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अनुकंपा नियुक्ति स्वीकार करने के बाद उच्च पद का दावा अस्वीकार्य: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय

अनुकंपा नियुक्ति स्वीकार करने के बाद उच्च पद का दावा अस्वीकार्य: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय


भूमिका

     सरकारी सेवा में अनुकंपा नियुक्ति (Compassionate Appointment) एक मानवीय और कल्याणकारी व्यवस्था है, जिसका उद्देश्य सेवा के दौरान मृत कर्मचारी के परिवार को अचानक उत्पन्न हुए आर्थिक संकट से उबारना होता है। यह व्यवस्था न तो रोजगार का वैकल्पिक अधिकार है और न ही उच्च पद या बेहतर सेवा शर्तें पाने का माध्यम। इसी मूल भावना को दोहराते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण और दूरगामी प्रभाव वाला निर्णय दिया है कि जो व्यक्ति किसी पद पर अनुकंपा नियुक्ति स्वीकार कर लेता है, वह बाद में यह दावा नहीं कर सकता कि उसे उससे ऊँचे पद पर नियुक्त किया जाना चाहिए था

    यह फैसला सेवा कानून (Service Jurisprudence) में न केवल स्पष्टता लाता है, बल्कि यह संवैधानिक समानता, सार्वजनिक रोजगार की निष्पक्षता और प्रशासनिक अनुशासन को भी सुदृढ़ करता है।


अनुकंपा नियुक्ति: अवधारणा और उद्देश्य

      अनुकंपा नियुक्ति की अवधारणा का जन्म मानवीय करुणा और सामाजिक न्याय के विचार से हुआ है। इसका उद्देश्य है—

  • मृतक कर्मचारी के परिवार को तत्काल रोजगार उपलब्ध कराना
  • परिवार को भुखमरी, दरिद्रता और सामाजिक असुरक्षा से बचाना
  • परिवार को आत्मनिर्भर बनने का अवसर देना

सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार यह स्पष्ट किया है कि अनुकंपा नियुक्ति:

  • न तो वंशानुगत अधिकार है
  • न ही यह सामान्य भर्ती प्रक्रिया का विकल्प है
  • न ही इससे उच्च पद, पदोन्नति या दीर्घकालिक सेवा लाभ का दावा किया जा सकता है

संवैधानिक ढांचा और अनुकंपा नियुक्ति

अनुच्छेद 14 और 16 का अपवाद

     भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14 समानता का अधिकार और अनुच्छेद 16 सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर की गारंटी देता है। सामान्यतः सरकारी नौकरी:

  • खुली प्रतियोगिता
  • योग्यता आधारित चयन
  • पारदर्शी प्रक्रिया

के माध्यम से दी जाती है।

     अनुकंपा नियुक्ति इन सिद्धांतों से एक सीमित अपवाद है, जिसे केवल इसलिए स्वीकार किया गया है ताकि मृतक कर्मचारी का परिवार अचानक आए संकट से उबर सके


मामले की पृष्ठभूमि

इस मामले में तथ्य कुछ इस प्रकार थे—

  • एक सरकारी कर्मचारी की सेवा काल में मृत्यु हो गई
  • उसके आश्रित को सरकारी नीति के तहत अनुकंपा नियुक्ति दी गई
  • नियुक्ति एक निम्न श्रेणी के पद पर की गई
  • आश्रित ने बिना किसी आपत्ति के उस पद को स्वीकार कर लिया
  • कुछ वर्षों बाद उसने दावा किया कि उसकी शैक्षणिक योग्यता अधिक थी, इसलिए उसे उच्च पद मिलना चाहिए था

यह विवाद पहले ट्रिब्यूनल, फिर हाईकोर्ट और अंततः सुप्रीम कोर्ट तक पहुँचा।


याचिकाकर्ता की दलीलें

याचिकाकर्ता की ओर से यह तर्क रखे गए—

  1. वह निर्धारित न्यूनतम योग्यता से अधिक शिक्षित था
  2. विभाग के अन्य कर्मचारियों को उच्च पदों पर नियुक्त किया गया
  3. समानता के सिद्धांत के तहत उसे भी समान अवसर मिलना चाहिए
  4. निम्न पद पर नियुक्ति उसके कौशल और योग्यता के साथ अन्याय है

राज्य और नियोक्ता का पक्ष

सरकार की ओर से कहा गया—

  • अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य तत्काल सहायता है, न कि सर्वश्रेष्ठ पद देना
  • पद का निर्धारण नीति और प्रशासनिक आवश्यकता के अनुसार किया गया
  • नियुक्ति को स्वेच्छा से स्वीकार किया गया
  • स्वीकृति के बाद उच्च पद की मांग नीति के विपरीत है

सुप्रीम कोर्ट का निर्णायक दृष्टिकोण

सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए स्पष्ट शब्दों में कहा—

“जो व्यक्ति अनुकंपा आधार पर किसी पद को स्वीकार करता है, वह बाद में यह नहीं कह सकता कि उसे उससे ऊँचे पद पर नियुक्त किया जाना चाहिए था।”

न्यायालय की प्रमुख कानूनी व्याख्याएं

1. अनुकंपा नियुक्ति कोई अधिकार नहीं

कोर्ट ने दोहराया कि अनुकंपा नियुक्ति कोई वैधानिक या मौलिक अधिकार नहीं, बल्कि एक नीतिगत रियायत है।

2. स्वीकृति के बाद चुनौती अस्वीकार्य

जब कोई व्यक्ति किसी पद को जानबूझकर और बिना आपत्ति स्वीकार कर लेता है, तो बाद में उस पद को चुनौती देना कानूनी रूप से असंगत है।

3. उच्च पद का दावा नीति की आत्मा के विरुद्ध

यदि उच्च पद का दावा स्वीकार किया जाए, तो यह अनुकंपा नियुक्ति को प्रतिस्पर्धी भर्ती का विकल्प बना देगा, जो असंवैधानिक है।


पूर्ववर्ती न्यायिक दृष्टांत

सुप्रीम कोर्ट ने कई पुराने फैसलों का हवाला देते हुए अपनी स्थिति को मजबूत किया, जैसे—

  • Umesh Kumar Nagpal v. State of Haryana
  • State of Himachal Pradesh v. Shashi Kumar
  • Canara Bank v. M. Mahesh Kumar
  • State of Karnataka v. Umadevi

इन मामलों में यह सिद्धांत स्पष्ट किया गया कि अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य केवल आर्थिक संकट से राहत है, न कि सेवा लाभ प्रदान करना।


सेवा कानून का सिद्धांत: Acquiescence और Estoppel

न्यायालय ने यह भी कहा कि—

  • पद स्वीकार करना Acquiescence (स्वीकृति) का संकेत है
  • स्वीकृति के बाद व्यक्ति Estoppel (प्रतिबंध) के सिद्धांत के तहत चुनौती नहीं दे सकता
  • सेवा शर्तें स्वीकार करना एक प्रकार का संविदात्मक समझौता है

नीतिगत और प्रशासनिक दृष्टिकोण

यदि ऐसे दावे स्वीकार किए जाएं—

  • प्रशासन पर अनावश्यक दबाव पड़ेगा
  • हर अनुकंपा नियुक्ति विवाद का कारण बनेगी
  • सामान्य भर्ती प्रक्रिया की विश्वसनीयता कमजोर होगी
  • यह व्यवस्था धीरे-धीरे वंशानुगत सेवा का रूप ले लेगी

सुप्रीम कोर्ट ने इस खतरे को गंभीरता से रेखांकित किया।


मानवीय सहानुभूति बनाम संवैधानिक अनुशासन

न्यायालय ने यह भी माना कि—

  • अनुकंपा नियुक्ति मानवीय आधार पर दी जाती है
  • लेकिन करुणा संविधान और कानून से ऊपर नहीं हो सकती
  • सहानुभूति के नाम पर समान अवसर के अधिकार को कमजोर नहीं किया जा सकता

व्यावहारिक प्रभाव और भविष्य की दिशा

1. कानूनी स्पष्टता

अब यह स्पष्ट हो गया है कि उच्च पद का दावा कानूनन अस्वीकार्य है।

2. प्रशासनिक स्थिरता

विभागों को अनावश्यक मुकदमों से राहत मिलेगी।

3. निष्पक्षता की रक्षा

सामान्य भर्ती प्रक्रिया की पवित्रता बनी रहेगी।

4. नीति-निर्माण में मार्गदर्शन

सरकारें अब और स्पष्ट नीतियाँ बना सकेंगी।


आलोचनात्मक दृष्टि

कुछ लोगों का मानना है कि—

  • अत्यधिक योग्य उम्मीदवारों के लिए अलग व्यवस्था होनी चाहिए
  • नीति में कुछ लचीलापन संभव है

लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह नीति निर्धारण का विषय है, न्यायालय का नहीं।


निष्कर्ष

      इस विस्तृत निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर यह दोहराया है कि अनुकंपा नियुक्ति कोई विशेषाधिकार नहीं, बल्कि केवल संकट से उबरने का साधन है। जो व्यक्ति इसे स्वीकार करता है, वह बाद में उच्च पद की मांग नहीं कर सकता।

    यह फैसला संवैधानिक समानता, प्रशासनिक अनुशासन और सार्वजनिक सेवा की निष्पक्षता को मजबूत करता है और यह सुनिश्चित करता है कि अनुकंपा नियुक्ति अपनी मूल मानवीय भावना से भटके नहीं।

      यह निर्णय सेवा कानून के क्षेत्र में एक मजबूत और स्थायी नजीर के रूप में याद रखा जाएगा।