“अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को चुनौती नहीं दी जा सकती: सतीश चंदर शर्मा बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य मामले में ऐतिहासिक निर्णय”
लेख:
भूमिका:
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने Satish Chander Sharma & Ors v. State of Himachal Pradesh & Ors मामले में एक अत्यंत महत्वपूर्ण संवैधानिक व्याख्या प्रस्तुत की। न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 32, जो मूल अधिकारों के संरक्षण हेतु एक remedial (उपचारात्मक) प्रावधान है, का उपयोग सुप्रीम कोर्ट के अपने ही निर्णय को चुनौती देने के लिए नहीं किया जा सकता। यह निर्णय न केवल अनुच्छेद 32 की सीमाओं को रेखांकित करता है, बल्कि न्यायिक प्रक्रिया की अंतिमता और स्थायित्व को भी सुदृढ़ करता है।
मामले की पृष्ठभूमि:
इस मामले में याचिकाकर्ताओं ने संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत एक रिट याचिका दाखिल कर सुप्रीम कोर्ट के पूर्ववर्ती निर्णय को चुनौती दी। उनका तर्क था कि पूर्व निर्णय में कुछ मूल अधिकारों का उल्लंघन हुआ है और इसलिए वे न्यायिक समीक्षा की मांग कर रहे हैं।
हालांकि, यह याचिका उस निर्णय के विरुद्ध थी जिसे स्वयं सुप्रीम कोर्ट ने पारित किया था। इस पर विचार करते हुए कोर्ट ने यह मुद्दा उठाया कि क्या अनुच्छेद 32 के तहत इस प्रकार की याचिका स्वीकार की जा सकती है?
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय और तर्क:
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि:
“अनुच्छेद 32 का उद्देश्य नागरिकों को मूल अधिकारों के उल्लंघन की स्थिति में त्वरित न्याय प्रदान करना है। यह एक उपचारात्मक उपाय है, न कि सर्वोच्च न्यायालय के अंतिम निर्णय की समीक्षा या पुनर्विचार का माध्यम।”
न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि जब कोई निर्णय सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित हो चुका हो, और उसमें पुनर्विचार (Review) या सुधार (Curative Petition) की प्रक्रिया भी पूरी हो चुकी हो, तब अनुच्छेद 32 के माध्यम से उसी निर्णय को पुनः चुनौती देना संविधान की व्यवस्था के विपरीत होगा।
संवैधानिक महत्व:
यह निर्णय भारतीय न्यायिक प्रणाली में ‘finality of judgments’ की अवधारणा को सुदृढ़ करता है। सुप्रीम कोर्ट, जो कि संविधान की व्याख्या करने वाली सर्वोच्च संस्था है, के निर्णयों की अंतिमता एक आवश्यक विशेषता है, जिससे विधि व्यवस्था में स्थायित्व और विश्वास बना रहता है।
साथ ही, यह निर्णय यह भी स्पष्ट करता है कि संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों का उपयोग उनके उचित उद्देश्य के लिए ही किया जाना चाहिए। अनुच्छेद 32, जो भारत के नागरिकों को न्याय प्राप्ति की गारंटी देता है, को इस तरह से नहीं मोड़ा जा सकता जिससे न्यायपालिका की अंतिमता और प्रतिष्ठा को क्षति पहुंचे।
निष्कर्ष:
Satish Chander Sharma v. State of Himachal Pradesh मामला भारतीय संवैधानिक कानून की दृष्टि से एक मील का पत्थर है। यह निर्णय न केवल अनुच्छेद 32 की सीमाओं को दर्शाता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि सुप्रीम कोर्ट का निर्णय अंतिम होता है, और उसे बार-बार चुनौती देने का कोई असंवैधानिक रास्ता नहीं अपनाया जा सकता। इससे न्यायिक प्रक्रिया की विश्वसनीयता और स्थायित्व की भावना मजबूत होती है।