“धारा 356 (BNS 2023): अपमानजनक शब्दों और गाली-गलौज पर सख्त कानून”
प्रस्तावना:
भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023) में धारा 356 का उद्देश्य समाज में सभ्यता, शिष्टाचार और सम्मान की भावना को बनाए रखना है। यह धारा विशेष रूप से उन मामलों को लक्षित करती है जहाँ कोई व्यक्ति सार्वजनिक या व्यक्तिगत रूप से किसी अन्य व्यक्ति को गाली देकर मानसिक पीड़ा पहुँचाता है। चाहे गाली देने वाला पुरुष हो या महिला, इस धारा के अंतर्गत वह दंड का पात्र हो सकता है।
धारा 356 (BNS 2023) का सारांश:
“कोई भी व्यक्ति, यदि जानबूझकर किसी अन्य व्यक्ति को सार्वजनिक या व्यक्तिगत रूप से गाली देता है, अपमानित करता है, जिससे मानसिक पीड़ा होती है, तो वह आपत्तिजनक शब्दों के प्रयोग का दोषी होगा।”
दंड:
- अधिकतम 3 महीने की कारावास, या
- जुर्माना, या
- दोनों।
महत्वपूर्ण बिंदु:
- लिंग की परवाह नहीं:
चाहे गाली देने वाला व्यक्ति महिला हो या पुरुष, यदि उसने अपमानजनक भाषा का प्रयोग किया है और वह मानसिक यातना का कारण बनी है, तो उसके खिलाफ यह धारा लागू हो सकती है। - सार्वजनिक और निजी दोनों संदर्भों में लागू:
यह धारा केवल सोशल मीडिया, सड़कों या सार्वजनिक स्थानों पर दिए गए अपमानजनक शब्दों पर नहीं, बल्कि निजी बातचीत में भी लागू हो सकती है, यदि उससे पीड़ित को मानसिक पीड़ा पहुँची हो। - मानसिक पीड़ा का तत्व:
केवल गाली देना ही अपराध नहीं है, बल्कि यह साबित होना चाहिए कि उस व्यक्ति को मानसिक आघात या अपमान महसूस हुआ है। - शिकायत के आधार पर मामला दर्ज:
धारा 356 एक संज्ञेय अपराध (Non-Cognizable Offence) है, अतः पुलिस बिना मजिस्ट्रेट की अनुमति के सीधे गिरफ्तारी नहीं कर सकती, लेकिन पीड़ित मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत दर्ज करवा सकता है।
प्रासंगिक उदाहरण:
- यदि कोई लड़की किसी लड़के को सार्वजनिक स्थान पर गंदी गालियाँ देती है और वह लड़का मानसिक रूप से आहत होता है, तो वह लड़की धारा 356 के अंतर्गत दोषी ठहराई जा सकती है।
- इसी तरह, किसी भी व्यक्ति द्वारा सोशल मीडिया पर अपमानजनक टिप्पणियाँ करना इस धारा के अंतर्गत लाया जा सकता है।
न्यायिक रुख और सामाजिक प्रभाव:
भारत का न्याय तंत्र अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का समर्थन करता है, लेकिन जब यह स्वतंत्रता किसी की गरिमा, मानसिक शांति या सामाजिक प्रतिष्ठा को आघात पहुँचाती है, तो यह आपराधिक कृत्य बन जाती है।
धारा 356, 2023 में इसे अपराध घोषित करके एक सशक्त संदेश देती है कि किसी को मानसिक पीड़ा देना एक दंडनीय कृत्य है, चाहे वह गाली हो, अपमान हो या अशिष्ट भाषा।
निष्कर्ष:
धारा 356 (BNS 2023) आधुनिक समाज की ज़रूरत को ध्यान में रखते हुए एक सशक्त और संवेदनशील प्रावधान है, जो लोगों की गरिमा और मानसिक सुरक्षा की रक्षा करता है। यह कानून दर्शाता है कि शब्दों की ताकत को हल्के में नहीं लिया जा सकता। चाहे कोई महिला हो या पुरुष, यदि वह किसी को गाली देता है या अपमानित करता है, तो उसे दंड भुगतना पड़ सकता है।
“शब्दों का चयन सोच-समझकर करें, क्योंकि अब कानून भी आपकी भाषा पर नजर रखता है।”