“धारा 138 के तहत चेक अनादरण: केवल चेक वापसी से दंडनीय अपराध नहीं बनता – सर्वोच्च न्यायालय का विश्लेषण IBC की भूमिका सहित”

लेख शीर्षक:
“धारा 138 के तहत चेक अनादरण: केवल चेक वापसी से दंडनीय अपराध नहीं बनता – सर्वोच्च न्यायालय का विश्लेषण IBC की भूमिका सहित”


परिचय:
भारतीय विधिक परिप्रेक्ष्य में चेक अनादरण (Dishonour of Cheque) एक गंभीर आर्थिक अपराध के रूप में देखा जाता है, जिसकी दंडात्मक व्यवस्था नीगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स अधिनियम, 1881 की धारा 138 के तहत की गई है। परंतु हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए एक महत्त्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया गया कि केवल चेक का बैंक द्वारा अस्वीकृत किया जाना धारा 138 के तहत अपराध नहीं है। इसके अतिरिक्त, इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) के धारा 14 और 17 के अंतर्गत यदि कंपनी दिवालिया प्रक्रिया से गुजर रही हो, तो निदेशक के खिलाफ दंडात्मक कार्यवाही बनाए नहीं रखी जा सकती।


धारा 138 के अंतर्गत अपराध की परिभाषा:
धारा 138 के तहत किसी व्यक्ति को दंडित करने के लिए निम्नलिखित आवश्यक शर्तें पूर्ण होनी चाहिए:

  1. चेक का अनादरण (Dishonour): बैंक द्वारा चेक को पर्याप्त धनराशि न होने अथवा अन्य कारणों से अस्वीकृत करना।
  2. कानूनी नोटिस (Legal Notice): प्राप्तकर्ता (Payee) द्वारा चेक अनादरण के 30 दिनों के भीतर लिखित रूप में भुगतान की मांग करते हुए नोटिस भेजना।
  3. 15 दिन की अवधि: नोटिस मिलने के 15 दिनों के भीतर भुगतान न करना।

जब तक उपरोक्त तीनों शर्तें पूरी नहीं होतीं, तब तक धारा 138 के तहत दंडनीय अपराध उत्पन्न नहीं होता। सिर्फ चेक रिटर्न हो जाना, स्वयं में दंडात्मक कार्यवाही का आधार नहीं है।


ध्यान देने योग्य बात:
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि:

“मात्र चेक का अनादरण अथवा नोटिस भेजना पर्याप्त नहीं है जब तक कि आरोपी 15 दिनों की अवधि के भीतर भुगतान न करने में असफल रहता है।”


IBC के संदर्भ में दायित्व की सीमा:
इस निर्णय में यह भी स्पष्ट किया गया कि यदि किसी कंपनी के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया IBC के तहत चल रही हो और Interim Resolution Professional (IRP) नियुक्त हो चुका हो, तो:

  1. धारा 14 के अंतर्गत मोरेटोरियम (Moratorium): यह कंपनी के विरुद्ध सभी प्रकार की कानूनी कार्यवाहियों को रोक देता है।
  2. धारा 17 के तहत नियंत्रण का स्थानांतरण: निदेशक की भूमिका समाप्त हो जाती है, और सभी अधिकार IRP को स्थानांतरित हो जाते हैं।

इसलिए, यदि चेक अनादरण की नोटिस ऐसे समय दी गई हो जब कंपनी IBC प्रक्रिया के तहत हो, तो कंपनी का पूर्व निदेशक उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि उसके पास भुगतान करने का कोई वैधानिक अधिकार नहीं रह जाता।


न्यायालय का निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाते हुए आरोपी निदेशक के विरुद्ध धारा 138 के तहत लंबित कार्यवाही को निरस्त कर दिया, क्योंकि उस समय आरोपी के पास कंपनी के वित्तीय प्रबंधन का कोई नियंत्रण नहीं था।


निष्कर्ष:
यह निर्णय स्पष्ट रूप से बताता है कि चेक अनादरण मामलों में धारा 138 के तहत दंडात्मक कार्रवाई तभी संभव है जब विधिक रूप से सभी शर्तें पूरी हों। साथ ही, यदि कंपनी IBC की प्रक्रिया में है, तो निदेशक को व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता। यह निर्णय वित्तीय लेन-देन के कानूनी संरक्षण और निदेशकों के वैधानिक उत्तरदायित्व की सीमाओं को चिन्हित करता है।