अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 और अग्रिम जमानत : केरल हाईकोर्ट का निर्णय
(Dhanesh Vijayan @ Kannan v/s State of Kerala, CRL.A No. 1511/2025, निर्णय दिनांक 27.08.2025)
प्रस्तावना
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (SC/ST Act) का उद्देश्य समाज के कमजोर वर्गों को जातिगत भेदभाव और उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान करना है। यह कानून कठोर प्रावधानों के लिए जाना जाता है, क्योंकि इसमें यह माना गया है कि अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के विरुद्ध किए गए अपराध न केवल व्यक्ति के खिलाफ, बल्कि पूरी जाति और समाज की गरिमा पर आघात हैं।
हालाँकि, समय-समय पर न्यायालयों के सामने यह प्रश्न आता रहा है कि यदि किसी मामले में प्रथम दृष्टया यह साबित नहीं होता कि अपराध जातिगत आधार पर किया गया है, तो क्या अभियुक्त को अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail) दी जा सकती है?
इसी संदर्भ में केरल हाईकोर्ट का हालिया निर्णय Dhanesh Vijayan @ Kannan v/s State of Kerala (27 अगस्त 2025) अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस निर्णय में न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यदि आरोपों से यह साबित नहीं होता कि अभियुक्त को पीड़ित की जाति के बारे में जानकारी थी और उसने जानबूझकर जातिगत आधार पर अपराध किया है, तो अग्रिम जमानत प्रदान की जा सकती है।
मामले के तथ्य (Facts of the Case)
- अपीलकर्ता धनश विजयन @ कन्नन पर आरोप था कि उन्होंने एक अनुसूचित जाति/जनजाति समुदाय के व्यक्ति के साथ विवाद के दौरान अपमानजनक व्यवहार किया।
- शिकायतकर्ता का आरोप था कि अभियुक्त ने जानबूझकर उसकी जाति को लक्षित करते हुए गाली-गलौज की।
- पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया और SC/ST Act, 1989 के प्रावधानों को लागू किया।
- अभियुक्त ने अग्रिम जमानत के लिए याचिका दायर की, लेकिन निचली अदालत ने इसे यह कहते हुए खारिज कर दिया कि SC/ST Act की धारा 18 और 18-A अग्रिम जमानत पर प्रतिबंध लगाती है।
- इसके खिलाफ अभियुक्त ने केरल हाईकोर्ट में अपील दायर की।
कानूनी प्रश्न (Legal Issues before the Court)
- क्या SC/ST Act, 1989 के मामलों में अग्रिम जमानत पूर्णतः वर्जित है?
- क्या अभियुक्त को पीड़ित की जाति की जानकारी और उसका उद्देश्य (mens rea) इस बात को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण है कि SC/ST Act लागू होगा या नहीं?
- यदि प्रथम दृष्टया अपराध जातिगत आधार पर सिद्ध नहीं होता, तो क्या अभियुक्त को अग्रिम जमानत दी जा सकती है?
न्यायालय की तर्कणा (Reasoning of the Court)
1. अग्रिम जमानत पर प्रतिबंध का दायरा
- SC/ST Act की धारा 18 और 18-A यह कहती हैं कि इस अधिनियम के अंतर्गत दर्ज अपराधों में अग्रिम जमानत नहीं दी जाएगी।
- लेकिन, सर्वोच्च न्यायालय के कई निर्णयों (जैसे Prathvi Raj Chauhan v. Union of India, 2020 तथा Subhash Kashinath Mahajan v. State of Maharashtra, 2018) में स्पष्ट किया गया है कि यदि प्रथम दृष्टया आरोप सिद्ध नहीं होते, तो धारा 18 और 18-A अग्रिम जमानत पर स्वतः रोक नहीं लगाते।
2. जाति की जानकारी (Knowledge of Caste)
- न्यायालय ने कहा कि SC/ST Act तभी लागू होगा जब अभियुक्त ने यह जानते हुए कि पीड़ित अनुसूचित जाति या जनजाति से है, अपराध किया हो।
- यदि यह इरादा या जानकारी (mens rea) आरोप-पत्र से सिद्ध नहीं होती, तो इस अधिनियम का कठोर प्रावधान लागू नहीं होगा।
3. प्रथम दृष्टया सबूत (Prima Facie Case)
- न्यायालय ने कहा कि शिकायत और अन्य अभिलेखों को पढ़ने के बाद यह स्पष्ट नहीं होता कि अभियुक्त ने जातिगत पहचान के कारण अपराध किया।
- अतः यह मामला साधारण विवाद प्रतीत होता है, न कि जातिगत आधार पर अत्याचार।
निर्णय (Judgment of the Court)
- केरल हाईकोर्ट ने यह मानते हुए कि अभियुक्त के खिलाफ SC/ST Act की धारा लागू होने के लिए आवश्यक शर्तें प्रथम दृष्टया सिद्ध नहीं होतीं, अग्रिम जमानत देने का आदेश पारित किया।
- न्यायालय ने यह भी कहा कि SC/ST Act का उद्देश्य समाज में समानता और सुरक्षा सुनिश्चित करना है, लेकिन इसका दुरुपयोग नहीं होना चाहिए।
प्रमुख न्यायिक दृष्टांत (Important Case Laws)
- Subhash Kashinath Mahajan v. State of Maharashtra (2018, SC)
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि प्राथमिकी (FIR) से प्रथम दृष्टया अपराध सिद्ध नहीं होता, तो अग्रिम जमानत दी जा सकती है।
- Prathvi Raj Chauhan v. Union of India (2020, SC)
- कोर्ट ने कहा कि SC/ST Act के मामलों में अग्रिम जमानत पर पूर्णतः प्रतिबंध नहीं है। न्यायालय आरोपों की प्रकृति देखकर राहत प्रदान कर सकता है।
- Hitesh Verma v. State of Uttarakhand (2020, SC)
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि विवाद जातिगत आधार पर नहीं, बल्कि किसी निजी या संपत्ति संबंधी कारण से हुआ है, तो SC/ST Act लागू नहीं होगा।
विधिक विश्लेषण (Legal Analysis)
- अधिनियम का उद्देश्य और कठोरता
- SC/ST Act का उद्देश्य अनुसूचित जाति और जनजाति के सदस्यों को सामाजिक न्याय और सुरक्षा प्रदान करना है।
- लेकिन, न्यायालयों ने यह भी माना है कि इसकी कठोरता के कारण कई बार इसका दुरुपयोग होता है।
- Mens Rea की भूमिका
- अभियुक्त को पीड़ित की जाति के बारे में पता होना और उसी आधार पर अपराध करना आवश्यक है।
- यदि यह साबित नहीं होता, तो सामान्य भारतीय दंड संहिता (IPC) की धाराएँ लागू होंगी, न कि SC/ST Act।
- न्यायालयों का संतुलन
- न्यायालय यह संतुलन बनाए रखते हैं कि पीड़ित को सुरक्षा मिले, लेकिन अभियुक्त को झूठे मामलों में फँसाया न जाए।
निष्कर्ष (Conclusion)
केरल हाईकोर्ट का यह निर्णय स्पष्ट करता है कि SC/ST Act, 1989 के मामलों में अग्रिम जमानत पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं है। यदि आरोपों से यह प्रथम दृष्टया साबित नहीं होता कि अपराध जातिगत पहचान के आधार पर हुआ है, तो अभियुक्त को अग्रिम जमानत मिल सकती है।
यह निर्णय दो प्रमुख सिद्धांतों को रेखांकित करता है—
- सामाजिक न्याय की रक्षा : अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों को वास्तविक उत्पीड़न से सुरक्षा मिलनी चाहिए।
- कानूनी दुरुपयोग की रोकथाम : अधिनियम का गलत उपयोग कर निर्दोष व्यक्तियों को झूठे मामलों में फँसाना न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध है।
अतः, Dhanesh Vijayan @ Kannan v/s State of Kerala का यह फैसला भविष्य में SC/ST Act से संबंधित मामलों में अग्रिम जमानत पर विचार करने हेतु एक मार्गदर्शक दृष्टांत (precedent) के रूप में कार्य करेगा।
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Q&A शैली : SC/ST Act और अग्रिम जमानत – केरल हाईकोर्ट का निर्णय
(Dhanesh Vijayan @ Kannan v/s State of Kerala, CRL.A No. 1511/2025, निर्णय दिनांक 27.08.2025)
Q.1. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 का उद्देश्य क्या है?
Ans. इस अधिनियम का उद्देश्य अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को जातिगत भेदभाव, उत्पीड़न और अत्याचार से सुरक्षा प्रदान करना है। यह कानून कठोर प्रावधानों के लिए जाना जाता है ताकि समाज के कमजोर वर्गों को सामाजिक न्याय मिल सके।
Q.2. मामले के तथ्य (Facts of the Case) क्या थे?
Ans.
- अभियुक्त धनश विजयन @ कन्नन पर आरोप था कि उन्होंने शिकायतकर्ता को उसकी जाति को लेकर गाली-गलौज की।
- शिकायतकर्ता अनुसूचित जाति/जनजाति से संबंधित था।
- पुलिस ने SC/ST Act की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया।
- अभियुक्त ने अग्रिम जमानत की मांग की, जिसे निचली अदालत ने धारा 18 और 18-A का हवाला देते हुए खारिज कर दिया।
- इसके खिलाफ अभियुक्त ने केरल हाईकोर्ट में अपील दायर की।
Q.3. न्यायालय के समक्ष प्रमुख कानूनी प्रश्न (Legal Issues) क्या थे?
Ans.
- क्या SC/ST Act, 1989 के मामलों में अग्रिम जमानत पूर्णतः प्रतिबंधित है?
- क्या अभियुक्त को पीड़ित की जाति की जानकारी (knowledge) और अपराध की मंशा (mens rea) आवश्यक तत्व हैं?
- यदि आरोप प्रथम दृष्टया जातिगत आधार पर सिद्ध नहीं होते, तो क्या अग्रिम जमानत दी जा सकती है?
Q.4. केरल हाईकोर्ट ने अग्रिम जमानत के संबंध में क्या कहा?
Ans. कोर्ट ने कहा कि—
- धारा 18 और 18-A के अनुसार SC/ST Act के मामलों में अग्रिम जमानत स्वतः वर्जित नहीं है।
- यदि आरोप प्रथम दृष्टया जातिगत आधार पर सिद्ध नहीं होते, तो अभियुक्त को अग्रिम जमानत दी जा सकती है।
- अभियुक्त को पीड़ित की जाति की जानकारी और उसी आधार पर अपराध करने का इरादा सिद्ध होना चाहिए, तभी कठोर प्रावधान लागू होंगे।
Q.5. न्यायालय ने किन पूर्व निर्णयों पर भरोसा किया?
Ans.
- Subhash Kashinath Mahajan v. State of Maharashtra (2018, SC) – यदि FIR से प्रथम दृष्टया अपराध सिद्ध न हो, तो अग्रिम जमानत दी जा सकती है।
- Prathvi Raj Chauhan v. Union of India (2020, SC) – अग्रिम जमानत पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं है।
- Hitesh Verma v. State of Uttarakhand (2020, SC) – यदि विवाद जातिगत न होकर निजी या संपत्ति संबंधी हो, तो SC/ST Act लागू नहीं होगा।
Q.6. न्यायालय की तर्कणा (Reasoning) क्या रही?
Ans.
- केवल जातिसूचक शब्दों का प्रयोग करना पर्याप्त नहीं है, जब तक यह सिद्ध न हो कि अपराध पीड़ित की जाति जानबूझकर लक्षित करके किया गया।
- यदि आरोप सामान्य विवाद से संबंधित हैं और जातिगत पहचान स्पष्ट रूप से अपराध का कारण नहीं है, तो SC/ST Act की धाराएँ लागू नहीं होंगी।
- अधिनियम का उद्देश्य सुरक्षा है, लेकिन उसका दुरुपयोग रोकना भी उतना ही आवश्यक है।
Q.7. इस निर्णय का परिणाम (Decision/Outcome) क्या रहा?
Ans. केरल हाईकोर्ट ने अभियुक्त को अग्रिम जमानत देने का आदेश पारित किया, क्योंकि आरोपों से प्रथम दृष्टया यह सिद्ध नहीं हुआ कि अपराध जातिगत आधार पर किया गया था।
Q.8. इस निर्णय से क्या विधिक सिद्धांत (Legal Principle) निकलता है?
Ans.
- SC/ST Act के तहत अग्रिम जमानत स्वतः वर्जित नहीं है।
- अभियुक्त की मंशा (mens rea) और पीड़ित की जाति की जानकारी (knowledge of caste) आवश्यक तत्व हैं।
- अधिनियम का दुरुपयोग रोकना उतना ही जरूरी है जितना वास्तविक पीड़ितों को सुरक्षा प्रदान करना।
Q.9. इस निर्णय का महत्व (Significance) क्या है?
Ans.
- यह निर्णय SC/ST Act के कठोर प्रावधान और व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Personal Liberty) के बीच संतुलन स्थापित करता है।
- भविष्य में यह केस एक मार्गदर्शक (precedent) के रूप में कार्य करेगा, जहाँ अदालतें यह देख सकेंगी कि क्या अपराध वास्तव में जातिगत आधार पर हुआ है या नहीं।