तब उच्च न्यायालय हस्तक्षेप कर सकता है।


📘 विधिक आधार:

अधिनियम / प्रावधान विवरण
Arbitration and Conciliation Act, 1996 मध्यस्थता प्रक्रिया को नियंत्रित करने वाला प्रमुख कानून
Article 227, Indian Constitution उच्च न्यायालय को अधीनस्थ न्यायालयों पर नियंत्रण और पर्यवेक्षण का अधिकार देता है
Interim Relief मुकदमे या मध्यस्थता की प्रक्रिया के दौरान पक्ष को अस्थायी संरक्षण देना

🔍 इस निर्णय का प्रभाव:

  1. ✅ उच्च न्यायालयों के अधिकारों की सीमा स्पष्ट हुई।
  2. ✅ मध्यस्थता की प्रक्रिया को बल मिला, साथ ही न्यायसंगत सुरक्षा की व्यवस्था भी।
  3. ✅ पक्षकारों को अपूरणीय क्षति से बचाने के लिए वैधानिक मार्ग प्रशस्त हुआ।
  4. ✅ यह निर्णय भविष्य में अंतरिम राहत की मांग करने वाले मामलों में मार्गदर्शक बनेगा।

🔚 निष्कर्ष:

इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक संतुलन की उत्कृष्ट मिसाल पेश की है — जहां एक ओर मध्यस्थता की स्वतंत्रता को सम्मान दिया गया, वहीं दूसरी ओर न्याय और संरक्षण के मौलिक सिद्धांतों की रक्षा करते हुए उच्च न्यायालय की सीमित परंतु निर्णायक भूमिका को मान्यता दी गई।

यह निर्णय भारतीय मध्यस्थता व्यवस्था को और अधिक व्यावहारिक और न्यायपूर्ण बनाता है।