“अगर कोई व्यक्ति अपना नाम बताने से मना करे तो पुलिस कर सकती है गिरफ़्तार – जानिए कानून का सच”

शीर्षक:
“अगर कोई व्यक्ति अपना नाम बताने से मना करे तो पुलिस कर सकती है गिरफ़्तार – जानिए कानून का सच”


परिचय:

भारत में आम धारणा यह है कि जब तक कोई व्यक्ति कोई गंभीर अपराध न करे, तब तक पुलिस उसे बिना कारण गिरफ़्तार नहीं कर सकती। यह धारणा काफी हद तक सही है, लेकिन कुछ कानूनी परिस्थितियाँ ऐसी हैं जहाँ सिर्फ नाम और पता न बताने पर भी गिरफ्तारी की जा सकती है। भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) इस संबंध में स्पष्ट प्रावधान करती है, जो पुलिस को अधिकार देता है कि वह किसी व्यक्ति को नाम-पता न बताने पर हिरासत में ले सकती है।


संबंधित कानूनी प्रावधान: CrPC की धारा 42 (Section 42 of the Code of Criminal Procedure)

क्या कहती है धारा 42 CrPC?

यदि कोई व्यक्ति:

  • ऐसा कोई अपराध करता है जो संज्ञेय (Cognizable) नहीं है, और
  • पुलिस उससे उसका नाम और पता पूछती है, लेकिन
  • वह व्यक्ति या तो अपना नाम बताने से इनकार करता है, या
  • झूठा नाम/पता बताता है,

तो पुलिस को यह अधिकार है कि वह उस व्यक्ति को गिरफ़्तार कर सकती है।


गिरफ़्तारी की प्रक्रिया:

  1. पुलिस अधिकारी पहले व्यक्ति से उसका नाम और पता पूछता है।
  2. यदि वह व्यक्ति सही जानकारी नहीं देता या इनकार करता है, तो उसे पुलिस स्टेशन लाया जा सकता है
  3. वहां उसे तब तक हिरासत में रखा जा सकता है, जब तक कि वह अपना सही नाम और पता न बता दे।
  4. यदि नाम-पता सही साबित हो जाता है, तो उसे बेल बॉन्ड पर रिहा किया जा सकता है
  5. अगर नाम सही नहीं होता या पहचान स्पष्ट नहीं होती, तो उसे मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाता है।

इस नियम का उद्देश्य क्या है?

  • कानून व्यवस्था बनाए रखना
    व्यक्ति की पहचान पता करना आवश्यक है ताकि वह पुलिस कार्यवाही से बचकर न भाग सके।
  • सामाजिक सुरक्षा
    कुछ असामाजिक तत्व जान-बूझकर अपनी पहचान छिपाकर अव्यवस्था फैलाते हैं।
  • आपराधिक जांच में सहायता
    पुलिस को व्यक्ति का रिकॉर्ड खंगालने के लिए उसकी सही पहचान जरूरी होती है।

महत्वपूर्ण बिंदु:

  • यह प्रावधान सिर्फ गैर-संज्ञेय अपराधों (Non-cognizable offences) के लिए लागू होता है।
  • संज्ञेय अपराध (जैसे हत्या, डकैती) में तो पुलिस को पहले से ही गिरफ्तारी का अधिकार होता है।
  • इस धारा का प्रयोग पुलिस द्वारा मनमानी या उत्पीड़न के लिए नहीं किया जाना चाहिए।
    कानून का पालन नागरिक और पुलिस – दोनों को करना होता है।

न्यायपालिका का दृष्टिकोण:

भारतीय न्यायालयों ने यह दोहराया है कि:

“पुलिस की शक्तियों का प्रयोग न्यायसंगत, विवेकपूर्ण और निष्पक्ष तरीके से होना चाहिए। नाम और पता न बताना गिरफ़्तारी का कारण बन सकता है, लेकिन इसके पीछे दुरुपयोग की नीयत नहीं होनी चाहिए।”


निष्कर्ष:

सिर्फ नाम और पता न बताना कोई “छोटा” मामला नहीं है, यह कानून की नजर में एक संभावित अवरोध है जो पुलिस कार्यवाही को बाधित करता है। इसलिए अगर कोई व्यक्ति सड़क पर, किसी सार्वजनिक स्थान या जांच के दौरान पुलिस को अपनी पहचान बताने से इनकार करता है, तो वह गिरफ़्तारी के दायरे में आ सकता है।

हालांकि, यह भी उतना ही ज़रूरी है कि पुलिस इस अधिकार का दुरुपयोग न करे, और हर स्थिति में नागरिकों के मौलिक अधिकारों का सम्मान बनाए रखे।


संदेश:
“कानून की नजर में पहचान छिपाना भी अपराध बन सकता है – अगर पुलिस पूछे, तो नाम बताइए, सम्मान पाइए!”