अंतरिक्ष संचार और उपग्रह विनियमन (Space Communication & Satellite Regulation) 

अंतरिक्ष संचार और उपग्रह विनियमन (Space Communication & Satellite Regulation) 


प्रस्तावना:

अंतरिक्ष संचार और उपग्रह विनियमन आधुनिक विज्ञान एवं तकनीक का अत्यंत महत्वपूर्ण क्षेत्र है। उपग्रहों के माध्यम से संचार, मौसम पूर्वानुमान, रक्षा, नेविगेशन, और दूरदर्शन जैसे अनेक कार्यों को अंजाम दिया जाता है। जैसे-जैसे देशों की अंतरिक्ष गतिविधियाँ बढ़ रही हैं, वैसे-वैसे अंतरिक्ष संसाधनों, ऑर्बिटल स्लॉट्स और रेडियो-फ्रीक्वेंसी के न्यायसंगत उपयोग के लिए एक मजबूत कानूनी ढांचे की आवश्यकता भी उत्पन्न हुई है। इसी आवश्यकता की पूर्ति अंतरिक्ष संचार एवं उपग्रह विनियमन द्वारा की जाती है।


1. अंतरिक्ष संचार का अर्थ:

अंतरिक्ष संचार (Space Communication) का तात्पर्य उन तकनीकी प्रणालियों से है जिनमें उपग्रहों की सहायता से पृथ्वी पर स्थित दो या दो से अधिक स्थानों के बीच सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जाता है। इसके अंतर्गत टेलीविजन, रेडियो प्रसारण, इंटरनेट सेवा, सैन्य संचार, वायुमार्ग नियंत्रण आदि शामिल हैं।


2. उपग्रह विनियमन का उद्देश्य:

उपग्रह संचार विनियमन का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि:

  • उपग्रहों का उपयोग शांतिपूर्ण कार्यों में हो।
  • ऑर्बिटल स्लॉट्स और स्पेक्ट्रम का न्यायोचित और टकराव-रहित आवंटन हो।
  • किसी देश या कंपनी द्वारा स्पेक्ट्रम का एकाधिकार न हो।
  • अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय हितों की रक्षा की जा सके।

3. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विनियमन:

(i) संयुक्त राष्ट्र का ‘Outer Space Treaty, 1967’:

यह संधि अंतरिक्ष उपयोग के लिए सबसे प्रमुख दस्तावेज है। इसके प्रमुख प्रावधान हैं:

  • अंतरिक्ष सभी देशों के लिए साझा विरासत है।
  • कोई भी देश किसी ग्रह या उपग्रह पर संप्रभुता का दावा नहीं कर सकता।
  • अंतरिक्ष का उपयोग केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए किया जाएगा।

(ii) ITU (International Telecommunication Union):

ITU, संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी है जो वैश्विक स्तर पर रेडियो फ्रीक्वेंसी स्पेक्ट्रम और ऑर्बिटल स्लॉट का आवंटन करती है। यह सुनिश्चित करती है कि कोई दो उपग्रह एक ही फ्रीक्वेंसी पर टकराव न करें।


4. भारत में उपग्रह विनियमन:

भारत में भी उपग्रहों के संचालन और संचार के लिए कुछ नीतियाँ और संस्थान कार्यरत हैं:

(i) ISRO (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन):

भारत की अंतरिक्ष एजेंसी, जो उपग्रहों के प्रक्षेपण, नियंत्रण, और उनके उपयोग को संचालित करती है।

(ii) IN-SPACe (Indian National Space Promotion and Authorization Center):

वर्ष 2020 में भारत सरकार द्वारा निजी क्षेत्र को अंतरिक्ष क्षेत्र में भागीदारी हेतु प्रोत्साहित करने के लिए इस संस्था की स्थापना की गई। यह निजी कंपनियों को उपग्रहों के प्रक्षेपण और संचालन की अनुमति देती है।

(iii) भारत की दूरसंचार नीति:

  • भारत सरकार ने कई उपग्रहों के लिए ट्रांसपोंडर की उपलब्धता सुनिश्चित की है ताकि टेलीविजन प्रसारण, इंटरनेट सेवा और रक्षा सेवाओं को सुचारू रूप से संचालित किया जा सके।
  • “भारतीय अंतरिक्ष संचार नीति, 2018” के अंतर्गत निजी कंपनियों को उपग्रह संचार सेवाओं के लिए अनुमति देने की प्रक्रिया को सरल किया गया।

5. प्रमुख चुनौतियाँ:

  • स्पेक्ट्रम की सीमा: रेडियो फ्रीक्वेंसी सीमित है और सभी देशों में इसकी मांग बहुत अधिक है।
  • ऑर्बिटल स्लॉट्स की भीड़: Geostationary Orbit में सीमित स्थान होते हैं, जो तेजी से भरते जा रहे हैं।
  • स्पेस डेब्रिस: परित्यक्त उपग्रह, रॉकेट के अवशेष आदि के कारण टकराव की आशंका बढ़ती है।
  • निजी कंपनियों की भागीदारी: विनियमन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती है।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा: उपग्रह संचार का दुरुपयोग आतंकवाद, साइबर हमलों और जासूसी के लिए भी हो सकता है।

6. समाधान और सुधार के उपाय:

  • ITU की भूमिकाओं को और अधिक प्रभावशाली बनाना।
  • अंतरिक्ष संधियों में अद्यतन और सख्ती लाना।
  • भारत में अंतरिक्ष विधि (Space Law) को कोडिफाई करना।
  • निजी कंपनियों के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश और लाइसेंस प्रक्रिया।
  • स्पेस डेब्रिस को कम करने के लिए ‘क्लीन स्पेस मिशन’ जैसे कार्यक्रम शुरू करना।

निष्कर्ष:

अंतरिक्ष संचार और उपग्रह विनियमन वैश्विक सहयोग, तकनीकी संतुलन, और कानूनी प्रतिबद्धता का एक समन्वित क्षेत्र है। जैसे-जैसे उपग्रहों का उपयोग बढ़ेगा, वैसे-वैसे एक ठोस, पारदर्शी और समान कानून प्रणाली की आवश्यकता भी बढ़ेगी। भारत को न केवल अपने भीतर एक मजबूत अंतरिक्ष कानून की ओर बढ़ना चाहिए, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए ताकि अंतरिक्ष का उपयोग सभी के लिए सुरक्षित, न्यायसंगत और सतत बना रहे।