अंतरिक्ष में संचार और स्पेक्ट्रम प्रबंधन (Space Communication and Spectrum Management)

अंतरिक्ष में संचार और स्पेक्ट्रम प्रबंधन (Space Communication and Spectrum Management) 


🔷 प्रस्तावना:

अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का सबसे बड़ा लाभ मानव जाति को संचार के क्षेत्र में मिला है। संचार उपग्रहों के माध्यम से दुनिया के किसी भी कोने से पल भर में जानकारी का आदान-प्रदान संभव हो गया है। लेकिन इस तीव्र और जटिल संचार व्यवस्था को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए स्पेक्ट्रम (रेडियो तरंगों की सीमित संपत्ति) का वैज्ञानिक और कानूनी प्रबंधन अनिवार्य हो गया है।

स्पेक्ट्रम प्रबंधन का अर्थ है – रेडियो फ्रीक्वेंसी बैंड्स का सुव्यवस्थित आवंटन, नियमन और निगरानी ताकि उपग्रह संचार में कोई टकराव न हो और सभी सेवाओं को निष्पक्ष रूप से आवंटन मिल सके।


🔷 अंतरिक्ष में संचार की भूमिका:

  1. टेलीविजन और रेडियो प्रसारण
  2. सेटेलाइट इंटरनेट (जैसे Starlink)
  3. GPS और नेविगेशन सेवाएँ
  4. सैन्य और रणनीतिक संचार
  5. आपदा प्रबंधन एवं खोज-बचाव संचार
  6. दूरस्थ क्षेत्रों में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएँ

🔷 स्पेक्ट्रम क्या है?

स्पेक्ट्रम वह विद्युतचुंबकीय आवृत्तियों (Radio Frequencies) की श्रृंखला होती है जिसका उपयोग रेडियो, टेलीविजन, मोबाइल, और उपग्रह संचार में किया जाता है।

उदाहरण के लिए:

  • L Band: 1–2 GHz
  • Ku Band: 12–18 GHz
  • Ka Band: 26.5–40 GHz

यह एक सीमित संसाधन है, अतः सभी देशों और संस्थाओं को इसका न्यायपूर्ण और टकराव-रहित उपयोग सुनिश्चित करना आवश्यक होता है।


🔷 स्पेक्ट्रम प्रबंधन की आवश्यकता क्यों?

  1. स्पेक्ट्रम की सीमितता
  2. टकराव से बचाव (Interference Prevention)
  3. राष्ट्रीय सुरक्षा और गोपनीयता की रक्षा
  4. आर्थिक मूल्य (स्पेक्ट्रम की नीलामी से सरकार को राजस्व)
  5. निजी और सार्वजनिक संस्थाओं के बीच संतुलन

🔷 अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्पेक्ट्रम प्रबंधन:

1. ITU (International Telecommunication Union):

  • संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी जो वैश्विक स्तर पर रेडियो स्पेक्ट्रम और ऑर्बिटल स्लॉट का नियमन करती है।
  • रेडियोरेगुलेशन (Radio Regulations) दस्तावेज़ के माध्यम से स्पेक्ट्रम आवंटन के नियम तय किए जाते हैं।
  • प्रत्येक देश ITU में पंजीकरण कराकर उपग्रहों के लिए स्पेक्ट्रम और कक्षा स्लॉट सुरक्षित करता है।

2. World Radiocommunication Conference (WRC):

  • हर चार वर्षों में होती है और वैश्विक स्पेक्ट्रम उपयोग की समीक्षा करती है।
  • नई तकनीकों जैसे 5G, उपग्रह ब्रॉडबैंड के लिए बैंड आवंटन तय करती है।

🔷 भारत में स्पेक्ट्रम और उपग्रह संचार का प्रबंधन:

1. ISRO (Indian Space Research Organisation):

  • भारत में उपग्रह लॉन्चिंग और संचालन की प्रमुख संस्था।

2. Wireless Planning and Coordination Wing (WPC), DoT:

  • भारत सरकार का विभाग जो स्पेक्ट्रम का राष्ट्रीय स्तर पर आवंटन और लाइसेंसिंग करता है।

3. IN-SPACe (Indian National Space Promotion and Authorization Center):

  • निजी कंपनियों को उपग्रह सेवाएँ प्रदान करने की अनुमति देता है और उनके लिए स्पेक्ट्रम और कक्षा आवंटन की प्रक्रिया में मदद करता है।

4. भारतीय स्पेस कम्युनिकेशन नीति, 2018:

  • इस नीति के तहत निजी और सार्वजनिक उपग्रह संचार सेवाओं के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए गए हैं।

🔷 स्पेक्ट्रम प्रबंधन से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ:

  1. स्पेक्ट्रम की भीड़ (Congestion):
    GEO और LEO कक्षाओं में उपग्रहों की संख्या बहुत अधिक हो गई है।
  2. स्पेक्ट्रम झगड़े और टकराव:
    दो देशों के उपग्रह एक ही फ्रीक्वेंसी पर संचालित होने से इंटरफेरेंस की आशंका रहती है।
  3. निजी कंपनियों का बढ़ता हस्तक्षेप:
    SpaceX, OneWeb जैसी कंपनियाँ हजारों उपग्रह भेज रही हैं जिससे पारंपरिक विनियमन मॉडल चुनौती में है।
  4. स्पेक्ट्रम की नीलामी बनाम वैज्ञानिक उपयोग:
    कभी-कभी राजस्व के लोभ में सरकारें स्पेक्ट्रम का व्यावसायिक दोहन कर बैठती हैं।

🔷 समाधान और सुझाव:

  1. स्पेक्ट्रम के न्यायपूर्ण और पारदर्शी आवंटन की नीति
  2. ITU के साथ बेहतर समन्वय
  3. राष्ट्रीय स्पेस कानून का निर्माण (Space Activities Bill को पारित करना)
  4. निजी क्षेत्र को स्पेक्ट्रम उपयोग की सशर्त स्वतंत्रता देना
  5. स्पेक्ट्रम शेयरिंग, रीयूज और Dynamic Spectrum Management जैसी तकनीकों को बढ़ावा देना

🔷 निष्कर्ष:

अंतरिक्ष में संचार और स्पेक्ट्रम प्रबंधन आधुनिक युग की अनिवार्यता है। यह न केवल तकनीकी दक्षता और वैश्विक संपर्क के लिए आवश्यक है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास और रणनीतिक संप्रभुता से भी जुड़ा हुआ है। भारत को चाहिए कि वह एक व्यापक और पारदर्शी स्पेस कम्युनिकेशन फ्रेमवर्क अपनाए और वैश्विक मंच पर अपने उपग्रह कार्यक्रमों के साथ-साथ स्पेक्ट्रम प्रबंधन में भी नेतृत्वकारी भूमिका निभाए।