लेख शीर्षक:
“अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत व्यापार करने का अधिकार केवल आरंभ तक सीमित नहीं, उसमें व्यापार बंद करने का अधिकार भी निहित: सुप्रीम कोर्ट”
परिचय:
भारतीय संविधान नागरिकों को कई मौलिक अधिकार प्रदान करता है, जिनमें से अनुच्छेद 19(1)(g) नागरिकों को किसी भी व्यवसाय, व्यापार, पेशा या उद्योग को अपनाने का अधिकार देता है। अब हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की खंडपीठ (जस्टिस संजय करोल और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा) ने अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया है कि इस अनुच्छेद के अंतर्गत केवल व्यापार करने का अधिकार नहीं, बल्कि व्यापार को स्वेच्छा से बंद करने का अधिकार भी निहित है।
मामले की पृष्ठभूमि:
- यह मामला एक ऐसे कारोबारी से संबंधित था जिसने कानूनी विवादों या व्यावसायिक कारणों से अपने व्यापार को बंद करने का निर्णय लिया था।
- संबंधित सरकारी एजेंसियों ने उसके इस कदम को विभिन्न कानूनों के उल्लंघन के रूप में देखा और उस पर दंडात्मक कार्रवाई आरंभ की।
- व्यापारी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करते हुए दावा किया कि व्यापार बंद करने का निर्णय उसका संवैधानिक अधिकार है।
- कोर्ट को तय करना था कि क्या अनुच्छेद 19(1)(g) में व्यापार बंद करने का अधिकार भी समाहित है?
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि व्यापार आरंभ करना, उसे चलाना और उसे बंद करना — ये तीनों चरण व्यापार के अभिन्न अंग हैं।
- व्यक्ति को यह स्वतंत्रता है कि वह व्यवसाय कब शुरू करे और कब बंद करे, बशर्ते वह सभी वैधानिक जिम्मेदारियों का निर्वहन कर चुका हो।
- जब तक कोई व्यक्ति कानूनन धोखाधड़ी, कर अपवंचन या अनुबंध उल्लंघन नहीं कर रहा, तब तक उसके व्यवसाय बंद करने के निर्णय को चुनौती नहीं दी जा सकती।
खंडपीठ की टिप्पणियाँ:
- “व्यापार में प्रवेश का अधिकार अगर मौलिक है, तो उससे बाहर निकलने का अधिकार भी मौलिक होना चाहिए।”
- “राज्य व्यापार बंद करने की स्वतंत्रता को बाधित नहीं कर सकता, जब तक कि यह सार्वजनिक नीति, अनुबंध या वैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन न करता हो।”
संवैधानिक और विधिक विश्लेषण:
- अनुच्छेद 19(1)(g):
- यह अनुच्छेद प्रत्येक नागरिक को “किसी भी व्यवसाय, व्यापार या पेशे को चुनने की स्वतंत्रता” देता है।
- सुप्रीम कोर्ट ने अब इसकी व्यापक व्याख्या करते हुए इसमें व्यवसाय छोड़ने या बंद करने के अधिकार को भी समाहित माना।
- यथोचित प्रतिबंध (Reasonable Restrictions):
- अनुच्छेद 19(6) के तहत राज्य कुछ यथोचित प्रतिबंध लगा सकता है, लेकिन वो सार्वजनिक हित तक सीमित होने चाहिए।
- यह प्रतिबंध व्यवसाय बंद करने के निर्णय पर तब तक लागू नहीं हो सकते जब तक व्यक्ति अपने दायित्वों को पूरा करता है।
- मौलिक अधिकारों की गतिशील व्याख्या:
- सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि मौलिक अधिकारों की व्याख्या स्थिर नहीं हो सकती — इन्हें समय, तकनीक, और सामाजिक बदलावों के अनुरूप विकसित करना होगा।
इस निर्णय का महत्व:
- यह फैसला व्यापारियों और उद्यमियों के लिए एक सुरक्षा कवच है जो व्यावसायिक विफलता या परिस्थिति के आधार पर व्यापार बंद करना चाहते हैं।
- यह निर्णय विशेष रूप से स्टार्टअप्स और MSMEs के लिए राहतकारी है, जिन्हें कभी-कभी घाटे या कानूनी बाध्यताओं के कारण बंद करना पड़ता है।
- यह Ease of Doing Business को भी न्यायिक समर्थन प्रदान करता है।
निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(g) की व्यापक और आधुनिक व्याख्या करता है। इससे यह स्पष्ट हो गया है कि व्यापार का अधिकार केवल इसे शुरू करने तक सीमित नहीं है, बल्कि व्यापार को स्वतंत्र रूप से समाप्त करने का अधिकार भी मौलिक अधिकार का हिस्सा है। यह फैसला उद्यमशीलता के संवैधानिक संरक्षण की दिशा में एक मजबूत कदम है।