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अग्रिम जमानत पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त नसीहत: “सबसे पहले सेशन कोर्ट जाएं” — हाई कोर्ट में सीधे प्री-अरेस्ट बेल देना अस्वीकार्य 

अग्रिम जमानत पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त नसीहत: “सबसे पहले सेशन कोर्ट जाएं” — हाई कोर्ट में सीधे प्री-अरेस्ट बेल देना अस्वीकार्य 

        भारत के आपराधिक न्याय तंत्र में अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail) एक महत्वपूर्ण कानूनी सुरक्षा है, जिसका उद्देश्य किसी व्यक्ति को संभावित, मनमानी या दुर्भावनापूर्ण गिरफ्तारी के जोखिम से बचाना है। भारतीय समाज में आपराधिक मुकदमों की बढ़ती प्रवृत्ति, व्यक्तिगत विद्वेष, पारिवारिक व वाणिज्यिक विवादों में चुनौतियों के बीच अग्रिम जमानत आम लोगों के लिए एक अत्यंत उपयोगी उपाय बन चुकी है। परंतु यह प्रश्न कि – “अग्रिम जमानत के लिए आरोपी को सबसे पहले किस अदालत में जाना चाहिए?” — वर्षों से कानूनी बहस का विषय रहा है।

        इसी मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने हाल में एक बेहद महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए देशभर के हाई कोर्टों को कड़ा संदेश दिया है। अदालत ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि कोई भी व्यक्ति, जो गिरफ्तारी से राहत चाहता है, उसे सबसे पहले सेशन कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाना चाहिए। हाई कोर्ट को सीधे प्री-अरेस्ट बेल देना या FIR रद्द करने से इंकार करते हुए गिरफ्तारी पर रोक लगाना न्यायिक व्यवस्था के लिए हानिकारक है।

        यह निर्णय उत्तर प्रदेश सरकार बनाम संजय कुमार गुप्ता मामले की सुनवाई के दौरान आया, जिसमें इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक विवादित आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने गहरी आपत्ति जताई।


पृष्ठभूमि: इलाहाबाद हाई कोर्ट का आदेश क्यों विवादित हुआ?

        इस मामले में आरोपी ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में FIR रद्द करने हेतु याचिका दायर की थी। हाई कोर्ट ने माना कि FIR को रद्द करने लायक कोई आधार नहीं है, अर्थात् FIR prima facie वैध थी।

परंतु आश्चर्यजनक रूप से हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा—

“चार्जशीट दाखिल होने तक आरोपी की गिरफ्तारी नहीं की जाएगी।”

        यह आदेश न तो जमानत आवेदन में दिया गया था और न ही आरोपी ने अग्रिम जमानत की याचिका दायर की थी। यह राहत FIR क्वैशिंग याचिका में दी गई, जो कि त्रुटिपूर्ण माना गया।

सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा —

“यह आदेश जांच प्रक्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है और न्यायिक शक्ति का अनुचित प्रयोग है।”

क्योंकि:

 FIR रद्द न करने का मतलब है कि अपराध का प्रारंभिक आधार मौजूद है
इसलिए गिरफ्तारी पर रोक देना तार्किक एवं कानूनी रूप से विरोधाभासी है


सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी: “हाई कोर्ट अनुचित संरक्षण न दे”

     सुप्रीम कोर्ट की दो-न्यायाधीशीय पीठ (जस्टिस विक्रम नाथ व जस्टिस संदीप मेहता) ने कहा—

“यह अस्वीकार्य है कि हाई कोर्ट FIR रद्द करने से इंकार करे, परन्तु चार्जशीट दाखिल होने तक गिरफ्तारी से सुरक्षा प्रदान कर दे। ऐसा आदेश कानून के विपरीत है और जांच में अवांछित हस्तक्षेप करता है।”

पीठ ने आगे कहा—

 FIR रद्द करने की याचिका में गिरफ्तारी पर रोक लगाने की कोई आवश्यकता नहीं
अग्रिम जमानत हेतु आरोपी को धारा 438 CrPC के तहत सबसे पहले सेशन कोर्ट जाना चाहिए
हाई कोर्ट के ऐसे आदेश पुलिस के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप करते हैं
इससे न्यायिक अनुशासन और जांच प्रक्रिया दोनों प्रभावित होती हैं


‘नीहारिका इंफ्रास्ट्रक्चर बनाम महाराष्ट्र राज्य’—महत्वपूर्ण मिसाल

      सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में 2021 के प्रसिद्ध निर्णय Niharika Infrastructure v. State of Maharashtra का उल्लेख किया। उस मामले में तीन-न्यायाधीशीय पीठ ने कहा था—

“यदि हाई कोर्ट किसी FIR को रद्द नहीं करता, तो वह गिरफ्तारी पर रोक नहीं लगा सकता। FIR वैध है तो जांच स्वतंत्र व निर्बाध रूप से चलनी चाहिए।”

मुख्य तर्क:

 FIR वैध है → अपराध का prima facie आधार मौजूद
गिरफ्तारी पर रोक → जांच को बाधित करती है
रिट पिटीशन में बेल देने का कोई औचित्य नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश को इसी स्थापित सिद्धांत के विरुद्ध बताते हुए रद्द कर दिया।


सेशन कोर्ट को प्रथम अवसर क्यों? सुप्रीम कोर्ट का तर्क

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा—

“अग्रिम जमानत के लिए आरोपी को सबसे पहले सेशन कोर्ट जाना जरूरी है।”

इससे दो महत्वपूर्ण सिद्धांत स्पष्ट होते हैं:

 न्यायिक पदक्रम (Hierarchy of Courts) का सम्मान

कानून में निर्धारित क्रम का पालन आवश्यक है। यदि आरोपी सीधे हाई कोर्ट चला जाएगा, तो सेशन कोर्ट की भूमिका कमजोर हो जाती है।

 हाई कोर्ट का दायरा सीमित

हाई कोर्ट एक संवैधानिक न्यायालय है जिसका कार्य मूल रूप से अधिकारों के उल्लंघन एवं प्रक्रिया संबंधी त्रुटियों को देखना है।
अग्रिम जमानत देना—मूल रूप से सेशन कोर्ट का क्षेत्र है।


FIR रद्द करने और अग्रिम जमानत—दो अलग प्रक्रियाएँ

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि FIR रद्द करने और अग्रिम जमानत दो अलग और स्वतंत्र उपाय हैं:


1. FIR रद्द करना (Quashing of FIR)

यह तब किया जाता है जब:

➡ FIR में अपराध नहीं बनता
➡ FIR दुर्भावनापूर्ण है
➡ FIR झूठी या मनगढ़ंत है

इसमें अदालत केवल यह देखती है—

“क्या FIR में अपराध की बुनियादी सामग्री मौजूद है?”

जमानत यहाँ मुख्य मुद्दा नहीं होता।


2. अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail)

यह तब दी जाती है जब:

➡ आरोपी को गिरफ्तारी का डर है
➡ आरोपी जांच में सहयोग करने को तैयार है
➡ गिरफ्तारी का उद्देश्य उत्पीड़न हो सकता है

दोनों उपायों को मिलाना कानूनी रूप से गलत है, और सुप्रीम कोर्ट ने अब इस पर कठोर रुख अपनाया है।


हाई कोर्ट का आदेश क्यों रद्द किया गया? सुप्रीम कोर्ट की प्रमुख वजहें

सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए कई तर्क दिए:

1. कोई ठोस कारण नहीं बताया गया

हाई कोर्ट ने यह नहीं बताया कि गिरफ्तारी पर रोक क्यों आवश्यक थी।

2. नीहारिका फैसले के विरुद्ध

यह आदेश 2021 की तीन-न्यायाधीशीय पीठ के निर्णय के विपरीत था।

3. जांच में अनावश्यक हस्तक्षेप

गिरफ्तारी पर रोक से पुलिस कई बार महत्वपूर्ण साक्ष्य नहीं जुटा पाती।

4. अधिकार क्षेत्र का दुरुपयोग

FIR वैध मानते हुए भी आरोपी को सुरक्षा देना न्यायिक तर्क से परे था।


सुप्रीम कोर्ट का अंतिम आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण निर्देश दिए:

 हाई कोर्ट का आदेश रद्द

गिरफ्तारी पर रोक का आदेश अवैध घोषित।

 केस हाई कोर्ट को नई सुनवाई हेतु वापस

अब हाई कोर्ट FIR रद्द करने की याचिका पर मेरिट के आधार पर पुनः सुनवाई करेगा।

 आरोपी को अंतरिम सुरक्षा

सुनवाई पूरी होने तक अंतरिम सुरक्षा बनी रहेगी — ताकि न्यायिक संतुलन कायम रहे।

 4 महीने में फैसला

हाई कोर्ट को निर्देश—
7 जनवरी से चार माह के भीतर सुनवाई पूर्ण करें।


इस निर्णय का व्यापक प्रभाव: देशभर की न्यायिक प्रक्रिया में बड़ा बदलाव

सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के दूरगामी प्रभाव होंगे—

सीधे हाई कोर्ट जाने का चलन कम होगा

अब हर कोई पहले सेशन कोर्ट जाएगा।

FIR रद्द करने वाली याचिकाओं में बेल नहीं मिलेगी

हाई कोर्टों द्वारा गिरफ्तारी पर रोक का दुरुपयोग समाप्त होगा।

जांच एजेंसियों की स्वतंत्रता बढ़ेगी

पुलिस स्वतंत्र रूप से जांच कर सकेगी।

न्यायिक अनुशासन और स्पष्टता

अधिकार क्षेत्र का सम्मान बढ़ेगा और आदेश अधिक सुसंगत होंगे।


निष्कर्ष: सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट संदेश—“कानूनी मार्ग से चलें, पहले सेशन कोर्ट जाएं”

        सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय भारत में अग्रिम जमानत की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने वाला, हाई कोर्टों की सीमाओं को स्पष्ट करने वाला और जांच एजेंसियों को अनावश्यक हस्तक्षेप से मुक्त करने वाला निर्णय है।

इस आदेश का मूल संदेश है—

 अग्रिम जमानत एक गंभीर राहत है
लेकिन उसका दुरुपयोग रोकना भी आवश्यक है
FIR रद्द करने की याचिका में गिरफ्तारी पर रोक देना पूर्णतः अवैध है
हाई कोर्ट को स्थापित न्यायिक सिद्धांतों का पालन करना होगा

       यह फैसला न्यायिक प्रक्रिया की शुचिता, अनुशासन और पारदर्शिता को मजबूती देता है और सेशन कोर्ट व हाई कोर्ट की भूमिकाओं को स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है।