सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय: धारा 482 CrPC के तहत हाईकोर्ट को जांच रिपोर्ट मंगाने का अधिकार नहीं – जांच की निगरानी का अधिकार केवल मजिस्ट्रेट को
(Ashok Kumar Jain Versus The State of Gujarat And Another, सुप्रीम कोर्ट, 2025)
🌟 प्रस्तावना
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में Ashok Kumar Jain Versus The State of Gujarat And Another केस में यह स्पष्ट किया है कि भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 482 के अंतर्गत हाईकोर्ट को यह अधिकार नहीं है कि वह पुलिस से जांच रिपोर्ट मंगाए या उसकी सामग्री की जांच करे। यह अधिकार विशेष रूप से मजिस्ट्रेट को सौंपा गया है। इस ऐतिहासिक निर्णय ने जांच की प्रक्रिया की संवैधानिकता और कार्यपालिका व न्यायपालिका के बीच की लक्ष्मणरेखा को एक बार फिर स्पष्ट किया है।
⚖️ मामला संक्षेप में
- विवाद का विषय:
याचिकाकर्ता अशोक कुमार जैन के खिलाफ एक आपराधिक मामला दर्ज किया गया था। मामले की जांच चल रही थी, उसी दौरान उन्होंने हाईकोर्ट में धारा 482 CrPC के तहत याचिका दायर कर यह प्रार्थना की कि हाईकोर्ट पुलिस से जांच रिपोर्ट तलब करे ताकि कोर्ट उस पर विचार कर सके। - हाईकोर्ट की कार्यवाही:
हाईकोर्ट ने पुलिस को नोटिस जारी कर जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश दिया। - प्रश्न:
क्या हाईकोर्ट के पास धारा 482 CrPC के अंतर्गत ऐसा अधिकार है कि वह जांच रिपोर्ट तलब कर सके?
📌 सुप्रीम कोर्ट की मुख्य टिप्पणियां
✅ धारा 173 CrPC के तहत जांच रिपोर्ट केवल मजिस्ट्रेट को सौंपी जाती है:
कोर्ट ने कहा कि CrPC की धारा 173 स्पष्ट रूप से यह कहती है कि जांच पूरी होने के बाद पुलिस रिपोर्ट मजिस्ट्रेट को ही प्रस्तुत की जाती है, ताकि मजिस्ट्रेट तय कर सके कि संज्ञान लिया जाए या नहीं।
✅ धारा 482 CrPC का सीमित उपयोग:
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि धारा 482 CrPC हाईकोर्ट को अपनी अंतर्निहित शक्तियों के इस्तेमाल का अधिकार तो देती है, लेकिन इसका प्रयोग तभी किया जा सकता है जब कोई कार्यवाही न्याय के हित में हो और वह कानून के तहत दी गई प्रक्रियाओं का उल्लंघन न करे।
✅ कार्यपालिका और न्यायपालिका के कार्यक्षेत्र का सम्मान:
जांच एक कार्यपालिका (Police) का कार्य है, जिसमें कोर्ट को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। अगर कोर्ट जांच के दौरान रिपोर्ट तलब करता है, तो इससे जांच की गोपनीयता और निष्पक्षता प्रभावित हो सकती है।
✅ अदालत का हस्तक्षेप कब संभव:
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि जांच में गंभीर अनियमितता, दुर्भावना या स्पष्ट दुरुपयोग के सबूत हों, तभी कोर्ट अपनी शक्तियों का उपयोग कर सकता है। सामान्य मामलों में हाईकोर्ट को जांच के बीच में दखल देने से बचना चाहिए।
⚖️ निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने धारा 482 CrPC के तहत अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर जांच रिपोर्ट तलब करने का आदेश दिया था। यह आदेश कानून के अनुरूप नहीं था, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया। कोर्ट ने दो टूक कहा कि जांच रिपोर्ट केवल मजिस्ट्रेट को सौंपी जाती है, हाईकोर्ट को नहीं।
🔎 कानूनी दृष्टिकोण
➡️ CrPC धारा 173(2): जांच पूरी होने के बाद पुलिस रिपोर्ट मजिस्ट्रेट को सौंपी जाती है।
➡️ CrPC धारा 482: हाईकोर्ट को न्यायहित में प्रक्रिया का दुरुपयोग रोकने या न्याय की रक्षा के लिए अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग करने का अधिकार, लेकिन इसका दायरा सीमित है।
➡️ न्यायपालिका का कार्यक्षेत्र:
- जांच: पुलिस (कार्यपालिका)
- परीक्षण और आदेश: मजिस्ट्रेट (न्यायपालिका)
📣 निष्कर्ष
इस निर्णय से यह स्पष्ट हो गया है कि हाईकोर्ट जांच की रिपोर्ट तलब नहीं कर सकता, और जांच की प्रक्रिया में मजिस्ट्रेट का एकमात्र अधिकार क्षेत्र है। यह फैसला भारतीय आपराधिक न्याय प्रक्रिया की स्वतंत्रता, निष्पक्षता और शक्ति के पृथक्करण के सिद्धांत को सुदृढ़ करता है।