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“अनधिकृत निर्माण पर रिट याचिका केवल तब ही मान्य जब प्रकाश, वायु या आवागमन का अधिकार प्रभावित हो:

“अनधिकृत निर्माण पर रिट याचिका केवल तब ही मान्य जब प्रकाश, वायु या आवागमन का अधिकार प्रभावित हो: दिल्ली हाईकोर्ट का अहम फैसला — Tauqir Alam v. Ashwani Kumar & Ors., 2025:DHC:8401”


प्रस्तावना

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में दिए एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि किसी भी अनधिकृत निर्माण (unauthorized construction) के खिलाफ दायर की गई रिट याचिका (Writ Petition) तभी स्वीकार की जा सकती है जब याचिकाकर्ता यह साबित कर सके कि उसके मौलिक अधिकार, जैसे कि प्रकाश, वायु या आवागमन का अधिकार, वास्तव में प्रभावित हुए हैं।
यह फैसला Tauqir Alam v. Ashwani Kumar & Ors. में माननीय न्यायमूर्ति मिणी पुष्कर्णा (Justice Mini Pushkarna) ने दिया, जिसमें याचिकाकर्ता की याचिका को निराधार और व्यक्तिगत हित से प्रेरित (frivolous and motivated) बताते हुए ₹2,50,000 का जुर्माना (cost) लगाया गया।


मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता तौकीर आलम ने दिल्ली हाईकोर्ट में एक सार्वजनिक हित याचिका (Public Interest Litigation – PIL) दायर की थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि प्रतिवादी अश्विनी कुमार और अन्य लोगों ने संबंधित क्षेत्र में अनधिकृत निर्माण (unauthorized construction) किया है, जिससे क्षेत्र की संरचना और नागरिकों के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
हालांकि, यह पाया गया कि याचिकाकर्ता का निवास उस निर्माण स्थल से लगभग 2.5 किलोमीटर दूर था। अदालत ने यह प्रश्न उठाया कि जब याचिकाकर्ता का स्वयं का कोई प्रत्यक्ष नुकसान नहीं हुआ है, तो वह इस विषय में कैसे याचिका दायर कर सकता है?


अदालत का विश्लेषण

न्यायमूर्ति मिणी पुष्कर्णा ने अपने निर्णय में कहा कि विधानिक रूप से और संवैधानिक दृष्टिकोण से, केवल वही व्यक्ति रिट याचिका दायर कर सकता है, जिसके कानूनी या मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ हो।
यदि याचिकाकर्ता को किसी प्रकार का प्रत्यक्ष या वास्तविक नुकसान नहीं हुआ है, तो उसकी याचिका लोकस स्टैंडी (Locus Standi) के अभाव में अस्वीकार्य (not maintainable) होगी।

अदालत ने यह भी कहा कि यदि किसी व्यक्ति का प्रकाश, वायु, या आवागमन का अधिकार (Right to Light, Air, and Access) किसी अनधिकृत निर्माण से प्रभावित होता है, तो वह रिट याचिका दायर कर सकता है, क्योंकि ये अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 (Article 21) के अंतर्गत जीवन के अधिकार का अभिन्न हिस्सा हैं।


मुख्य टिप्पणियाँ (Key Observations)

  1. सीमित दायरे में रिट याचिका:
    अदालत ने कहा कि अनधिकृत निर्माणों के विरुद्ध हर कोई रिट याचिका नहीं दायर कर सकता। यह अधिकार केवल उसी व्यक्ति को है, जिसके मौलिक अधिकारों पर वास्तविक असर पड़ा हो।
  2. लोकस स्टैंडी का महत्व:
    चूंकि याचिकाकर्ता तौकीर आलम संबंधित क्षेत्र से 2.5 किलोमीटर दूर रहता था, अतः यह माना गया कि उसे उस निर्माण से कोई प्रत्यक्ष नुकसान नहीं हुआ।
    अतः उसकी याचिका लोगस स्टैंडी के अभाव में अस्वीकार कर दी गई।
  3. जनहित याचिका का दुरुपयोग:
    अदालत ने इस बात पर गंभीर चिंता व्यक्त की कि आजकल कई व्यक्ति जनहित याचिका (PIL) के नाम पर अपने निजी या राजनीतिक हितों को साधने के लिए न्यायालयों का दुरुपयोग कर रहे हैं।
    न्यायमूर्ति ने कहा कि “जनहित याचिका का उद्देश्य समाज के वंचित वर्गों के अधिकारों की रक्षा करना है, न कि व्यक्तिगत वैमनस्य या लोकप्रियता प्राप्त करने का साधन बनना।”
  4. कठोर लागत (Costs Imposed):
    अदालत ने याचिकाकर्ता पर ₹2,50,000 का जुर्माना लगाते हुए कहा कि इस प्रकार की फर्जी और निराधार याचिकाएं अदालत के मूल्यवान समय की बर्बादी हैं और इन्हें निरोधात्मक रूप से हतोत्साहित (discouraged) किया जाना चाहिए।

संविधानिक और विधिक दृष्टिकोण

1. अनुच्छेद 21 – जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार

अदालत ने कहा कि प्रकाश, वायु और आवागमन का अधिकार जीवन के अधिकार (Right to Life) के तहत संरक्षित है। यदि किसी अनधिकृत निर्माण से ये अधिकार प्रभावित होते हैं, तो व्यक्ति रिट याचिका दायर कर सकता है।
लेकिन जहां कोई प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं है, वहां यह अधिकार नहीं बनता।

2. जनहित याचिका (Public Interest Litigation) का वास्तविक उद्देश्य

सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाईकोर्टों ने बार-बार कहा है कि PIL का उद्देश्य गरीबों, असहायों और पीड़ितों के अधिकारों की रक्षा करना है, न कि राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता या व्यक्तिगत प्रचार का साधन।

3. लोकस स्टैंडी (Locus Standi) की अवधारणा

लोकस स्टैंडी का अर्थ है — “मामले को अदालत में उठाने का वैधानिक अधिकार।”
केवल वही व्यक्ति अदालत में जा सकता है, जो यह साबित करे कि उसके अधिकारों का उल्लंघन हुआ है।
Tauqir Alam केस में यह स्थापित किया गया कि यदि कोई व्यक्ति प्रभावित क्षेत्र से काफी दूर है, तो उसे याचिका दायर करने का कोई औचित्य नहीं।


महत्वपूर्ण न्यायिक उद्धरण

अदालत ने अपने निर्णय में Supreme Court के कई निर्णयों का संदर्भ दिया, जिनमें कहा गया है कि न्यायालयों का समय अनावश्यक और निराधार याचिकाओं में बर्बाद नहीं होना चाहिए।
साथ ही, अदालत ने यह भी दोहराया कि यदि कोई वास्तविक नागरिक अधिकार या मौलिक अधिकार प्रभावित होता है, तो न्यायालय अवश्य हस्तक्षेप करेगा।


व्यावहारिक प्रभाव (Practical Impact)

यह निर्णय कई महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है:

  1. झूठी PIL पर नियंत्रण:
    अब कोई भी व्यक्ति केवल राजनीतिक या निजी दुश्मनी के आधार पर “अनधिकृत निर्माण” का मुद्दा उठाकर अदालत का समय बर्बाद नहीं कर सकेगा।
  2. वास्तविक पीड़ितों को राहत:
    केवल वही व्यक्ति याचिका दायर कर सकेंगे, जिनके जीवन, प्रकाश, वायु या आवागमन के अधिकारों पर वास्तविक प्रभाव पड़ा हो।
  3. न्यायिक प्रक्रिया की गंभीरता बनी रहेगी:
    अदालतों में केवल गंभीर और तथ्यपरक मामलों की सुनवाई होगी, जिससे न्यायिक प्रणाली पर विश्वास और सशक्त होगा।

न्यायालय की टिप्पणी

न्यायमूर्ति मिणी पुष्कर्णा ने सख्त शब्दों में कहा —

“अदालतों को व्यक्तिगत लाभ या लोकप्रियता प्राप्त करने के साधन के रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता। यदि हर व्यक्ति यह कहे कि उसे समाज के किसी मुद्दे से परेशानी है और वह रिट याचिका दायर कर दे, तो न्यायिक प्रणाली का दुरुपयोग होगा।”


निष्कर्ष

Tauqir Alam v. Ashwani Kumar & Ors. का यह फैसला जनहित याचिकाओं के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मिसाल (landmark precedent) बनकर उभरा है।
यह फैसला न्यायपालिका की उस प्रतिबद्धता को पुनः रेखांकित करता है, जिसके तहत अदालतें केवल उन्हीं मामलों में हस्तक्षेप करेंगी जहाँ वास्तविक मानवाधिकार हनन या मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ हो।

यह निर्णय न केवल जनहित याचिकाओं की मर्यादा को पुनर्स्थापित करता है, बल्कि यह भी संदेश देता है कि कानून का उपयोग न्याय के लिए होना चाहिए, न कि व्यक्तिगत प्रतिशोध या प्रसिद्धि के लिए।