“मूल आपराधिक मामले में बरी होने के बाद गैंगस्टर एक्ट की कार्रवाई निरर्थक: इलाहाबाद हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय”

“मूल आपराधिक मामले में बरी होने के बाद गैंगस्टर एक्ट की कार्रवाई निरर्थक: इलाहाबाद हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय” Johar Ali & Others vs State of U.P.


परिचय:

हाल ही में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए यह स्पष्ट किया है कि जब कोई अभियुक्त मूल आपराधिक मामले में बरी हो चुका हो, तो उसी आधार पर दर्ज गैंगस्टर एक्ट के अंतर्गत कार्रवाई को जारी रखना कानूनन अनुचित और औचित्यहीन है। इस फैसले ने गैंगस्टर अधिनियम के अनुचित उपयोग पर एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं।


मामले की पृष्ठभूमि:

उत्तर प्रदेश के संभल ज़िले के नखास थाने में जौहर अली एवं छह अन्य व्यक्तियों के खिलाफ गैंगस्टर अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था। यह मुकदमा एकमात्र आपराधिक मामले — क्राइम संख्या 391/2019 (भारतीय दंड संहिता के तहत) — को आधार बनाकर शुरू किया गया था।

हालाँकि, इस मूल आपराधिक मामले में संबंधित विशेष न्यायालय, संभल द्वारा सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया। इसके बावजूद गैंगस्टर एक्ट के अंतर्गत मुकदमा विशेष अदालत में चलाया जा रहा था।


विशेष अदालत का निर्णय और उच्च न्यायालय की टिप्पणी:

आरोपितों ने गैंगस्टर एक्ट की कार्रवाई को रद्द कराने के लिए विशेष अदालत में आवेदन दिया था, जिसे खारिज कर दिया गया। विशेष अदालत ने यह दलील दी कि आरोपियों के बरी होने से संबंधित प्रमाण केस रिकॉर्ड का हिस्सा नहीं हैं, इसलिए उन पर विचार नहीं किया जा सकता।

इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई, जहां माननीय न्यायमूर्ति राजीव मिश्रा की एकलपीठ ने विशेष अदालत के आदेश को रद्द करते हुए स्पष्ट किया कि:

“जब गैंगस्टर एक्ट के तहत की गई कार्रवाई का एकमात्र आधार ही समाप्त हो गया है, तो उस कार्रवाई को जारी रखना न्याय के साथ अन्याय है।”


हाई कोर्ट का दृष्टिकोण:

  • विश्वसनीय साक्ष्य: हाई कोर्ट ने कहा कि अभियुक्तों के बरी होने के प्रमाण विश्वसनीय हैं और विशेष अदालत को उन पर विचार करना चाहिए था।
  • कानूनी सिद्धांत: कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट और अपने ही पिछले फैसलों (जैसे प्रीतम सिंह बनाम पंजाब राज्य, सरताज बनाम उत्तर प्रदेश राज्य) का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि यदि मूल मामला निरस्त हो जाए या बरी का निर्णय आ जाए, तो गैंगस्टर एक्ट की कार्रवाई स्वतः समाप्त मानी जाएगी।
  • समय और संसाधनों की बचत: न्यायालय ने यह भी कहा कि इस तरह की कार्रवाई केवल न्यायिक समय और सरकारी संसाधनों की बर्बादी है।

निर्णय और परिणाम:

हाई कोर्ट ने गैंगस्टर एक्ट के अंतर्गत चल रहे स्पेशल सेशन ट्रायल नंबर 254/2021 को पूरी तरह रद्द कर दिया। इसके परिणामस्वरूप, सातों आरोपितों को गैंगस्टर अधिनियम के तहत चल रही कानूनी कार्यवाही से मुक्ति मिल गई।


निष्कर्ष:

इस निर्णय से स्पष्ट होता है कि न्यायालय उन मामलों में गंभीरता से हस्तक्षेप करता है, जहाँ कानूनी प्रावधानों का दुरुपयोग कर अनावश्यक मुकदमेबाज़ी की जाती है। यह फैसला न केवल आरोपी व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि गैंगस्टर अधिनियम के उचित और न्यायपूर्ण उपयोग के महत्व को भी रेखांकित करता है। न्यायपालिका की यह सक्रियता संविधान में निहित व्यक्तिगत स्वतंत्रता और विधिक प्रक्रिया के संरक्षण का उत्तम उदाहरण है।


यह निर्णय भविष्य में उन सभी मामलों के लिए मार्गदर्शक होगा, जहाँ अभियुक्तों को मात्र एक निरस्त केस के आधार पर संगठित अपराधी मानते हुए गैंगस्टर एक्ट लगाया जाता है।