“अनुच्छेद 142 के तहत विवाह विच्छेद: सुप्रीम कोर्ट ने ‘अविवर्तनशील विघटन’ के आधार पर दिया तलाक — कुमारी रेखा बनाम शंभू शरण पासवान”

लेख शीर्षक:
“अनुच्छेद 142 के तहत विवाह विच्छेद: सुप्रीम कोर्ट ने ‘अविवर्तनशील विघटन’ के आधार पर दिया तलाक — कुमारी रेखा बनाम शंभू शरण पासवान”

लेख:
सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया ने कुमारी रेखा बनाम शंभू शरण पासवान [निर्णय दिनांक: 06 मई 2025] मामले में एक ऐतिहासिक निर्णय देते हुए स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत उसे यह विशेषाधिकार प्राप्त है कि वह ‘अविवर्तनशील विघटन’ (Irretrievable Breakdown of Marriage) के आधार पर विवाह को विधिक रूप से समाप्त (dissolve) कर सकता है, भले ही हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत कोई वैधानिक आधार सिद्ध न हो पाया हो।

इस मामले में, याचिकाकर्ता (पत्नी) और प्रतिवादी (पति) के बीच लंबे समय से चल रहे मतभेद और विवाह में कोई भी सामंजस्य की संभावना न रहने के कारण अदालत ने यह माना कि यह विवाह पूर्णतः विफल हो चुका है और अब दोनों पक्षों को जबरदस्ती इस रिश्ते में बांधकर रखना न्यायसंगत नहीं है।

मुख्य बिंदु:

  • सुप्रीम कोर्ट ने माना कि विवाह का ‘अविवर्तनशील विघटन’, यदि वस्तुगत रूप से स्पष्ट हो, तो उसे न्याय के हित में भंग किया जा सकता है।
  • यह अधिकार संविधान के अनुच्छेद 142 के अंतर्गत आता है, जो सर्वोच्च न्यायालय को पूर्ण न्याय (complete justice) करने की शक्ति प्रदान करता है।
  • यद्यपि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 में ‘अविवर्तनशील विघटन’ को तलाक का स्वतंत्र आधार नहीं माना गया है, परंतु सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि जहां वैवाहिक संबंधों में पूर्ण रूप से टूटन आ चुकी हो, वहां केवल तकनीकी अड़चनों के चलते तलाक से इनकार करना, न्याय का अपमान होगा।

न्यायालय की टिप्पणी:

“यह अदालत बाध्य नहीं है कि केवल वैधानिक ढांचे की सीमाओं में रहकर न्याय करे, विशेष रूप से तब, जब एक रिश्ता केवल कानूनी कागजों पर जीवित है, व्यवहारिक रूप से नहीं।”
— न्यायमूर्ति ए.टी. एन. ए. (ATANA) की खंडपीठ की टिप्पणी

पृष्ठभूमि:

इस दंपत्ति के बीच वर्षों से कोई संपर्क नहीं था, वे अलग-अलग स्थानों पर जीवन व्यतीत कर रहे थे, और विवाह में पुनः मिलन की कोई संभावना शेष नहीं थी। ट्रायल कोर्ट और उच्च न्यायालय ने तलाक से इनकार कर दिया था क्योंकि हिंदू विवाह अधिनियम की वैधानिक शर्तें पूर्ण नहीं हो रही थीं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने न्याय की व्यापक परिभाषा को अपनाते हुए विवाह को समाप्त करने का निर्देश दिया।

निष्कर्ष:

इस निर्णय से यह स्पष्ट होता है कि अनुच्छेद 142 भारतीय न्याय प्रणाली में केवल एक संवैधानिक प्रावधान नहीं, बल्कि न्याय के लिए एक लचीला और विवेकपूर्ण साधन है। कुमारी रेखा बनाम शंभू शरण पासवान का फैसला उन विवाहित व्यक्तियों के लिए आशा की किरण है जो विधिक अड़चनों के कारण असहनीय वैवाहिक जीवन जीने को मजबूर हैं

यह निर्णय भारतीय पारिवारिक कानून में मानवता, व्यावहारिकता और न्यायिक विवेक का संगम दर्शाता है।